भारत पाक में हुआ 1987 का विश्वकप कई मायनों में था खास जिसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता

Webdunia
बुधवार, 20 सितम्बर 2023 (15:05 IST)
1987 विश्वकप पहला विश्वकप था जिसे इंग्लैंड के बाहर आयोजित किया गया। यह विश्वकप भारत और पाकिस्तान में आयोजित किया गया। इस विश्वकप की खास बात यह थी कि इसमें पहले से चले आ रहे ओवर्स के मानक कम किए गए। पहले 60 ओवरों का एकदिवसीय मैच होता था इसके बाद 50 ओवर तक इसको कम किया गया।कुल 8 टीमों को दो समूहों में बांटा गया था। इस विश्वकप का प्रारूप ऐसा था कि हर टीम को एक दूसरे से दो बार भिड़ना था।

आईसीसी के फैसले के अनुसार 7 टेस्ट टीमों को इस विश्वकप में सीधे क्वालिफाय करने का मौका मिल गया था वहीं जिम्बाब्वे ने नीदरलैंड को हराकर इस एकदिवसीय विश्वकप के लिए क्वालिफाय किया था। इसके अलावा यह विश्वकप आखिरी बार सफेद कपड़ों और लाल गेंद से खेला गया। इस विश्वकप के सभी मैच दिन की रोशनी में ही खेले गए।

ग्रुप ए के सभी मैच भारत के 14 स्टेडियम में खेले गए जबकि ग्रुप बी के ज्यादातर मैच पाकिस्तान के 8 स्टेडियम में खेले गए ताकि मेजबानों को घरेलू स्थिति का फायदा मिल सके। जो मिला भी क्योंकि दोनों ही मेजबानों ने सेमीफाइनल तक का सफर पूरा किया।दोनों ही चिर प्रतिद्वंदियों ने ना केवल सेमीफाइनल का सफर पूरा किया बल्कि अपने अपने ग्रुप पर दोनों ही टीमें शीर्ष पर रही।

इन दोनों टीमों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड अपने अपने ग्रुप से सेमीफाइनल में जगह बनाने वाली दूसरी टीम बनी। ऑस्ट्रेलिया को अपने ग्रुप में 1 बार सिर्फ भारत से हार मिली जबकि इंग्लैंड  पाकिस्तान से 2 बार हारा।लगातार 3 फाइनल खेल चुकी वेस्टइंडीज ग्रुप बी में थी और इस बार सेमीफाइनल तक पहुंचने में नाकाम रही, उसे 6 मैचों में 3 हार का सामना करना पड़ा । न्यूजीलैंड के लिए भी यह विश्वकप खास नहीं रहा और टीम को 6 मैचों में 4 हार मिली।

श्रीलंका और जिम्बाब्वे के लिए यह विश्वकप भुलाने लायक रहा क्योंकि दोनों ही टीमों में से किसी भी टीम को 1 भी जीत नसीब नहीं हुई। यह दोनों टीमें 6 में से 6 मुकाबले हारकर विश्वकप में शर्मसार हुई।

सेमीफाइनल में आकर फिसले मेजबान

सेमीफाइनल में भारत की इंग्लैंड से तो पाकिस्तान का ऑस्ट्रेलिया से मुकाबला था। पहले सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीता और बल्लेबाजी चुनी।  डेविड बून (91 गेंदों पर 65 रन, 4 चौके) और 34 अतिरिक्त रनों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने 6 विकेट पर 267 रनों का स्कोर खड़ा कर लिया। 38 रनों पर 3 विकेट खो चुकी पाकिस्तान के लिए इमरान खान (84 गेंदों में 58, 4 चौके) और जावेद मियांदाद (103 गेंदों में 70, 4 चौकों) ने 26 ओवरों में 112 रनों की साझेदारी की। लेकिन मियांदाद का विकेट गिरने के बाद जरूरी रन रेट बहुत बढ़ गई और ऑस्ट्रेलिया 18 रनों से जीत गई।

वहीं भारत ने  सेमीफाइनल में टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला किया। ग्राहम गूच (136 गेंदों में 115, 11 चौके) और कप्तान माइक गैटिंग (62 गेंदों में 56, 5 चौकों) की पारियों की बदौलत इंग्लैंड ने 6 विकेट के नुकसान पर 254 रन बनाए। जवाब में भारत के भी 3 विकेट 73 रनों पर गिर गए। मोहम्मद अजहरुद्दीन (74 गेंदों में 64 रन, 7 चौके) ने आशा बांधी लेकिन निचले क्रम के बल्लेबाजों की विफलता के कारण भारत 219 पर ऑल आउट हो गया और 35 रनों से मैच हार गया।

1987 विश्वकप फाइनल- इस विश्वकप में पहली बार विश्व की सबसे जांबाज टीम ऑस्ट्रेलिया ने रियल एक्शन दिखाकर विश्वकप अपने नाम किया। ऑस्ट्रेलिया के साथ फाइनल में पहुंची इंग्लैंड को ऑस्ट्रेलिया ने 7 विकेट से रौंदते हुए विश्वकप अपने नाम किया। विश्वकप फाइनल में बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर ऑस्ट्रेलिया के डेविड बून को फाइनल में उनके 75 रनों का इनाम मिला और वे मैन ऑफ द मैच चुने गए।

डेविड बून (ऑस्ट्रेलिया, 75 रन)- ऑस्ट्रेलियाई टीम में नाटे कद के डेविड बून ने 1987 के फाइनल में 75 रनों की विजेता पारी से अपनी टीम को पहली बार वर्ल्ड कप का शहंशाह बनाया। बून को 'मैन ऑफ द मैच' घोषित किया गया। बून 1984 से 1995 तक ऑस्ट्रेलियाई टीम का‍ हिस्सा रहे। बून थुलथुले जरूर थे लेकिन विकेटों के बीच उनकी दौड़ देखते ही बनती थी।<>

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