बुश का वजनदार तर्क

Webdunia
रविवार, 10 जून 2007 (00:53 IST)
एक अक्टूबर 2007 से शुरुआत कर छः माह में इराक से पूरी अमेरिकी सेना की वापसी की माँग को क्रियान्वित करने वाले प्रस्ताव को अमेरिका के रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अपने निषेधाधिकार का प्रयोग करते हुए निरस्त कर दिया।

वे विरोधी दल डेमोक्रेटिक पार्टी की संगठित तथा सुनियोजित निंदा तथा अमेरिकी जनता के आक्रोश से बिलकुल विचलित नहीं हुए। उनका यह तर्क विचारणीय है कि सेना की वापसी की तिथियाँ निश्चित करना और घोषित करना उचित नहीं है। उनका पालन करना कठिन है और शत्रु-पक्ष को जानकारी देना देश के हितों के विरुद्ध है।

राष्ट्रपति बुश ने तो युद्ध की जरूरतों के लिए 124 अरब डॉलर के व्यय की स्वीकृति हेतु विधेयक प्रस्तुत किया था। मगर कांग्रेस में डेमोक्रेट सदस्यों के बहुमत ने उसे पारित होने में व्यवधान डाला। डेमोक्रेट सदस्य इराक में अमेरिका की सैनिक कार्रवाई के खिलाफ रहे हैं। वे इराक से सेना की वापसी पर जोर देते रहे हैं। उनका सोच है कि युद्ध में 655000 लोग मारे गए हैं और 421 अरब डॉलर का खर्चा हुआ है। हालाँकि अमेरिकी प्रशासन के अनुसार 63000 नागरिक और 3351 अमेरिकी सैनिक मारे गए हैं। 25000 सैनिक घायल हुए हैं।

अमेरिकी संसद में डेमोक्रेट्स के पास बहुमत जरूर है, मगर इतना नहीं कि राष्ट्रपति का निषेधाधिकार (वीटो) निरस्त करा सके। राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की धमकी भी कारगर सिद्ध नहीं होगी। डेमोक्रेट सदस्य और संसद की अध्यक्ष नेन्सी पेलोसी राष्ट्रपति बुश से चर्चा कर अवश्य ही इराक से सेना वापसी की दिशा में सार्थक उपाय कर सकते हैं। राष्ट्रपति पद के अगले वर्ष होने वाले चुनाव के प्रत्याशी यह चाहते हैं कि इराक से सेना वापस बुला ली जाए। मगर यह इतना आसान नहीं है।

राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का यह सोचना सही है कि युद्ध में पदस्थ सेनापतियों को युद्धस्थल से छः हजार मील दूर वाशिंगटन में बैठे राजनीतिज्ञों के निर्देश मानने को बाध्य नहीं किया जा सकता। युद्ध की रणनीति तथा व्यूहरचना सैनिकों द्वारा ही तय होनी चाहिए।

सेना की वापसी का मामला ईरान, लीबिया, सीरिया, इसराइल, अरब, अफगानिस्तान तथा आतंकवादी गतिविधियों से भी जुड़ा है। इस्लामी देशों में लोकतंत्र की स्थापना भी महत्वपूर्ण है। इन सबसे अलग यह परमाणु शस्त्रों व रासायनिक हथियारों के खतरों को भी सूचित करता है। हो सकता है राष्ट्रपति बुश ने इराक पर हमला करने में गलती की हो, मगर इराक में शांति और सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था कायम करना भी अमेरिका की अब जिम्मेदारी है या कहें लाचारी है। तब नया राष्ट्रपति भी शायद वही करे जो राष्ट्रपति बुश कर रहे हैं।

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