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हीरों की 18 किलोमीटर मोटी परत, बुध ग्रह पर हीरे ही हीरे

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राम यादव

बुध ग्रह हमारे सौरमंडल में सूर्य का सबसे नज़दीकी और सबसे अधिक तापमान वाला ग्रह है। एक नए अध्ययन के अनुसार, उसकी ऊपरी सतह के नीचे हीरे की एक मोटी परत हो सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि यह खोज सूर्य के निकटतम ग्रहों और सौरमंडल के बाहर के बाह्य ग्रहों के बारे में भी हमारी अब तक की समझ को बदल सकती है।  
 
वैज्ञानिकों ने बुध ग्रह की आंतरिक संरचना का नए सिरे से अध्ययन किया है और सुझाव दिया है कि बुध ग्रह (Mercury) पर जिस तरह की चरम परिस्थितियां हैं, उनके कारण उसके भीतर के गर्भगृह जैसे क्रोड़ (कोर) और क्रोड़ के ऊपर की पर्पटी (मैंटल) के बीच की सीमा पर हीरे के निर्माण को बढ़ावा मिला हो सकता है।
 
बुध का वायुमंडल नहीं के बराबर : केवल 4880 किलोमीटर व्यास वाला बुध ग्रह सूर्य से 5 करोड़ 80 लाख किलोमीटर की औसत दूरी पर रहकर सूर्य की परिक्रमा करता है। उसकी ऊपरी सतह पर दिन में अधिकतम +430 डिग्री सेल्सियस और रात में –170 डिग्री सेल्सियस के बराबर तापमान होता है। बुध का वायुमंडल इतना विरल है कि उसे नहीं होने के बराबर कहा जा सकता है।
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बुध के भीतरी क्रोड़ और ऊपरी पर्पटी वाले आवरण के बीच हीरे के निर्माण की संभावना होने के दो परिदृश्य सुझाए जा रहे हैं :
(ए) कार्बन-संतृप्त मैग्मा का एक ऐसा चुंबकीय महासागर रहा होगा, जिसमें कार्बन के क्रिस्टलीकरण से हीरे की मोटी परत बनी होगी। मैग्मा, चट्टानों का पिघला हुआ ऐसा रूप है, जो अर्ध ठोस (semi-solid) होता है। उसकी रचना ठोस, आधी पिघली हुई अथवा पूरी तरह पिघली हुई चट्टानों के द्वारा होती है। 
 
(बी) आंतरिक कोर का ही कुछ ऐसा क्रिस्टलीकरण हो गया होगा कि इस क्रिया से बने हीरे, कोर-मैंटल सीमा से बाहर निकल आए होंगे। 
 
बुध ग्रह कई रहस्यों से भरा है : अपनी काली ऊपरी सतह और घने क्रोड़ के लिए जाना जाने वाला बुध ग्रह कई रहस्यों से भरा है। नासा के 'मैसेंजर' जैसे पिछले मिशनों ने उसकी ऊपरी सतह पर ग्रेफाइट की प्रचुरता दिखाई थी, जो उसके कार्बन-समृद्ध अतीत की ओर संकेत है। इन अवलोकनों ने शोधकर्ताओं को इस ग्रह की ज्वालामुखीय सक्रियता वाले इतिहास का पता लगाने के लिए प्रेरित किया।
 
चीन और बेल्जियम के शोधकर्ताओं ने बुध की आंतरिक स्थितियों का अनुकरण करने के लिए उच्च दबाव वाले प्रयोगों और ताप गतिकीय (थर्मोडायनैमिक) मॉडलिंग का उपयोग किया है। चीन के यान्हाओ लिन का कहना है कि एकसाथ बहुत उच्च दबाव एवं तापमान होने पर बुध ग्रह की परिस्थितियों जैसी स्थिति में ग्रेफाइट से हीरे के निर्माण की संभावना बनती है।
 
हीरों की 18 किलोमीटर तक मोटी परत : यान्हाओ लिन के शोध कार्य से पता चलता है कि बुध की सतह पर मौजूद ग्रेफाइट, कार्बन की अधिकता वाले एक ऐसे पिघले हुए मैग्मा महासागर से आया होगा, जो जम गया और ग्रेफाइट युक्त परत बन गया। उस समय ग्रह की कोर-मैंटल सीमा पर की स्थितियां ग्रेफाइट को हीरे में बदलने के लिए अधिकतम अनुकूल रही होंगी, इतनी अनुकूल कि हीरों की 18 किलोमीटर तक मोटी परत बन गई होगी।
 
यह खोज बुध के चुंबकीय क्षेत्र को समझने के लिए भी उपयोगी है, विशेष रूप से बुध ग्रह के आकार से मिलते-जुलते ग्रहों के संदर्भ में। हीरे का निर्माण किसी ग्रह के तरल क्रोड़ में तापीय (थर्मल) गतिशीलता और संवहन को और इसी प्रकार किसी ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र के गठन को भी प्रभावित कर सकता है।
 
यह अध्ययन हमारे सौरमंडल से बहुत दूर की कार्बन-समृद्ध बाह्यग्रह (एक्सोप्लेनेट) प्रणालियों के संदर्भ में भी दिलचस्प दृष्टिकोण प्रदान करता है। बुध पर यदि सचमुच हीरे की एक मोटी परत है, तो दूरदराज़ के अन्य ग्रहों पर भी ऐसा हो सकता है। बुध ग्रह के उदाहरण से अंतरिक्ष के सघन अन्वेषण और बुध से मिलते-जुलते ग्रहों की खोज के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं।

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