( यह आलेख 38 वर्ष पूर्व 20 जुलाई को ‘नई दुनिय ा ’ के मुख पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ था, जब चंद्रमा पर मनुष्य ने पहला कदम रखा था।)
चाँद से उतरते ही उन्होंने लौटने की तैयारी की। चंद्रयान के कम्प्यूटर पर उन्होंने पंच किया - 'व ी37 12ई' । संगणक का दिमाग तुरंत चलने लगा और हर मशीन को वह लौटने का कार्यक्रम देन े लगा। एक मिनट बाद संदेश आय ा, इंजन तैयार है ।
आर्मस्ट्राँग और एल्ड्रिन तुरंत अपनी मशीनों की जाँच करने लगे। अगर कोई गड़बड़ होत ी तो यान दो मिनट बाद तुरंत लौट जाता और ऊपर घूम रहे अपोलो से जा मिलता । लेकिन चालक ने कम्प्यूटर में पंच किया - प ी68 अर्थात हमें उतरना है। आज्ञाकारी संगणक ने वापसी के सारे आदेश वापस ले लिए। इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों ने अपनी पूरी यंत्रशाला की एक बार फिर दो घंटे तक जाँच की ।
जिस समय आप यह अखबार पढ़ रहे होंग े, उस समय आर्मस्ट्राँग और एल्ड्रिन खाना खाक र विश्राम कर रहे होंगे । वे चार घंटे आराम करेंग े, अथवा उसके पहले ही चाँद पर उतर आएँग े, यह अभी देखना है । आराम इसलिए जरूरी है कि कल रात चाँद की कक्षा में जाने से आज रात चाँद पर उतरने तक उन्होंने बहुत तनावपूर्ण समय बिताया है और ढेरों काम किए हैं। आज ढाई घंटे उन्हें चाँद पर चलना है ।
कल शाम लगभग साढ़े छह बजे चंद्रमा की दसवीं परिक्रमा के समय चंद्रयान के चाल क एडविन एल्ड्रिन ने अपोलोयान (कोलम्बिया) का दरवाजा खोल ा, और एक गज चौड़े बोगदे में रेंगकर चंद्रयान (ईगल) पहुँच गए। कल भी सोने के पहले वे ईगल में आए थे और सारी मशीनें जाँचकर अपोलो में लौट गए थे। जाँच में यह देखना भी जरूरी है कि ईगल के सिकुड़े हुए पाए खुल रहे हैं या नहीं । एल्ड्रिन के डेढ़ घंटे बाद चंद्रपोत के सम्राट नील आर्मस्ट्रांग ईगल में प्रविष्ट हुए। तीसरे यात्री माइकेल कोलिंस कोलम्बिया में ही रह ग ए, और अंत तक इसी में रहेंगे ।
शाम साढ़े छह से रात ग्यारह बजे तक एल्ड्रिन चंद्रयान की जाँच-पड़ताल करते रह े, और अपोलो से जुड़े हुए चाँद का गोल चक्कर लगाते रहे । यह जाँच इसलिए जरूरी है कि कोलम्बिया और ईगल सचमुच दो स्वतंत्र विश्व हैं । दोनों के पास अपनी अलग रेडियो प्रणाली है। ऑक्सीजन यंत् र, तापमान और दबाव बनाए रखने की मशीनें हैं। दोनों के अलग रॉकेट हैं। जैसे हवाई जहाज उड़ाने के पहले एक चेकलिस्ट पढ़कर जाँच होती ह ै, वैसी ही चंद्रयान में भी अनिवार्य है ।
11 बजकर 17 मिनट पर जब पूरा यान चाँद की तेरहवीं परिक्रमा कर रहा थ ा, चंद्रयान अपोलो से अलग हो गया। अब ईगल और कोलम्बिया चाँद के दो पृथक उपग्रह बन गए। कोलम्बिया से अलग होकर चाँद पर उतरने में ईगल को कई घंटे लगे ।
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चाँद का एक चौथाई चक्कर तो ईगल और कोलम्बिया ने पास-पास ही लगाया। उस समय उनकी दूरी 100-50 मीटर रही होगी। यह पक्षियों जैसी झुंड उड़ान जरूरी थ ी, क्योंकि ईगल इससे पहले कभी उड़ा ही नहीं थ ा, और उसकी परीक्षा जरूरी थी। अगर ईगल में गड़बड़ होती तो आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन कोलम्बिया (अपोलो) लौट आते ।
फिर चाँद के पिछवाड़े में एक पूर्व निश्चित स्थान तथा पूर्व निश्चित समय पर चंद्रयान के निचले खंड ने अपना रॉकेट इंजन जलाया। वह 30 सेकेंड जला। रॉकेट क्योंकि नीचे जला थ ा, इसलिए उसने क्रेक का काम किया। 3500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूमने वाले ईगल की रफ्तार कम हो गई ।
गति नष्ट हो गई तो उसका गोल कक्षा में घूमते रहना संभव नहीं रहा। आकाश में एक अंडाकार कक्षा उसने चुन ल ी, जिसका निम्नतम बिंदु था 115 किलोमीटर (70 मील)। इतना करिश्मा तो मई, 1969 में अपोलो-10 ने भी दिखा दिया है। अब ऐसी उड़ान शुरू हुई, जो आदमी अथवा मशीन ने कभी नहीं की थी। इसका अभ्यास सिर्फ पृथ्वी पर हुआ है ।
9 मील के निम्नतम बिंदु पर आने में ईगल को एक घंटा लगा। इस बिंदु (रात सवा बजे) पर यान का निचला इंजन फिर चालू हुआ और रॉकेट फिर जले। अब यान के लिए संभव नहीं था। कक्षा में, फिर भी अंतिम 12 मिनट में वह लगभग 276 मील चल ा और धीमा होता गया। इस दौरान कम्प्यूटर सिर खुजा-खुजाकर सरगर्मी से काम कर रहे थे। बार-बार वे यान की गति व चाँद की दूरी नाप रहे थे ।
चंद्रयान के इंजन चले और वह सीधा नीचे उतर रहा था। 900 फुट की ऊँचाई पर वह कुछ थमा और नील आर्मस्ट्राँग ने उतरने की संभव जगहों का सर्वेक्षण किया। उन्हें ऐसी जगह चुननी थी, जो ऊबड़-खाबड़ न ह ो, वरना चंद्रयान उलट सकता था। इस समय चंद्रयान एक हेलिकॉप्टर बन गया थ ा, जो ऑटल द्वार से ऊपर नीचे और बाजू में चल सकता था ।
ऊँचाई घटती गई - 5000 फु ट, 3000 फु ट, 1000 फुट। यान चाँद पर गिर रहा थ ा, और अटल द्वारा उसकी रफ्तार कम की जा रही थी। 78 फुट की ऊँचाई पर वह सिर्फ 3 फुट प्रति सेकंड की गति से नीचे गिर रहा था ।
इस ऊँचाई पर यान फिर स्थिर हुआ। यह अंतिम निर्णय का क्षण था। गड्ढे या पत्थर होने पर यात्री ऊपरी खंड के इंजन को चालू करके वापस लौट सकते थे। उनके निचले खंड में अब सिर्फ दो मिनट का ईंधन बचा थ ा, जिससे वे यान को एक-दो फर्लांग इधर-उधर ले जा सकें।
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इससे ज्यादा हलचल वे नहीं कर सकते। चंद्रयान के चार तश्तरीनुमा पंजों में से तीन पर 68 इंच लम्बे र्स्प सूत्र लगे हैं। जैसे ही एक सूत्र ने जमीन को छु आ, एक बत्ती यान में जल ी, जिसका अर्थ यह है कि चाँद से संपर्क हो गया। एक सेकंड बाद यान का इंजन बंद कर दिया गया और आखिरी दो तीन फुट वह अपने आप गिरा ।
और ईगल चंद्रतल पर उतर गया ।
ईगल को लगभग उतना ही धक्का लग ा, जितना कि एक वायुयान को जमीन पर उतरने में लगता है। उसके चार पैरों ने जब चंद्रतल को छु आ तो धूल का एक बादल उठ ा, जो शीघ्र ही नीचे बैठ गया। चाँद पर हवा नहीं ह ै, जिसमें धूल तैरती रहे ।
चंद्रयान ईगल चंद्रमा पर लगभग 22 घंटे रहेगा। भारतीय समय के अनुसार सोमवार सुबह 11-12 पर चंद्रमा की सतह पर मनुष्य का पहला कदम पड़ेगा। पहले नील आर्मस्ट्रांग उतरेंगे। वे चंद्रयान की खिड़की खोलेंगे और यान के एक पाए पर लगी निसैनी के सहारे हौले-हौले नीचे उतरेंगे ।
चंद्रमा की सतह पर दोनों यात्रियों को बहुत सँभलकर चलना होगा। वे चहलकदमी करेंगे तो कोई आवाज नहीं होग ी, क्योंकि चंद्रमा पर हवा नहीं है। उन्हें परस्पर बातचीत भी रेडियो से करनी होगी। अलबत्ता यात्रियों की विशिष्ट पोशाक के भीतर जरूर कुछ सरसराहट होगी। दोनों यात्रियों को हर काम सावधानी से करने का कहा गया है क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का एक बटा छह है। उनसे यह भी कहा गया है कि वे किसी दृश्य को देखने की गरज से यान से दूर न निकल जाएँ ।
चंद्रमा की सतह पर लगभग तीन घंटे रहकर चंद्र यात्रियों को बहुत काम करने हैं । इसलिए वे बाहर निकलने के पूर्व आराम की नींद निकालेंगे और पेट भर भोजन करेंगे। यान में वापस आकर भी वे यही करेंगे ।
चंद्रमा पर नील आर्मस्ट्राँग जहाँ पहला कदम रखेंग े, एक प्लेट रखेंग े, जिस पर लिखा है - ‘हम समस्त मानव जाति के लिए शांति की कामना लेकर आए ।’ इस प्लेट पर तीनों यात्रियों और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के दस्तखत हैं ।
यान से उतरने के बाद आर्मस्ट्रांग अपने सीने पर लगे कैमरे से चंद्रयान और उसके उतरने के स्थान की तस्वीरें उतारेंगे। फिर चाँद के कंकड़-पत्थर का नमूना उठाकर अपने पास वाली संदूक में रख लेंगे। दोनों यात्रियों के पास एक-एक संदूक ह ै, जिनमें कुल 23 किलोग्राम नमूने भरने का इरादा है। इस काम के लिए उनके पास विशेष प्रकार के कुदाली-फावड़े हैं ।
चंद्र यात्री वहाँ एक रेडियो स्पर्श सूत्र भी कायम करेंग े, जो पृथ्वी को टेलीविजन चित्र भेजेगा। वे चंद्रमा पर एक भूकंप मापक यंत्र भी रख देंग े, जो एक साल तक पृथ्वी को चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों की जानकारी भेजता रहेगा। सौर हवाओं और चंद्रमा की गतिविधियों की जानकारी भेजने वाले यंत्र भी वहाँ रखे जाएँगे। सोमवार रात्रि को जब चंद्रयान यात्रियों को लेकर मूल यान से संगमन (डाकिंग) के लिए रवाना होग ा, तब वह अपनी मकड़ी जैसी टाँगे (निचला हिस्सा) चंद्रमा पर ही छोड़ आएगा।