लु़डविग विट्गेंश्टाइन

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012 (13:34 IST)
ludwig wittgenstein
भाषा ही ईश्वर है- विट्गेंश्टाइन शायद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 'भाषा' का दर्शन गढ़ा। भाषा विज्ञान में जब दर्शन का उल्लेख होता है तो विट्गेंश्टाइन का नाम अवश्य याद रखा जायेगा।
 
विट्गेंश्टाइन की 'भाषाई थ्योरी' के कारण तर्क के साम्राज्य में काफी उथल-पुथल मची थी। कई लोगों ने उन्हें और उनके लेखन को दर्शन‍ के ‍विपरीत भी कहा, किन्तु ऐसा कहना इसलिए गलत होगा कि विट्गेंश्टाइन से पहले भी तर्कशास्त्रियों ने भाषा के तार्किक विश्लेषण पर जोर डाला था। विट्गेंश्टाइन के गुरु बर्टेंड रसल रहे हैं।
 
अपनी पहले की पु्स्तकों में विट्गेंश्टाइन सत्य के लिए भाषा का महत्व बताते नजर आते हैं किन्तु अपनी अन्तिम पुस्तक फिलासफी इंवेस्टीगेशन में भाषा में व्याप्त बायस का विवरण किया है। विट्गेंश्टाइन का ये निष्कर्ष दार्शनिक जगत के लिए नूतन और महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
 
विट्गेंश्टाइन ने एक प्रकार से इस विचार का प्रतिपादन किया कि भाषा से सत्य का विवरण नहीं बल्कि सत्य का निर्माण किया जाता है। समस्त पाश्चात्य दर्शन भाषा में ही निहित है, किन्तु भाषा हमें सत्य का एक रूप ही प्रदर्शित करती है, वह सत्य जो हम अपनी मान्यता या अनुभव से निर्मित करते हैं।
 
विट्गेंश्टाइन बार-बार एक लेंगवेज गेम्स का उल्लेख करते हैं, जिसमें भाग लेने वाले किसी सत्य की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का निर्माण व उपयोग करते हैं। इस खेल के माध्यम से विट्गेंश्टाइन भाषा से विविरत तथ्यों व सत्य में अंतर बताते हैं।
 
वैसे दिलचस्प है विट्गेंश्टाइन को पढ़ना। वे कहते है कि भाषा से बाहर सृष्टि की कल्पना करना व्यर्थ है। हमारी भाषा के अलावा पशु, पक्षियों, नदी, पहाड़ों और दूर स्थित तारे की भी अपनी अलग भाषा होती है। वायु की आवाज उसकी भाषा है। आकाश का नाद उसकी भाषा है। कोई है इसका मतलब ही यह है कि उसन व्यक्त किया किसी अनजान भाषा में। ईश्वर होगा तो वह भी भाषा से बाहर नहीं हो सकता इसीलिये कहा जा सकता है कि- भाषा ही ईश्वर है। विट्गेंश्टाइन से पूर्व वैदिक ऋषियों ने कहा था- शब्द ब्रह्म है।
 
भारतीय और पाश्चात्य दर्शन में जो फर्क मुझे समझमें आता है वह यह की भारतीय दर्शन में अंतरदृष्टि है तो पाश्चात्य दर्शन वैचारिक दृष्टि। अर्थात विजन और थॉट में जो फर्क है बस वही। फिर भी मुझे विट्गेंश्टाइन पसंद है।
 
जीवन परिचय : विट्गेंश्टाइन (1889-1951) की गिनती ऑस्ट्रेलिया और इंग्लेंड के फिलासफरों में ऊपर से शुरू की जाती है। उनके जीते जी एक ही पुस्तक प्रकाशित हो पाई Tractatus Logico-Philosophicus। बाद की प्रकाशित पुस्तकों में Philosophical Investigations काफी चर्चीत रही। विट्गेंश्टाइन केम्ब्रीज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे हैं। विट्गेंश्टाइन के पिता कार्ल एक यहूदी थे जिन्होंने बाद में प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया था।
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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