आपातकाल एक क्रूर शिक्षक, सिखाए पांच सबक

Webdunia
विनय सहस्रबुद्धे 
41 साल पहले 1975 में मैं पुणे के सर परशुराम कॉलेज में पढ़ता था। अभी कॉलेज शुरू हुए लगभग एक हफ्ता ही हुआ था कि हम पर आपातकाल के कठोर नियम लागू हो गए। छात्र आंदोलन से जुड़े मेरे जैसे सक्रिय छात्रों को (विशेषकर एबीवीपी से जुड़े) उनके माता-पिता से अपनी गतिविधियां बंद करने की हिदायत मिली। यद्यपि इसके बाद भी एबीवीपी की गतिविधियां जारी रहीं और हमने स्वयं को सदस्यता अभियान और नए सदस्यों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यस्त रखा। 
 
अक्टूबर से राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलन शुरू हो गया और कई लोगों ने सत्याग्रह में हिस्सा लिया। हमारे कई वरिष्ठ साथियों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। जो जेल में नहीं थे वे सक्रियता से सत्याग्रह की तैयारी कर रहे थे। पुणे के वरिष्ठ एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने हमें सत्याग्रह और जेल जाने के लिए तैयार रहने की अपील की। 
 
यद्यपि हम लोगों के हौसले बहुत बुलंद थे, हमें सत्याग्रह के लिए खुद को तैयार करना पड़ा। उस समय मैं अपने अंकल के साथ रहता था और उन्होंने मुझे पहले ही आंदोलन से दूर रहने की सख्त हिदायत दे रखी थी। 
 
अंतत: वरिष्ठों द्वारा हमारे मन में सत्याग्रह के लिए बनाई गई प्रतिबद्धता काम आई और 31 दिसंबर को मैंने कॉलेज कैंपस में सत्याग्रह में हिस्सा लिया। कई मायनों में यह रोमांचक अनुभव साबित हुआ। हम किसी मकसद से कार्य कर रहे थे, इस भावना ने हमें साहसी बना दिया। जब हमने नारेबाजी और प्रदर्शन शुरू किया तो एक मजेदार वाकया हुआ। 
 
एसपी कॉलेज के कैंपस में प्रदर्शन करने वाले सत्याग्रहियों की यह 5वीं बैच थी। इससे पहले की सभी बैचों में 3-4 महिला सत्याग्रही भी रहीं और महिला आरक्षकों की अनुपस्थिति की वजह से प्रदर्शनकारियों को आधे घंटे तक भाषण, नारेबाजी और देशभक्ति तथा लोकतंत्र के गाने, गाने का अवसर मिला।
 
जब हम प्रदर्शन के लिए गए तो कैंपस में पहले से आधा दर्जन महिला आरक्षक मौजूद थीं। पर वे असहाय नजर आ रही थीं, क्योंकि सभी सत्याग्रही पुरुष थे और वे हमें हाथ लगाने से बच रही थीं। उन्हें पुरुष पुलिसकर्मियों के आने तक इंतजार करना पड़ा और इससे हमें इंदिरा गांधी और उनके क्रूर अत्याचारों के खिलाफ नारेबाजी करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया। 
 
हमें गिरफ्तार कर अदालत ले जाया गया। जहां हमें 6 हफ्तों की सजा सुनाई गई। यरवदा जेल में सजा काट रहे लगभग 200 सत्याग्रही पहले से ही हमारा इंतजार कर रहे थे। हम सभी ने उन 45 दिनों का खूब आनंद किया। 
 
इस जेल ने मुझे कई सबक सिखाए, उनमें से 5 बेहद महत्वपूर्ण थे। 
 
पहला सबक यह था कि जब किसी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई जोखिम उठाना होता है तो सामूहिक प्रयासों से इसे जल्द प्राप्त किया जा सकता है। हम सभी कॉलेज छात्र थे और मध्यम वर्ग परिवार से थे। हम कम या ज्यादा साहस के साथ इकट्ठा हुए थे, पर महत्वपूर्ण यह था कि हमारा प्रयास सामूहिक था। साहस में आस्था महत्वपूर्ण है, पर यदि प्रयास सामूहिक हो तो साहस दृढ़ संकल्प में बदल जाता है। यह लक्ष्य को प्राप्त करने में उस तरह मदद करता है मानो हम बैल को सींग से पकड़ रहे हो। 
 
दूसरे सबक के रूप में मुझे लोगों की पहचान हुई। जेल में यद्यपि मैं केवल 45 दिनों तक रहा, पर हम में से कई लोगों ने इस दौरान कई किताबें पढ़ डालीं। जेल में रहते हुए हमें इस बात का अहसास हुआ कि हमें अपने साथी को पूरी तरह जानना चाहिए। हम में से कई लोग, जिनकी समाज में बेहद अच्छी छवि थी, संकुचित स्वभाव के थे जबकि कई साधारण कार्यकर्ताओं ने आश्चर्यजनक रूप से उदार हृदयता दिखाई। जेल आपको किसी भी व्यक्ति को पहचानने की दूरदृष्टि देता है। हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती, यह जेल में काटी गई सजा के दौरान लिया गया दूसरा सबक था। यद्यपि इसके उलट कई साधारण दिखने वाले कार्यकर्ताओं ने कई मायनों में महानता दिखाई। यह ज्यादा महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद अनुभव था।
 
तीसरा सबक मैंने सीखा कि एक व्यक्ति के जीवन में आवश्यकता कम होना चाहिए। जेल की सजा काटने के दौरान एक व्यक्ति यह सीख जाता है कि बेहद कम संसाधनों में कैसे जीवन-यापन किया जाता है। हमारे बैरक में जो लोग अमीर पारिवारिक पृष्ठभूमि से थे उनकी अपनी आवश्यकताएं थीं और वे उन वस्तुओं के बिना नहीं रह सकते थे। उनके लिए जेल में समय बिताना ज्यादा कष्टप्रद था। हालांकि विपरीत परिस्थ‍ितियों में उन्होंने चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ वह समय व्यतीत किया, परंतु हम में से कुछ निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे। उनके लिए माहौल से सामंजस्य बैठाना आसान रहा। उन्होंने आवश्यकताएं कम कीं और शेयरिंग का आनंद लिया। सादगी, जिसका जिक्र आजकल बेहद मुश्किल से होता है, सभी के लिए बेहद जरूरी है, ऐसा महत्वपूर्ण सबक था, जो हमने जेल विश्वविद्यालय में सीखा। 
 
दो अन्य सबक जो हमने जेल में सीखे वे लोक प्रशासन और जनता में मूल्य चेतना के संदर्भ में थे। जेल में बिताए इन 45 दिनों ने हमें सजा देने के सिस्टम की अमानवीयता से रूबरू कराया। वास्तव में भारत में जेल अब अपराधियों की फैक्टरी बन गए हैं।
 
प्रिसन मैनेजमेंट को कायाकल्प की आवश्यकता है और सफल सरकारों ने भी इस आवश्यक आवश्यकता की अनदेखी की है। जेल सिस्टम में कुछ मौलिक सुधार कर हम गंभीर अपराधों की संख्या में कमी ला सकते हैं। यह मुश्किल है, पर असंभव नहीं। 
 
आपातकाल के अत्याचारों ने मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरक सबक भी सिखाया। वह था लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में। जेल से बाहर आने पर सैकड़ों लोग जो उस समय आपातकाल के पक्षधर नजर आ रहे थे, ने उस दौरान दिखाए गए हमारे साहस को सराहा।
 
भारतीय, लोकतंत्र का इसलिए सम्मान नहीं करते, क्योंकि यह संविधान में है। यह हमारे खून में है। यह सही है कि राजनीतिक लोकतंत्र आवश्यक है, पर उससे अधिक आवश्यक उन सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के प्रतिबद्धता को हासिल करना है जिस पर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जोर दिया था।लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि हमारा राजनीतिक लोकतंत्र और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, लोकतंत्र के दर्शन के प्रति हमारा कमिटमेंट आध्यात्मिक व मानसिक लोकतंत्र से निकलता है जिसका हमने सभ्यता के रूप में सदियों से आनंद लिया है। यही वह है जिसने भारत के लोगों को सत्तावादि‍ता को नकारने की ताकत दी। 

लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि हमारा राजनीतिक लोकतंत्र और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, लोकतंत्र के दर्शन के प्रति हमारा कमिटमेंट आध्यात्मिक व मानसिक लोकतंत्र से निकलता है जिसका हमने सभ्यता के रूप में सदियों से आनंद लिया है। यही वह जन्मजात मजबूती है जिसने भारत के लोगों को सत्तावादि‍ता को नकारने की ताकत दी। 
(लेखक भाजपा के  उपाध्यक्ष हैं) 
Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संघर्ष कर रहे भारतीय मुस्लिम

भारत को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में क्या हैं अड़चनें?

क्या राजनीतिक दलों पर भी लागू हो सकता है पॉश एक्ट

शिक्षा में AI पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं विशेषज्ञ

राज कपूर ने विदेशों में कैसे बढ़ाई भारत की सॉफ्ट पावर?

सभी देखें

समाचार

जस्टिन ट्रूडो की रवानगी से कनाडा में रहने वाले भारतीय छात्रों पर क्या होगा असर, 2025 से लागू होगा यह नियम

वेतन बढ़ाने से इंकार करने पर कर्मचारी ने बाइक शोरूम से की 6 लाख की चोरी

पटरी पर फिर खुराफात, लोहे के एक फुट लंबे टुकड़े से टकराया ट्रेन इंजन

अगला लेख