पीले पन्नों से उड़ती गुलाबी दिनों की खुशबू

इस बार 'तुम जो मेरे हो' ब्लॉग की चर्चा

रवींद्र व्यास
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पता नहीं कहीं पढ़ा था कि हर व्यक्ति के कमरे में एक ऐसी दराज होती हैं जहाँ उसकी एक डायरी होती है। इस डायरी में रोजमर्रा के अनुभव, सुख-दुःख, आशा-निराशा, आकांक्षा-महत्वाकांक्षा होती हैं। इनमें वे छोटी छोटी बातें होती हैं जो जीवन को अपने ढंग से नए मायने देती है। इनमें कल्पना की उडा़न होती है तो कहीं भावनाओं की लहरें भी हिलोर लेतीं बहती रहती हैं। रिश्ते-नातों से लेकर दुनिया जहान की बातें होती हैं जो उस व्यक्ति को कहीं न कहीं, किसी न किसी स्तर पर प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि दुनिया के महान लेखकों से लेकर आम आदमी ने डायरी में अपने रोजमर्रा के अनुभवों को दर्ज किया है।

पूजा उपाध्याय विज्ञापन जगत में कॉपी एडिटर हैं। उनकी भी एक पुरानी डायरी है। कॉपी के पुराने पन्ने हैं। इसमें वे अपने अहसासों को शब्दों में पिरोने की कोशिश करती हैं। यह कोशिश कई सालों से जारी है और अभी भी चल रही है। उनकी इन डायरी और कॉपी के पन्ने पढ़ो तो इसमें से पुराने दिनों की खुशबू महसूस होती है। वे गुलजार, दुष्यंत कुमार और बशीर बद्र को पसंद करती हैं। पूजा की कविताएँ, गज़लें और नज्में पढ़ो तो लगता है उन्हें शब्दों से खेलना अच्छा लगता है। वे कहती भी हैं कि शब्द जिंदगीभर के मेरे साथी हैं। वे फिल्मे बनाना चाहती हैं, किताब लिखना चाहती हैं और अपनी जिंदगी के हर पल को अपनी तरह से जीना चाहती हैं।

उनकी हजारों ख्वाहिशें हैं उनके ब्लॉग तुम जो मेरे हो को पढ़कर यह अहसास आसानी से होता है कि वे अपनी हजारों ख्वाहिशों को बिना लाग लपेट के भावुकता के साथ कह जाना चाहती हैं। इसमें बात को कहने की एक सरल-सहज कोशिश है। किसी को मोहित करने और प्रभावित करने की कोशिश नहीं बल्कि ख्वाहिशों को अभिव्यक्त करने की बेचैनी महसूस की जा सकती है।

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अपनी कोई कविता या गज़ल पढ़वाने के पहले वे यह सादा बात कहती हैं कि लड़कपन तो नहीं कह सकते लेकिन स्कूल के आखिरी सालों(12 th) में हमेशा कॉपी के आखिरी पन्नों पर केमिस्ट्री के फार्मूला और फिजिक्स के थेओरेम के अलावा ये कुछ खुराफातें मिली रहती थी। माँ हमेशा इन्हें कचरा कहती थी, कोई कॉपी उलट के देखेगा तो क्या कहेगा। पर हम भी पत्थर थे, लिखते रहते थे।

आज मेरे पास एक कूड़ेदान के जैसी दिखने वाली फाइल है, जिसमें सारे पन्ने फटे हुए रखे हैं। जब इनको खोलती हूँ तो लगता है एक दशक पीछे पहुँच गई हूँ...। जाहिर है वे बीत चुके जीवन के उन लम्हों को याद करती हैं और दर्ज करती हैं जिसने उन लम्हों को कुछ खास मायने दिए। उदाहरण के लिए वे अपनी एक गजल पेश करती हैं। मिसाल के तौर पर एक छोटी सी लेकिन मार्मिक बानगी देखिए-

जिस्म के परदे हटा कर रूह तक झाँक लेती हैं
मुहब्बत करने वालों की अजीब निगाहें होती है

और यह भी कि -

मेरे जिस्म में यूँ बसी है उसकी खुशबू
वो मेरी रूह का हिस्सा जैसे
यूँ झुकती हैं पलकें उसको देख कर
वो ही हो मेरा खुदा जैसे

इन दोनों में मोहब्बत की, इश्क की एक बारीक बात है। लहजा भी अच्छा है। इसमें रूहानी स्पर्श है। रूमानियत में लिपटा हुआ। वे अक्सर इश्क-मोहब्बत की बातें करती हैं। इस दौरान जो महसूसा, भोगा उसका एक बखान है बिना किसी मारू अदा के। लेकिन वे इश्क के बादलों पर ही सवार होकर सिर्फ ख्वाब ही नहीं देखती वे हकीकत को स्वीकार करती हैं। जिंदगी में व्यावहारिक होने की कोशिश करती हैं और इसलिए एक नज्म भूली सी शीर्षक नज्म में वे कह सकी हैं कि --

बेजान रिश्तों को दफन करना ही बेहतर है
भूली यादों के सहारे यूँ जिया नहीं करते

उनके इस ब्लॉग पर पुराने दिनों की यादें बिखरी पड़ी हैं, वे महकती रहती हैं। कभी टीस पैदा करती हैं कभी जख्म पर रूई के फाहों की मानिंद सुकून भी देती हैं। याद करना और भूलना साथ साथ जारी रहता है। वे इस अनुभव को सादा लफ्जों का लिबास पहनाती हैं। एक पुरानी याद शीर्षक से गजल में वे कहती हैं-

तुम्हें भूलने की ख्वाहिश शायद अधूरी सी है
फ़िर भी तुम बिन जीने की कोशिश जरूरी सी ह ै

इतने गम मिले मुझको की आदत सी पड़ गई है
फ़िर भी तुम्हारे गम में वो कशिश आज भी थोड़ी सी ह ै

न गुलमोहर है न जाड़ों की धूप और न तुम हो साथ
फ़िर भी उन राहों पर जाने को एक चाह मचलती सी ह ै

मालूम है मुझको कि तुम अब कभी नहीं आओगे
फ़िर भी ख्वाब देखने की मेरी आदत बुरी सी ह ै

इसमें रदीफ-काफिए की चिंता नहीं है, किसी अनुशासन का पालन करने का दबाव नहीं बल्कि अपनी मन में उठी किसी लहर को ज़ज्ब करने की और उसे एक जज्बे के साथ बताने की ख्वाहिश है। उनका यह ब्लॉग इसी तरह की छोटी छोटी ख्वाहिशों से बना है। महका है।

उनकी इस पुरानी डायरी के पन्ने पर गौर फरमाएँ -

ख्वाब पुराने, तुम, और बीते लम्हों की बातें
कुछ भीगी सी और कुछ कुछ धुँधली सी रातें
कुछ उदास सी सुबहें, रूठी यादों के कतरे
कितना कुछ एक अधूरा रिश्ता दे गया...

उनके इस ब्लॉग पर वे अपने मन की खूब बातें करती हैं। इसमें वे कहती हैं कि वे क्षितिज पर जाकर आवाज देना चाहती हैं और आकाशगंगा के सबसे खूबसूरत सितारे का अक्स अपनी आँखों में देखना चाहती हैं। वे इस बात से भी उदास हो जाती हैं कि न खिड़की में चाँद अटका है और न ही कमरे में धूप आई है क्योंकि वे किसी को याद नहीं कर रही हैं।

उनके इस ब्लॉग को पढ़ना एक लड़की के प्यार में बिताए लम्हों से होकर गुजरना है। उसकी पुरानी डायरी के पीले और जर्जर पन्नों से होकर गुजरना है जिसमें से पुराने गुलाबी दिनों की खुशबू अब भी उसका पीछा कर रही है। ये रहा उनके ब्लॉग का पता-

http://tumjomereho.blogspot.com /
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