इक ख्वाब तो आँखों में है, इक चाँद तेरे तकिए तले

ब्लॉग-चर्चा में इस बार 'गुलजारनामा'

रवींद्र व्यास
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मेरे पसंदीदा शायर मिर्जा गालिब के एक शेर को यदि अपने प्रिय गीतकार गुलजार के लिए इस्तेमाल करूँ तो वह कुछ यूँ होगा कि यूँ तो और भी गीतकार हैं बॉलीवुड में लेकिन कहते हैं कि गुलजार का है अंदाजे बयाँ और। अपने अंदाजे बयाँ के कारण ही गुलजार आज भी बॉलीवुड में न केवल टिके हुए हैं बल्कि अपने कहने के अंदाज को लगातार बदलते हुए और नया करते हुए ताजादम बने हुए हैं।

बंटी और बबली तथा झूम बराबर झूम फिल्मों के गीतों की जबर्दस्त लोकप्रियता इसकी एक बेहतर मिसाल है। कजरारे कजरारे तेरे नैना कारे कारे गीत का जादू तो लोगों को सिर चढ़कर बोला था और झूम बराबर झूम पर तो पूरी युवा पीढ़ी झूमने लगी थी। उनके इस गीत पर गौर करिए-

मकई की रोटी, गुड़ रखके मिसरी से मीठे लब चख के तंदूर जलाके झूम झूम गुलजार के इस जादू को समझने की जरूरत है। गुलजार के इस अंदाजे बयाँ को महसूस करने की जरूरत है। इस गीत में मक्का की रोटी है जिसे हम भूल चूके हैं, गुड़ का स्वाद भी हम लगभग भूल चुके हैं। और शायद इस भागती-दौड़ती जिंदगी में मिसरी से मीठे लबों को चखने का गहरा अहसास भी भूल चुके हैं।
  यूँ तो और भी गीतकार हैं बॉलीवुड में लेकिन कहते हैं कि गुलजार का है अंदाजे बयाँ और। अपने अंदाजे बयाँ के कारण ही गुलजार आज भी बॉलीवुड में न केवल टिके हुए हैं बल्कि अपने कहने के अंदाज को लगातार बदलते हुए और नया करते हुए ताजादम बने हुए हैं।      


शायद रिश्तों को गाढ़ा, संवेदनशील और ताकतवर बना देने वाली वह आदिम ऊष्मा या आँच को भी भूल रहे हैं। गुलजार अपने बेहद सादा लफ्जों में बताते हैं कि असल जीवन का स्वाद असल चीजों में हैं और इसी का स्वाद लेने से हम जीवन का आनंद ले सकते हैं। तभी तो वे यह कह सके हैं कि मिसरी से मीठे लब चख के, तंदूर जलाके झूम। मैं जब इस बेहतरीन फनकार के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि वे हिंदी फिल्मों के गीतकारों की उस परंपरा के गीतकार हैं जिन्होंने लोकप्रियता और साहित्यिकता के भेद को अपनी गजब की रचनात्मकता से मिटा दिया था। और यह भी कि हरदम उन गीतों की मधुर गीतात्मकता से नशीली-फड़कती धुनों पर सवार होकर हर दौर में वे लोगों के जेहन और जीवन में जिंदा रहे हैं।

रीमिक्स के इस दौर में भी उन गीतकारों के गीत आज भी किसी आधुनिक बीट्स और रिदम के साथ एफएम और टीवी चैनल्स पर सुने-देखे जा सकते हैं तो यह उन गीतों के कालजयी होने का प्रमाण है। ...और यही कारण है कि ब्लॉग जैसे आधुनिक मीडियम में भी ऐसे गीतकारों का जलवा बरकरार है। इसीलिए आज ब्लॉग की दुनिया में एक पूरा ब्लॉग ही गुलजार साहब के लिए समर्पित है। गुलजारनामा के नाम से यह ब्लॉग कुश एक खूबसूरत खयाल का ब्लॉग है।

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इसमें गुलजार साहब के गीत पढ़े जा सकते हैं, सुने जा सकते हैं। गुलजार पर टिप्पणियाँ हैं। नज्में हैं और उनकी ईजाद की गई त्रिवेणियाँ भी हैं। इसमें उनके फिल्मी गीतों और नज्मों के साथ ही गैर फिल्मी नज्मों को पढ़ने का मजा लिया जा सकता है। इस ब्लॉग की शुरुआत, जाहिर है गुलजार पर एक परिचयात्मक टिप्पणी के साथ होती है। ‘गुलजार एक परिच य ’ शीर्षक इस पोस्ट में आप गुलजार के बारे में जानकारियाँ हासिल कर सकते हैं कि कब उन्होंने एक गीतकार और फिल्मकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।

उन्हें कब पहली बार फिल्म फेयर और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। ये पुरस्कार कब-कब और किन-किन फिल्मों और गीतों के लिए मिले। उन्होंने किन फिल्मों का निर्माण किया, किन फिल्मों के लिए पटकथाएँ लिखीं और किन फिल्मों का निर्देशन किया। लेकिन इन तमाम जानकारियों से भी ज्यादा खास बात यह है कि यह ब्लॉग गुलजार के बेहतरीन नगमों-नज्मों से आपका परिचय छोटी-छोटी लेकिन आत्मीय टिप्पणियों के जरिए कराता है। एक बानगी देखिए-

सुबह की ताजगी ह ो, रात की चाँदनी ह ो, साँझ की झुरमुट हो या सूरज का ता प, उन्हे ं खूबसूरती से अपने लफ्जों में पिरो कर किसी भी रंग में रंगने का हुनर तो बस गुलजा र साहब को ही आता है। मुहावरों के नए प्रयोग अपने आप खुलने लगते हैं उनकी कलम से । बात चाहे रस की हो या गंध क ी, उनके पास जाकर सभी अपना वजूद भूल कर उनके हो जात े हैं और उनकी लेखनी में रच-बस जाते है। यादों और सच को वे एक नया रूप दे देते हैं । उदासी की बात चलती है तो बीहड़ों में उतर जाते है ं, बर्फीली पहाडि़यों में रम जात े हैं। रिश्तों की बात हो तो वे जुलाहे से भी साझा हो जाते हैं। दिल में उठने वाल े तूफा न, आवे ग, सु ख, दु: ख, इच्छाए ँ, अनुभूतियाँ सब उनकी लेखनी से चलकर ऐसे आ जाते है ं जैसे कि वे हमारे पास की ही बातें हों। जैसे कि बस हमारा दु:ख ह ै, हमारा सुख है।

एक बानगी देखिए- जाहिर है यह टिप्पणी गुलजार साहब की रचनाओं की खासियत ही नहीं बताती बल्कि उनके प्रति यह टिप्पणी लिखने वाले कुश एक खूबसूरत खयाल के मोहब्बत का इजहार भी हैं। इस ब्लॉग की एक पोस्ट में कुश ने यह नज्म दी है। आप भी इसमें कही इक बात का, महीन बात का मजा लें-

नज़्म उलझी हुई है सीने मे ं

मिसरे अटके हुए है ं होठों प र

उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तर ह

लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ह ी नही ं

कब से बैठा हुआ हूँ मैं जान म

सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेर ा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल ह ै

इससे बेहतर भी नज़् म क्या होगी ।

गुलजार की इस नज्म में कही गई बात पर जरा गौर फरमाएँ। इसमें लफ्ज सादा हैं, कहने का ढंग सादा है। इक बात है गहरी और जिस बात को लिखा गया है वह कागज भी सादा है और एक पीड़ा है कि मेहबूब का खयाल ही इतना घना है कि बस नाम लिखके वह बैठा है और सीधे दिल से निकली बात कहता है कि बस तेरा नाम ही मुकम्मल है, इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी। अब कौन न मर जाए इस बला की सादगी पर। यही गुलजार का जादू है।

गुलजार ने कविता में प्रयोग भी किए हैं और उसे गुलजार साहब ने त्रिवेणी कहा। इसे खूब सराहा भी गया। अपने द्वारा ईजाद की गई इस विधा के बारे में खुद गुलजार क्या कहते हैं मुलाहिजा फरमाएँ। वे कहते हैं- बड़ी सीधी सी फॉर्म है, तीन मिसरों की लेकिन इसमें एक जरा-सी घुंडी है। हल्की सी। पहले दो मिसरों में बात पूरी हो जानी चाहिए। गजल के शेर की तरह वह अपने आप में मुकम्मल होती है। तीसरा मिसरा रोशनदान की तरह खुलता है। उसके आने से पहले दो मिसरों के मफ़हू म पर असर पड़ता है। उसके मानी बदल जाते हैं।

तो गुलजार की इन त्रिवेणियों में स्नान करने का पुण्य आप भी कमा लें। लिहाजा कुछ मिसालें पेश हैं।
माँ ने जिस चाँद सी दुल्हन की दुआ दी थ ी मुझ े
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देख ा मैंन े
रात भर रोटी नज़र आया है वो चाँ द मुझ े
और दूसरी त्रिवेणी यह है-
सारा दिन बैठ ा, मैं हाथ में लेकर खा़ल ी कास ा
रात जो गुज़र ी, चाँद की कौड़ ी डाल गई उसमे ं
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ल े जाएगा ।

इसके अलावा इस ब्लॉग पर आस्था, रेनकोट, झूम बराबर झूम जैसे फिल्मों के गीत भी हैं। गुलजार और मानसून, गुलजार के गीतों में साउंड का कमाल पोस्ट्स भी पढ़ने लायक हैं। यही नहीं इस ब्लॉग पर गुलजार की किताबों पर बातें हैं और किताबों पर लिखी एक बहुत ही मार्मिक नज्म भी है जिसका शीर्षक है- किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से। उनकी गुलाब-सी नाजुक इस नज्म की एक पंखुरी आपकी नजर

किताबों से जो जाती राब्ता थ ा, कट गया ह ै
कभी सीने पर रखकर लेट जाते थ े
कभ ी गोदी में लेते थ े
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाक र
नीम सजदे में पढ़ ा करते थ े, छूते थे जबीं स े
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भ ी
मगर वो ज ो किताबों में मिला करते थे सूखे फू ल
और महके हुए रुक्क े
किताबें मँगान े, गिरन े उठाने के बहाने रिश्ते बनते थ े
उनका क्या होग ा
वो शायद अब नही होंगे !!

गुलजार हिंदी फिल्मों के गीतकार हैं, क्या इससे उनकी साहित्यिकता कम हो जाती है। बिलकुल नहीं। यदि उनके गीतों का गंभीर पाठ किया जाए तो वे अपने साहित्यिक मूल्यों के लिए भी उतने ही अर्थवान हैं। झूम बराबर झूम के एक गीत का उदाहरण लिया जा सकता है। यह उदाहरण मैं इसलिए जान कर के दे रहा हूँ कि वे अपनी गैर फिल्मी रचनाओं से तो यह साबित कर चुके हैं कि वे एक बेहतरीन शायर हैं लेकिन उनकी कलात्मकता और रचनाधर्मिता ने गीतों को भी कितना अर्थवान बनाया है यह छिपा नहीं है। इस गीत को यहाँ पढ़ें और मौका मिले तो इसे सुनें भी। इसकी धुन भी बहुत नशीली है। इसके अंतरे मैं यहाँ दे रहा हूँ ।
आ नींद का सौदा करे ं
इक ख्वाब दें इक ख्वाब ले ं
इक ख्वाब तो आँखों मे ं ह ै
इक चाँद तेरे तकिये तल े

कितने दिनों से ये आसमाँ भ ी
सोया नही ह ै, इसको सुला दे ं

बोल ना हल्के हल्क े
बोल ना हल्के हल्क े

उम्रे लग ी कहते हु ए
दो लफ़्ज़ थे एक बात थ ी
वो इक दिन सौ साल क ा
सौ साल की वो रा त थ ी

ऐसा लगे जो चुपचाप दोनो ं
पल-पल में पूरी सदियाँ बिता दे ं

बो ल ना हल्के हल्क े
बोल ना हल्के हल्क े

मुझे कहने दीजिए, गुलजार ने अपनी महीन कल्पना और गहरी संवेदनशीलता से हमारे लिए ऐसे नगमे लिखे हैं, ऐसी नज्में लिखी हैं कि हम अपनी किसी भूली मोहब्बत को एक गहराती रात में, छिटकी चाँदनी में फिर से याद कर धड़कने लगते हैं। उनके लफ्ज हमारे भीतर एक आत्मीय संसार रचते हैं, जहाँ हम अपने टूटे-बनते रिश्तों की डोर को, उसके रंगों को और उसकी खुशबू को महसूस करने लगते हैं।

हम उस चाँद को अपने तकिए तले या सिरहाने में दु:ख में या मोहब्बत में पास में चमकता महसूस करते हैं। वे हमारे लिए ख्वाब बुनते हैं और हमारे अकेलेपन धीरे से कहीं रख जाते हैं। वे हमारी आँखों में सो चुके किसी ख्वाब को जगा जाते हैं, प्रेम की टूटन में पलकों से टपकने वाली आँसू की बूँदों को थाम लेते हैं। वे रूह दिखाते हैं और महसूस कराते हैं। वे खामोशी को रचते हैं और उसे एक गहरा अर्थ और गरिमा देते हैं। हम इसी खामोशी में अपनी आह और कराह को सुन पाते हैं और एक अच्छे इंसान बने रहते हैं।

कलाएँ यही करती हैं कि वे आपको ख्वाब देती हैं, जीने की ताकत देती हैं और आपको एक बेहतर इंसान बनाए रखती हैं। यह काम गुलजार अपने गीतों-नज्मों के जरिए बखूबी कर जाते हैं। वे हमें ख्वाब दिखाते हैं, कि वह कहाँ-कहाँ हो सकता है, चुपके से किसी रात में खिलता हुआ। और वे हमें प्रेम का और मन का आदिम प्रतीक चाँद भी दिखाते हैं, बार-बार, अलग-अलग ढंग से, जो हमें, हमारे संसार को ज्यादा खूबसूरत बनाता है। हमें कल्पनाशील और संवेदनशील बनाता है। इसलिए उन्होंने कितनी खूबसूरती से यह कहा है कि-इक ख्वाब तो आँखों में है और इक चाँद तेरे तकिए तले।

इस ब्लॉग पर जाइए और इस अजी़ म फनकार से एक बार फिर मुलाकात कीजिए और उस ब्लॉगर कुश का शुक्रिया अदा कीजिए जो हमें गुलजार के गीत पढ़ाता-सुनाता है।

इस ब्लॉग का पता है-
http://guljar.blogspot.co m
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