अपने गिरेबां में भी झांककर देख ले अमेरिका!

संदीप तिवारी
अमेरिका सारी दुनिया का एक 'स्वयंभू समाज सुधारक' है और इसे दुनिया के धार्मिक समूहों, जातियों, प्रजातियों की आजादी को लेकर एक जबर्दस्त खब्त है। इस कारण से यह सारी दुनिया के देशों में अपने धार्मिक आजादी पर निगाह रखने वाले अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ या यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम) के एक दल को भेजकर वहां के लोगों के धार्मिक अधिकारों और उनके हनन को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी करता है। इतना ही नहीं, अपनी रिपोर्ट में यह इस बात की भी जानकारी देता है कि कौनसे देश में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का हनन हो रहा है और कितना?  
इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में भारत में असहिष्णुता बढ़ी है और धार्मिक आजादी के उल्लंघन की घटनाएं बढ़ी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक हिंदूवादी गुटों से धमकियां मिलती हैं, उनका उत्पीड़न होता है और उनके खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। पुलिस और अदालतों का रवैया पक्षपातपूर्ण है और अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। फरवरी 2016 में संघ की एक बैठक में भाजपा के कई राष्ट्रीय नेताओं की मौजूदगी के बावजूद मुस्लिम नेताओं को 'शैतान' कहा गया। मुस्लिम लड़कों को चरमपंथी बताकर जेल में डाल दिया जाता है और बिना मुकदमे के उन्हें वर्षों तक जेल में रखा जाता है।
 
गोहत्या पर रोक के नाम पर मुस्लिमों, दलितों का आर्थिक नुकसान हो रहा है। वर्ष 2014 में ईसाई लोगों पर हिंसा के 120 मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन वर्ष 2015 में यह मामले 365 हो गए। साम्प्रदायिक हिंसा के मामले बढ़े हैं और धर्म के मामले पर मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा होती है। अमेरिका सरकार को इस बात से भी धक्का लगा कि वर्ष 2016 में भारत ने संगठन की टीम को वीजा देने से इनकार कर दिया था।
 
दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश में जहां ऐसा होता है, वहीं दुनिया की सबसे बड़ी ताकत में क्या सभी कुछ सामान्य है? क्या अमेरिका में हिंसात्मक घटनाएं नहीं होती हैं? क्या भीड़ ने साठ के दशक में अमेरिका को हिलाकर नहीं रख दिया था? क्या अमेरिका के वामपंथी फासिस्टों ने डोनाल्ड ट्रम्प की रैलियों में हिंसा और उपद्रव नहीं किया? ग्यारह मार्च को शिकागो और एक मई को कोस्टा मेसा, कैलिफोर्निया में उपद्रव हुआ? यह कोई असामान्य और अनोखी घटना नहीं है? इससे पहले वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन के विरोध में सीएटल में दंगे हुए थे? वर्ष 1999 में वैश्विक पूंजीवाद को लेकर भी उपद्रव हुए थे? 
 
वर्ष 2012 में अमेरिका-विरोधी (या युद्ध विरोधी) आंदोलन हुआ था जिसे 'ऑकुपाई वाल स्ट्रीट' का नाम दिया गया था? इसके बाद भी देश भर में असंतोष पनपा था? वर्ष 2015 में इन वामपंथियों ने पैसा जुटाकर 'ब्लैक लाइव मैटर' नाम का आंदोलन खड़ा किया था, जिसके तहत फर्गुसन और बाल्टीमोर में पुलिस को निशाना बनाया गया। पुलिस के अलावा, आंदोलनकारियों का खास निशाना थे वे 'श्वेत लोग' जो अपने को रंग, जाति और सेक्स के आधार पर श्रेष्ठतम समझते रहे हैं।
 
जॉन पेराजो ने हाल ही में एक ई-बुक लिखी है 'द न्यू लेफ्टविंग मोबोक्रेसी' जिन्होंने हाल के और अतीत के उन दंगों, फसादों, अराजकता, हिंसा और असहिष्णुता को गिनाया है। उनका कहना है कि क्या जाति (प्रजाति) के आधार पर ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे आंदोलन अमेरिका में नहीं हुए? अपने समूचे इतिहास में अमेरिका एक ऐसा देश रहा है जो कि दो चीजों के लिए जाना गया : पहला प्रवासियों का देश और दूसरा बेजोड़ धार्मिक विविधता। हालांकि अमेरिका में वैसे भयानक धार्मिक युद्ध और दशकों तक चलने वाले संघर्ष नहीं हुए जो कि मध्यपूर्व के इस्लामी देशों की पहचान हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अमेरिका में धार्मिक आधार से जुड़े संघर्षों का इतिहास नहीं रहा है। 
 
अमेरिका के समूचे इतिहास में क्रांतिकारी युद्ध से लेकर 11 सितंबर को आतंक हमले और उसके परिणाम भी धर्म से ही जुड़े रहे हैं। यहां पर भी धार्मिक असहिष्णुता से लेकर धार्मिक दमन और हिंसा होती रही है। यहां पर धार्मिक के साथ-साथ संजातीय (एथनिक) और प्रजातीय संघर्ष भी हुए हैं। चूंकि यहां धर्म को लेकर असंतोष, हिंसा, भेदभाव और दमन कम हुआ तो इसके कुछ ऐतिहासिक कारण रहे हैं।  
 
यह कहना गलत न होगा कि अमेरिका एक ऐसा देश है जो कि धार्मिक संघर्षों से पैदा हुआ है। यहां पर यूरोप के वे लोग आकर बसे जोकि यूरोप में धार्मिक दमन का शिकार हो रहे थे। अमेरिकी क्रांति में धर्म की एक खास भूमिका रही है और क्रांतिकारियों का मानना था कि ब्रिटिश लोगों के खिलाफ युद्ध करना ईश्वर की मर्जी है। जहां चर्च ऑफ इंग्लैंड एक ओर समानता आधारित राज्य बनने की ओर अग्रसर था, वहीं अमेरिका की प्रत्येक कॉलोनी (या औपनिवेशिक बस्ती) में अपने ही तरह की ईसाइयत हावी थी। चूंकि यह ब्रिटेन से दूर था और औपनिवेशिक बस्तियों के बीच गुंजाइश थी इसलिए अलग-अलग तरह की ईसाइयत भी पनपी।           
 
जिन एंगलिकन्स ने चर्च ऑफ इंग्लैंड का सामना किया, वे वर्जीनिया, मैसाचुएट्‍स में बस गए और वे प्यूरिटान्स या ईसाई धर्म के एक दूसरे पंथ, प्रोटेस्टेंट्‍स, के अनुयायी बन गए। पैंसिलवानिया में क्वेकर या ईसाई आंदोलन के एक दूसरे पंथ-रिलिजियस सोसायटी ऑफ फ्रेंड्‍स- के सदस्य बन गए। बैप्टिस्ट्स का रोड आईलैंड पर वर्चस्व हो गया तो रोमन कैथोलिक का स्वर्ग मैरीलैंड बन गया। हालांकि यहां प्रोटेस्टेंट्‍स अधिक थे लेकिन‍ फिर भी उन्हें यहां बसने का स्थान मिल गया।
 
अमेरिकी उपनिवेशवादियों ने क्रां‍ति को न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए अपनाया वरन उन्होंने तेरह कॉलोनीज की धार्मिक विविधता भी बरकरार रखी। कहने का अर्थ है कि राजनीतिक संघर्ष की लड़ाई धार्मिक आजादी और स्वतंत्रता की लड़ाई भी बन गई। साथ ही, यह भी सोचा गया कि अमेरिकी महाद्वीप में विभिन्न ईसाई संप्रदायों, मजहबों या दीन के लोग शांति पूर्ण तरीके से साथ रह सकें, इसके लिए इंग्लैंड से नाता तोड़ लिया गया। यह एक तरह से विभिन्न ईसाई सम्प्रदायों और चर्च ऑफ इंग्लैंड के बीच की लड़ाई थी क्योंकि चर्च ऑफ इंग्लैंड अपनी सभी कॉलोनीज में एकरूप वाला एंग्लिकन धर्म चाहता था। 
 
प्रारंभिक धार्मिक दमन : इसके बाद शुरुआती धार्मिक दमन का समय शुरू हुआ। क्रांतिकारी युद्ध के साथ विभिन्न राज्यों और ईसाई संप्रदायों में बहुत लड़ाई हुई। वर्जीनिया में एंग्लिकन लोगों का प्रभाव था जो कि चर्च ऑफ इंग्लैंड के समर्थक थे, इस कारण से इन लोगों ने बैपटिस्ट और प्रेस्बिटेरियन लोगों का दमन किया। एंग्लिकन्स ने बैपटिस्ट्‍स के खिलाफ बहुत ही अधिक असहिष्णुता दिखाई और सामाजिक विद्वेष पैदा किया। वर्ष 1771 में वर्जीनिया के एक स्थानीय शेरिफ ने एक बै‍‍प्ट‍िस्ट धर्मप्रचारक को उनके पैरिश के स्टेज से घसीटकर नीचे फेंक दिया और नीचे जमीन पर घोड़े की चाबुक से उन्हें बीस कोड़े लगाए गए। 
 
इसी तरह वर्ष 1778 में दो बैप्टिस्ट मिनिस्टर, डेविड बारो और एडवर्ड मिंज, सर्विसेज आयोजित कर रहे थे। उनका यह अनुष्ठान मिल स्वाम्प बैप्टिस्ट चर्च, पोर्टसमाउथ, वर्जीनिया में चल रहा था। उनकी प्रार्थना के पूरा होते ही लोगों की भीड़ ने दोनों मिनिस्टर्स को पकड़ लिया और उन्हें घसीटते हुए समीपवर्ती नैनसीमंड ‍नदी की दलदल में ले गए जहां उन्हें दलदल में सिरों तक गाड़ दिया गया। बाद में, बड़ी मुश्किलों के बाद दोनों की जान बच सकी थी।
 
देश के क्रांतिकारी युद्ध के दौरान भी राजनीतिक कारणों से धार्मिक संघर्ष देखने को मिला।
इस अवधि में कुछ राज्यों ने चर्चों को समाप्त कर दिया जबकि अन्य दूसरों को सहायता दी और उन्हें धर्म प्रचार करने का लाइसेंस दिया। स्थापित चर्चों को मदद देने के लिए दूसरे धर्मों के लोगों से कर वसूल किया गया। धार्मिक प्रतिष्ठान या सरकारी सहायता प्राप्त धर्म के मामले में हर राज्य की अपनी-अपनी नीति थी। जब 1789 में संविधान को ग्रहण किया गया और इसमें फर्स्ट अमेंडमेंट रिलीजियन क्लाजेज को दरकिनार किए जाने के बाद अमेरिका का स्वरूप आधुनिक हो गया।
 
अठारहवीं सदी में : उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में धार्मिक संघर्ष अपेक्षाकृत कम हो गए और इस दौरान मुख्यत: संघर्ष कैथोलिक्स और प्रोटेस्टेंट्स के बीच हुआ और इस लड़ाई में आयरिश प्रवासी कैथोलिक लोगों को हिंसा का शिकार होना पड़ा। इस सदी में प्रवासियों के आगमन से कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट्‍स सक्रिय होते गए। देश में प्रोटेस्टेंट्‍स के मूल्य हावी होते गए और इस दौरान जो कैथोलिक देश में आए, उन्हें बाहरी और अनडेमोक्रेटिक समझा गया। इस दौरान देश में आयरिश लोगों को लेकर भी बहुत दुर्भावना फैली। 
 
1830 और 40 के दशक में पूर्वोत्तर और अन्ह हिस्सों में कैथोलिक विरोधी हिंसा फैली। इस दौरान स्थानीय अमेरिकियों और आयरिश कैथोलिक लोगों के बीच इतनी हिंसा हुई कि मार्शल लॉ लगाना पड़ा। फिलाडेल्फिया इस हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ। ठीक इसी दौरान उत्तरपूर्व के हिस्सों में कैथोलिक विरोधी हिंसा फैली। इस क्षेत्र से एक और धार्मिक गुट 'द मॉर्मन्स' को खदेड़ा जाने लगा। मॉर्मन 1830 में बुक ऑफ मॉर्मन की खोज के बाद न्यूयॉर्क, ओहायो, मिसौरी, इलिनॉयस से भगा दिए गए और इन्होंने अंत में उता में अपना डेरा जमाया। 
 
इस बीच वर्ष 1839 में नोवू में मॉर्मन्स ने डेरा जमाया और शहर विकसित हो गया। एक बड़ा मॉर्मन मंदिर भी बनाया गया। तीन वर्षों के दौरान मॉर्मन्स सम्पन्न हो गए और इनके संस्थापक जोसेफ स्मिथ ने घोषणा कर दी कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ेंगे। इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी और ईर्ष्या फैल गई। स्मिथ और उनके भाई हीरम को अनैतिक बातें फैलाने के लिए गिरफ्‍तार कर लिया गया। 27 जून, 1844 में एक मॉर्मन विरोधी भीड़ ने नोवू शहर पर हमला कर दिया और इसे जलाकर राख कर दिया। इन लोगों ने जेल की उन कोठरियों पर भी हमला किया जहां स्मिथ और उनका भाई बंद था। भीड़ ने दोनों को पकड़ लिया और दोनों को फांसी दे दी।  
 
नोवू की समाप्ति के बाद, ब्राइम यंग ने मॉर्मन्स का नेतृत्व किया और वे उन्हें उता ले गए। यहां ये लोग फिर से पनपने लगे। लेकिन वर्ष 1857 में फिर यह आशंका जाहिर की जाने लगी कि मॉर्मन्स फिर से अपना धार्मिक राज्य बना लेंगे। तत्कालीन राष्ट्रपति ने संघीय सेना तैनात कर दी, अपने न्यायाधीश बैठा दिए और एक गैर-मॉर्मन को गवर्नर बना दिया गया। इसी दौरान कुख्यात माउंटेन मीडो हत्याकांड हो गया। स्थानीय मॉर्मन्स ने कैलिफोर्निया जाने वाले पायोनियर्स (अमेरिकी इतिहास के ऐसे लोग जोकि पश्चिम की ओर जाकर बसे और जिन्होंने नई ‍बस्तियों को बसाया) पर हमला बोल दिया और इनमें से 120 लोगों की हत्या कर दी। ये लोग मॉर्मन्स के कट्‍टर आलोचक थे और उनका कहना था कि वे कैलिफोर्निया से वापस आकर उन पर हमला कर देंगे।
 
इस हत्याकांड ने मॉर्मन विरोधी भावनाओं को हवा दी। तनाव बढ़ गया और मॉर्मन्स की सेना, द नोवू लेजियंस, से कहा गया कि वे दो हजार अमेरिकी सैनिकों से मुकाबला करें। साल्ट लेक सिटी को खाली करा दिया गया ताकि अगर हमला हो तो शहर को आग लगा दी जाए। इस दौरान चूंकि लोगों का ध्यान गृह युद्ध में लग गया और कोई हिंसा नहीं हुई। संघीय सरकार का पूरा ध्यान और ताकत गृह युद्ध को जीतने में लगी और इस बीच कानूनी प्रतिबंधों और राजनीतिक दमन के चलते वर्ष 1887 तक मॉर्मन्स चर्च पूरी तरह समाप्त हो गया। 1890 में जब मॉर्मन्स ने बहुविवाह प्रथा को त्याग दिया, तब उता को 1896 में एक राज्य का दर्जा दे दिया गया।
कैसा रहा यहूदियों का अनुभव..पढ़ें अगले पेज पर... 

यहूदियों का अनुभव : 1890 के दशक में यहूदी विरोध की पहली लहर चली। जब संघीय सरकार ने यूरोप से प्रवासियों पर रोक लगानी चाही लेकिन कोलोनियल टाइम (औपनिवेशिक समय) से पहले अमेरिका में बड़ी संख्या में यहूदी बस गए थे। उनके साथ स्थानीय मामलों में भेदभाव किया जाता था और उनके प्रति बहुत कम सहिष्णुता दिखाई जाती थी। 1920 के दशक में प्रवासियों का कोटा तय किया जाने लगा और शरणार्थियों की राष्ट्रीय उत्पति के आधार पर सीमा तय की जाने लगी, लेकिन हॉलोकॉस्ट (यहूदियों ने नरसंहार) के समय यहूदियों का कोटा समाप्त नहीं किया गया था क्योंकि तब हिटलर के प्रभाव वाले यूरोप से यहूदी शरणार्थी लगातार भाग रहे थे।  
 
वर्ष 1933 और 1939 के दौरान महामंदी के कारण यहूदी विरोधी भावनाएं सारे देश में देखी जाने लगीं। इस दौरान यहूदियों का अमेरिका में बहुत दमन और उत्पीड़न किया गया। न्यूयॉर्क और बोस्टन जैसे शहरी क्षेत्रों में यहूदियों को हिंसक हमलों का सामना करना पडा था। यहूदी विरोधी भावनाएं सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव के तौर पर दिखाई देने लगीं। सिल्वर शर्ट्स और कू क्लक्स क्लान जैसे संगठनों की ओर से यहूदियों पर हमले किए गए, उनके खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया और उन्हें डराने-धमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया। 
 
लेकिन कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमेरिका में यहूदियों का उतना‍ हिंसक दमन नहीं किया गया जितना कि दुनिया के अन्य हिस्सों में अन्य देशों के लोगों के साथ किया गया। हालांकि प्रजातीय और सामाजिक असहिष्णुता की भावनाएं 1950 के दशक तक बनी रहीं। तब यहूदियों को कंट्री क्लबों में प्रवेश नहीं दिया जाता था। उन्हें कॉलेज से बाहर निकाल दिया जाता था। उनको चिकित्सा की प्रैक्टिस नहीं करने करने दी जाती थी और बहुत से राज्यों में उन्हें किसी राजनीतिक पद नहीं दिया जाता था। लेकिन यह ज्यादातर हिंसक नहीं था।
 
धार्मिक संघर्ष या हेट क्राइम : यहूदियों के खिलाफ अपराधों को अगर आज गिना जाता तो इन्हें हेट क्राइम की श्रेणी में रखा जाता। लेकिन अब इनके खिलाफ अपराध संगीन होते जा रहे हैं लेकिन अमेरिका में इतनी विविधता है कि वहां विभिन्न आधारों पर असहिष्णुता की संभावना काफी खत्म हो जाती है। अमेरिका आज 1500 से ज्यादा धर्मों और 360,000 धार्मिक केन्द्रों का देश है। इस देश के ज्यादातर लोग ईसाई हैं और पहले जुडाइज्म दूसरा बड़ा धर्म माना जाता था, लेकिन अब इस्लाम ने इस देश में दूसरे नंबर का धर्म होने का सम्मान हासिल किया है। 
 
अपनी इन खूबियों के कारण अमेरिका में धार्मिक युद्ध या संघर्ष नहीं होते हैं क्योंकि यह मूल रूप से प्रवासियों का देश है। इस देश में कोई भी हिस्सा वेस्ट बैंक या आयरलैंड नहीं हो सकता है क्योंकि यहां इतनी विविधता है कि असहिष्णुता की भावना स्वत: ही कमजोर हो जाती है जबकि भारत में स्थितियां भिन्न हैं और गरीबी, अशिक्षा, अत्यधिक आबादी, बेरोजगारी और आर्थिक विषमताएं ऐसे कारण हैं जो कि संघर्षों या अपराधों को बढ़ाने का काम करती हैं। ऐसी हालत में अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट व्यापक सामान्यीकरण से ज्यादा महत्व नहीं रखतीं है जिसे परिस्थितियों का सही आकलन नहीं माना जा सकता है।

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