कई कारण हैं चीन के प्रति हमारे मिलेजुले रुख के

शरद सिंगी
चीन, मानवाधिकारों के हनन एवं तिब्बतियों के विरुद्ध दमन के लिए विश्व में बदनाम है किन्तु उसकी  आर्थिक और सामरिक शक्ति के आगे कोई भी राष्ट्र चीन की आलोचना करने का साहस जुटा नहीं पाता। अमेरिका कभी कभी दबी ज़ुबान में आलोचना कर देता है। विश्व शक्तियों के इस रुखेपन को ध्यान में रखते हुए दुनिया में अनेक ऐसे गैरसरकारी संगठन हैं जो चीन में निरंतर हो रहे मानवाधिकारों के हनन की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।    
इन संगठनों के अनेक सदस्य ऐसे हैं जिन पर चीनी सरकार ने देशद्रोह के केस लाद  रखे हैं और ये लोग चीन से भागकर अमेरिका या अन्य देशों में शरण लिए हुए हैं।  इन्हीं में से एक नाम है दोलकुन इसा का। यह व्यक्ति चीन की ज्यादतियों के विरुद्ध लड़ने वाला एक सेनानी है।  
 
दोलकुन ईसा, चीन के मुस्लिम बहुल प्रान्त झिंजियांग (पूर्वी तुर्किस्तान), से एक उईघुर( यहाँ बसने वाली प्रजाति का नाम) नेता हैं जो चीन में अपने प्रांत की स्वतंत्रता और स्वयत्तता के लिये संघर्ष कर रहा है। दोलकुन सन् 1997 में नकली पासपोर्ट पर चीन से भागे थे और उन्होंने 2006 में जर्मनी की नागरिकता ले ली। 
 
2003 में चीन ने और फिर बाद में ताइवान ने इन्हे आतंकवादी घोषित कर दिया था।  इंटरपोल पर प्रभाव डालकर चीन ने दोलकुन के विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया हुआ है किन्तु यूरोप ने इस नोटिस को अनदेखा कर रखा है। झिंजियांग प्रान्त चीन का एक ऐसा हिस्सा है जिसमे पत्रकारों का जाना वर्जित है क्योंकि चीनी प्रशासन ने यहाँ दमन की सारी हदें पार कर रखी हैं। सोलहवीं शताब्दी में सम्राट किंग ने पूर्वी तुर्किस्तान को अपने राज्य का हिस्सा बना लिया था, तब से यह चीन के अधिपत्य में है।   
 
दोलकुन इसा, जर्मनी स्थित विश्व उइघुर कांग्रेस के चेयरमैन है। इस प्रांत के लोग चीन को अपना राष्ट्र नहीं मानते। यह कहानी लगभग तिब्बत की तरह है जहाँ के बाशिंदे भी चीन से आजादी और अपनी स्वायत्तता चाहते हैं। अतः स्वाभाविक ही है कि दोनों प्रांतों, झिंजियांग और तिब्बत, के नेताओं में एक दूसरे के लिए समर्थन और सहानुभूति रहेगी।
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