जब भारत का विभाजन हुआ था तब खासकर सिंध, कश्मीर, पंजाब और बंगाल के लोगों ने सबसे ज्यादा दर्द झेला था। विभाजन तो पंजाब और बंगाल का ही हुआ था। एक ऐसा दौर था जबकि अंग्रेजों द्वारा बंगाल का विभाजन किया जा रहा था तो संपूर्ण बंगालियों ने एक स्वर में इसका विरोध किया था।
बंग-भंग आंदोलन : सबसे ज्यादा आंदोलन और विद्रोह बंगाल में हुए। 1757 में प्लासी के विद्रोह से लेकर 1905 के बंग-भंग आंदोलन तक बंगाल ने बहुत कुछ सहा और देश में बंगाल में हुए आंदोलन की कड़ी में संन्यासियों के आंदोलन की चर्चा भी प्रमुखता से की जाती है।
सन 1905 में वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल का विभाजन यह तर्क देकर किया गया कि इतने बड़े प्रांत का एक लेफ्टिनेंट गवर्नर ठीक ढंग से प्रशासन नहीं चला सकता है अत: बंगाल का विभाजन जरूरी है। उसका कहना था कि तत्कालीन बंगाल प्रान्त, जिसमें बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे, बहुत बड़ा है। इसमें पूर्वी बंगाल के जिलों की उपेक्षा होती है, जहां मुसलमान अधिक संख्या में हैं। अत: उत्तरी और पूर्वी बंगाल के राजशाही ढाका तथा चटगांव डिवीजन में आने वाले 15 जिले आसाम में मिला दिए गए और पूर्वी बंगाल तथा आसाम नाम से एक नया प्रान्त बना दिया गया जिसे बंगाल से अलग कर दिया गया। बिहार तथा उड़ीसा को पुराने बंगाल में सम्मिलित रखा गया था। इस तरह पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल नामक दो हिस्से बने।
बंगाल के हिन्दुओं ने बंग भंग का भारी विरोध किया। उनका कहना था कि धर्म के आधार पर एक राष्ट्र को विभाजित कर देना बंगालियों की एकता को खंडित करना था। सभी बंगालियों का धर्म कुछ भी हो परंतु हैं सभी बंगाली। बंग भंग के विरोध में अंग्रेजी माल और वस्त्रों का बहिष्कार किया गया और 17 अक्टूबर को, जिस दिन बंगविच्छेदन किया गया, राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया गया। इस आंदोलन में 'वंदेमातरम्' का नारा संपूर्ण देश में गूंज गया था। कई लोगों को अपनी जानें देना पड़ी और हजारों लोगों को जेल भेज दिया गया।
बंग भंग के इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने मुसलमानों के अपनी ओर मिलाकर उन्हें कई तरह के प्रलोभन दिए, परंतु इससे और भी रोष फैल गया और आंदोनल पहले से ज्यादा उग्र हो गया जिसके चलते दिसम्बर 1911 में बंग विच्छेद संबंधी आदेश में संशोधन करके पूर्वी बंगाल के 15 जिलों को आसाम से अलग करके पश्चिमी बंगाल में फिर संयुक्त कर दिया गया। इसके साथ ही बिहार तथा उड़ीसा को बंगाल प्रांत से अलग कर दिया गया। संयुक्त बंगाल का प्रशासन एक गवर्नर के अधीन हो गया।
असफल हो गया तब आंदोलन जब बना पूर्वी पाकिस्तान : 1757 में प्लासी के विद्रोह से लेकर 1905 के बंग-भंग आंदोलन तक क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया बलिदान उसे वक्त असफल सिद्ध हो गया जबकि 1947 ईस्वी में भारत के विभाजन के समय तात्कालिन नेताओं ने पूर्वी बंगाल को इस आधार पर पाकिस्तान के जिम्मे सौंप दिया कि वह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जबकि वहां पर 40 प्रतिशत के लगभग हिन्दु आबादी भी निवास करती थी और जहां पर हिन्दू धर्म से जुड़े कई शक्तिपीठ एवं प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल भी मौजूद थे। भारत को इसी शर्त पर स्वाधीनता प्रदान की गई कि उसका विभाजन भारत तथा पाकिस्तान नाम के दो राज्यों में कर दिया जाए। फलस्वरूप बंगाल के ढाका तथा चटगांव डिवीजन के कुछ जिलों को अलग करके पूर्वी पाकिस्तान का निर्माण कर दिया गया।
पूर्वी पाकिस्तान को मिला पंजाबी पाकिस्तानियों से छुटकारा : दरअसल, पाकिस्तान पर प्रारंभ से ही पंजाबियों का ही कब्जा रहा है जो आज भी है। वहां पर बलूच, पख्तून, सिंधि या अन्य प्रांत के लोगों का कोई जोर नहीं चलता है। इसी तरह बंगाल पर भी पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का ही जबरन कब्जा ही था। बंगाल के मुस्लिमों ने भारत विभाजन के समय कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहा था। वहां के आधे लोग भारत से मिलना चाहते थे और अधिकतर लोग एक स्वतंत्र देश बनना चाहते थे। इसी भावना के चलते पाकिस्तानियों ने बंगाल का दमन करना प्रारंभ किया। वहां के शिया और हिन्दुओं पर अत्याचार का लंबा सिलसिला प्रारंभ हुआ। इस अत्याचार के चलते लाखों हिन्दुओं और मुस्लिमों ने भारत की ओर पलायन करना प्रारंभ कर दिया था। परिणाम स्वरूप बंगाली मुस्लिमों ने भारत से मदद की गुहार लगाई और बंगाल को पाकिस्तान से स्वतंत्र कराने के लिए अंदोलन चले। इसमें मुक्तिवाहिनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। परिणाम स्वरूप 16 दिसम्बर, 1971 ईस्वी को पूर्वी पाकिस्तान शेष पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र सार्वभौम प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र बन गया, जो अब 'बांग्लादेश' कहलाता है।