लिखना होगी अपने प्रदेश की नई इबारत

स्थापना दिवस पर विशेष

Webdunia
- विनय छजलानी
मध् यप्रदेश की स्थापना के आज 53 वर्ष पूरे हो गए। 'नईदुनिया' ने न केवल इसे आकार लेते हुए देखा है बल्कि इसकी विकास यात्रा को सबसे करीब से महसूस भी किया है। देखा और महसूस क्या किया है, 'नईदुनिया' तो दरअसल इस सफर में सहयात्री भी रहा है और सजग प्रहरी भी।

मध्यप्रदेश के सुख-दुख को साथ में जीते हुए कोशिश हमेशा यही रही है कि दिशा से भटकाव होने पर चेतावनी के बिगुल बजाए जाएँ, मील के पत्थर दिखाए जाएँ, वहीं उपलब्धियों के वंदनवार सजाकर सफलता का उत्सव मनाने का क्रम भी चलता रहा है। पीछे मुड़कर देखने पर एक टीस यही उठती है कि वंदनवार सजाने के मौके कम मिले और बिगुल बजाने के ज्यादा।

आज असल में वंदनवार और मील के पत्थर एकसाथ दिखाने का दिन है। जहाँ हम प्रचुर खनिज भंडार वाले अपने ही एक भौगोलिक क्षेत्र से जुदा होने का दर्द समेटते हुए आगे बढ़े, वहीं हमने बेरोजगारी और समेकित नागरिक विकास की चुनौतियों का भी सामना किया।

एक शिशु भी अपने जन्म के साथ ही अपनी पहचान तलाशना शुरू कर देता है। हम आज 53 साल बाद भी अपनी इस तलाश को पूरा नहीं कर पाए हैं। 'आइडेंटिटी क्राइसिस' से उपजी इस तीव्र उत्कंठा ने ही आज हमारे प्रदेश के मुखिया को 'अपना मध्यप्रदेश' का नारा देने के लिए प्रेरित किया है। मैं उम्मीद करता हूँ कि यह नारा केवल एक कोरी भावनात्मक अपील न बनकर रह जाए। हम दृढ़ संकल्प और ठोस व्यावहारिक उपायों के माध्यम से इस नारे को प्रदेश के बाशिंदों के दिल में पिरो सकें तो ही इसकी सार्थकता है।

बहुत बुनियादी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। यह नारा लोगों के दिलों में तभी उतर पाएगा, जब इसे लेकर राजनीति से प्रशासन तक हर स्तर पर पूरी ईमानदारी दिखाई दे। हम आधारभूत ढाँचे का विकास किए बगैर लोगों के दिलों को नहीं जोड़ पाएँगे। बिजली-पानी नहीं हो तो लोग घर छोड़ने को मजबूर हो जाएँगे और रोजी की चिंता नारे की आवाज पर भारी पड़ जाएगी।

मैं सूचना प्रौद्योगिकी से बहुत करीब से जुड़ा हूँ और कब से अपने प्रदेश को आईटी में सिरमौर देखने की इच्छा सँजोए हूँ। यहाँ हम बिगुल ही बजाते रह गए हैं और वंदनवार सजाने का मौका ही नहीं मिल रहा। कपास, सोयाबीन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे महत्वपूर्ण और संभावनाशील क्षेत्रों की उम्मीदें भी केवल फाइलों और समझौतों के भीतर से झाँक रही हैं।

आज प्रदेश का हर व्यक्ति जब बाहर घूमकर आता है तो वह भी मेरी तरह यही सवाल करता होगा कि जब गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में यह सब हो सकता है तो मेरे मध्यप्रदेश में क्यों नहीं? आखिर विकास की यह इबारत कब लिखी जाएगी।

मुझे विश्वास है कि 54वें स्थापना दिवस के लिए सजे वंदनवारों के बीच से बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए गड़े मील के पत्थर मेरी तरह आप सभी को भी दिखाई दे रहे होंगे। आइए, एक नई यात्रा शुरू करें, 'अपना मध्यप्रदेश' बनाने के लिए...।

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