ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि अमेरिकी-चीनी व्यापारियों के बीच अनबन और स्पर्धा की एक घटना है। हुआ यह कि चीन का अमेरिकी उपभोक्ता बाजार पर बढ़ता प्रसार और चीन के साथ व्यापार में अमेरिका के 235 अरब डॉलर के घाटे के परिवेश में चीनी वस्तुओं को विश्व बाजार में बेचने वाली कंपनियाँ 'वालमार्ट' और 'मेटल' ने अमेरिकी उपभोक्ता बाजार से विभिन्न श्रेणी की दो करोड़ वस्तुओं को वापस मँगवा लिया।
इन वस्तुओं में चीनी गुड़िया भी है, जो अपने दहेज के साथ लकड़ी के खिलौने, पोस्टकार्ड, कारें, बसें, कुत्ते, बिल्ली, रायफल और अन्य प्रकार के रिमोट कंट्रोल से चलने वाले अमेरिकी खिलौनों के
अतिरिक्त टूथपेस्ट, मत्स्य खाद्य, विभिन्न प्रकार के फलों का रस, कार्टून, पुस्तकें, दवाइयाँ, टायर, ब्रेसलेट (कड़े) इत्यादि वस्तुएँ लाई थी, लेकिन अब अचानक अमेरिका के उपभोक्ता उत्पाद सुरक्षा आयोग ने चीनी उपभोक्ता को आगाह किया है कि वे बच्चों के कड़े, धातु, आभूषण वापस कर दें, क्योंकि इनमें सीसे के उच्च स्तर पाए गए हैं।
अमेरिकी चीनी व्यापारियों के बीच जो अनबन की शुरुआत हुई थी उसका नतीजा चीनी गुड़िया को भुगतना पड़ रहा है। सिर्फ अमेरिका ही नहीं न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ताईवान भी चीन से आयातित वस्तुओं को अछूत समझने लगे हैं। चीनी वस्तुओं को जहरीला और खतरनाक बताया जा रहा ह
अमेरिका की यह भी शिकायत है कि चीनी खिलौनों में हानिकारक रंगरोगन और चुंबक के कारण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है। इसी प्रकार लकड़ी की ट्रेन, खिलौने, इंजन और लाल सिग्नल बच्चों से वापस मँगवा लिए गए। दिलचस्प बात यह है कि चीनी गुड़ियों की तिरछी भौंहें स्वीकृत मानदंडों से ज्यादा पाए जाने के कारण अमेरिका के लिए खतरा मानी गईं।
दुःखद स्थिति तब बनी जब खिलौने वापसी के प्रसंग के बीच चीन के प्रसिद्घ खिलौना निर्माता 'ली' द्वारा आत्महत्या कर ली गई, लेकिन तब भी चीनी वस्तुओं पर दोषारोपण नहीं रुका। अमेरिका द्वारा किए गए परीक्षणों में चाइनीज खाने को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया। खाद्य सामग्री में सोडियम की मात्रा ज्यादा और कैलोरी कम होने से स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुँचने का अंदेशा हो गया।
' वालमार्ट' कंपनी द्वारा कराए गए परीक्षण में चीनी ब्रांड के कुत्ते-बिल्ली के आहार में मेलामाइन नामक खतरनाक रसायन पाया गया। नतीजन अमेरिका में बड़ी संख्या में कुत्ते-बिल्लियों की मौत हुई। वैज्ञानिकों ने बताया कि खिलौने और धातु की स्पायरल बाइंडिंग भी बच्चों के मस्तिष्क को क्षति पहुँचा सकती है।
जॉनसन एंड जॉनसन ने विश्वभर में किए गए परीक्षणों के बाद पाया कि एक करोड़ अमेरिकियों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले खाद्य पदार्थों, दवाइयों में एक करोड़ से अधिक अमेरिकी मधुमेह रोगियों में रक्त शर्करा की मात्रा अधिक पाई गई।
इतना ही नहीं, अमेरिका के पदचिह्नों पर चलते हुए न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ताईवान भी चीन से आयातित वस्तुओं को अछूत समझने लगे हैं। न्यूजीलैंड ने विक्रेताओं से कम्बल वापस मँगवा लिए, क्योंकि न्यूजीलैंड के अनुसार उनके कम्बलों में फार्मेल्डीहाइड नामक विषाक्त रसायन का उपयोग हुआ था।
फार्मेल्डीहाइड ऐसा रसायन है, जो वस्तुओं की गुणवत्ता और क्रीज अधिक समय तक बनाए रखता है। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन पर दोष मढ़ा कि चीन निर्मित सुपर लक्स कम्बल से चर्म रोग हो सकता है। योरपीय संघ के कुछ देश भी इसी प्रकार के भय से ग्रसित हुए। वहाँ तो बच्चों को खिलौनों के हैंडलों को छूने की भी रोक लगा दी गई।
दूसरी ओर चीन के अधिकारियों ने चीन के खिलौना निर्माताओं के साथ-साथ अमेरिका की विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनी मैटल पर भी लाखों सीसामढ़ित खिलौनों पर अधिक मात्रा में सीसा होने का दोष मढ़ा। चीन ने तत्काल गुणवत्ता परीक्षण की ओर कदम उठाया और स्वीकार किया कि खिलौनों पर सीसे का स्तर मापने का कोई निश्चित मापदंड नहीं है और कोई भी ऐसा तरीका नहीं है जिनसे जहरीले कणों को मापा जा सके।
साथ ही चीन ने पूछा कि 2004-2005 और 2006 में 90 प्रतिशत निर्यात मान्य गुणवत्ता और स्तर के थे, फिर अभी ही खिलौनों की वापसी की यह समस्या क्यों पैदा हुई?
इसके पीछे संभवतः चीन के बढ़ते हुए निर्यात, विशेषकर अमेरिका के बाजारों में चीनी वस्तुओं की बाढ़ के प्रति ईर्ष्या थी। चीन की व्यापार शक्ति को रोकने के लिए यह आवश्यक समझा गया कि सबसे पहले बच्चों के खिलौने और खाने-पीने की वस्तुओं की वापसी पर हाथ डाला जाए ताकि बच्चों के प्रति संवेदनशील अन्य देश भी अमेरिका का अनुकरण करते हुए चीन की व्यापार शक्ति को कुंद कर दें।
आखिर इस प्रकार के खिलौने युद्घ में चीन भी कहाँ चुप बैठने वाला था। उसने भी अमेरिका से आने वाली वस्तुओं पर प्रतिबंध ही नहीं लगया, बल्कि चीन में उपयोग में लाए जाने वाले अमेरिका निर्मित पेसमेकर, चिकित्सा उपकरणों और अन्य वस्तुओं को वापस कर दिया।
असल बात यह थी कि पिछले कुछ वर्षों से चीन ने व्यापार आधिक्य के बावजूद अपनी मुद्रा युवान का जान-बूझकर अवमूल्यन कर रखा था। फलस्वरूप विश्व बाजार में चीनी निर्यात बढ़ते गए और बाजार स्पर्धा में अमेरिकी वस्तुएँ बाहर हो गईं।
एक ओर अमेरिका का व्यापार घटा और दूसरी ओर व्यापारिक जगत में उसकी साख कमजोर हुई। मुद्रा बाजार में हारने के बाद अमेरिका ने वस्तुओं के बाजार में प्रवेश किया और नए प्रकार का वास्तुदोष पर्यावरण फैलाया। अमेरिका के पास यही एक हथियार था, जिससे वह चीन को हरा सकता था।
इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि केवल चीनी गुड़िया की दहेज समेत वापसी में चीन पूर्णतः निर्दोष हो। चीन ने भी अपने बाजार प्रसार की होड़ में भारत के सिख समुदाय के आध्यात्मिक आभा मंडल पर आघात पहुँचाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। मूर्ति पूजा के विरोधी सिख समुदाय ने चीन द्वारा सजावटी कक्ष में रखने के लिए विभिन्न आकारों की गुरुनानक की मूर्तियाँ बाजार में बेचने के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया।
सिख ग्रंथियों ने सिख समुदाय को निर्देश दिए कि ऐसी प्रतिमाएँ न खरीदें। दिलचस्प बात यह है कि चीन निर्मित गुरुनानक की प्रतिमाओं को मंगोलियन आकृति की तिरछी निगाहों से निरूपित किया गया है, ताकि वे लामा की तरह दिखने वाले मंगोलियन दिख सकें।
चीन के अधिकारियों ने अपनी गुणवत्ता और स्वास्थ्यपरक बनाए रखने में सीसायुक्त रंग-रोगन और मान्य स्तर से अधिक रसायन के उपयोग में सावधानी बरतने का वादा भी किया है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और विश्व बाजारों में चीनी वस्तुओं को संदेह से देखा जाने लगा।
उल्लेखनीय है कि गुणवत्ता को कम और निम्न स्तरीय निर्यात के लिए केवल चीन ही दोषी नहीं, बल्कि समय-समय पर अन्य देशों के आयात भी दोषपूर्ण पाए गए हैं। अतः भारत, चीन और एशिया के अन्य देशों का दायित्व हो जाता है कि विश्व बाजार में उनके व्यापार का हिस्सा बढ़ाने के लिए अपनी गुणवत्ता बनाए रखने पर विशेष ध्यान दें।