हमारे भोजन पर नियंत्रण के प्रयास

Webdunia
-थेरेसा क्रिनीनगर
 
कॉर्पोरेट एटलस-2017 की रिपार्ट यह दर्शाती है कि दुनियाभर में खाद्य उद्योगों का हो रहा विकास किस प्रकार सामान्य जनता को प्रभावित कर रहा है। उभरते एवं तेजी से फैलते बाजार से विकासशील देशों में खाद्य व्यवस्था की कमजोर कड़ी माने जाने वाले कृषक तथा खेतिहर मजदूर सबसे ज्यादा परेशान होकर राजघरानों की दया पर निर्भर होते जा रहे हैं। 
 
जनवरी के मध्य में हेनरीच वॉल फाउंडेशन, रोसा लक्सेमबर्ग फाउंडेशन तथा फ्रेंड्स ऑफ अर्थ जर्मनी, जर्मन वॉच, ऑक्सफैम द्वारा यह रिपोर्ट जारी की गई है। आपूर्ति श्रृंखला के साथ कंपनियों का विस्तार हो रहा है। वर्ष 2015 के आसपास खाद्य तथा कृषि उद्योग में 12 बड़े विलयन हुए, परंतु इनमें से आज केवल 7 ही वैश्विक स्तर पर बीजों तथा कीटनाशकों के उत्पादन को नियंत्रित कर रहे हैं और संभवत: 2017 तक ये 7 से घटकर 4 ही रह जाएंगे।
 
जर्मनी की बेयर अमेरिका में मॉनसेंटो को खरीदना चाह रही है ताकि वह दुनिया की सबसे बड़ी कृषि रसायन बेचने वाली कंपनी बन सके। अमेरिका की ड्यूपांट तथा डाऊ केमिकल भी एक होने के लिए प्रयासरत है। स्विस आधारित बहुराष्ट्रीय कंपनी सिजेंटा को केमचाइना अधिकृत करना चाह रही है।
 
एटलस के अनुसार ये तीनों कंपनियां बीजों तथा कृषि रसायनों के 60 प्रतिशत बाजार पर कब्जा करेंगी और लगभग सभी आनुवांशिक रूप से संशोधित पौधों का उपयोग करेंगी। इस प्रकार बाजार की ज्यादातर शक्ति कुछ कंपनियों के हाथों में केंद्रित होगी जिन पर उपभोक्ताओं की अधिक निर्भरता होगी। ये अपने अनुसार बीजों तथा कीटनाशकों की कीमतें निर्धारित करेंगी। इस प्रकार कृषि में आनुवांशिकी अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) के साथ-साथ डिजिटलीकरण भी बढ़ेगा। कृषि आधारित उद्यम या उद्योग कम्प्यूटर प्रणाली से जुड़कर संपूर्ण कृषि व्यवस्था का संचालन करेंगे, जो छोटे व बड़े किसानों की पहुंच से दूर होगी।
 
गेहूं, मक्का, सोयाबीन आदि फसलों की कटाई के बाद इनसे क्या चीजें बनेंगी, कितनी बनेंगी, कैसे बनेंगी, कैसे बेची जाएंगी, कहां बेची जाएंगी एवं किस कीमत पर बेची जाएंगी आदि का निर्धारण 4 प्रमुख कंपनियां करेंगी। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि फसल कटाई के बाद इन कंपनियों का खेल प्रारंभ होगा, जो कृषि की ज्यादातर वस्तुओं के आयात-निर्यात को नियंत्रित करती हैं। 
 
ये कंपनियां हैं- आर्चर डेनियलन मिडलैंड, बंज, कारगिल तथा ड्रेफुस। इनमें से पहली 3 अमेरिका से संबंधित हैं तथा 1 नीदरलैंड्स से। कॉर्पोरेट एटलस का अनुमान है कि दुनिया के कृषि के बाजार में इनके शेयर 70 प्रतिशत से ज्यादा हैं एवं इसीलिए ये काफी शक्तिशाली हैं। एटलस के मुताबिक ये 4 कंपनियां बड़ी खाद्य कंपनियों- यूनीलिवर, नेस्ले, हैन्ज, मार्स, केलांग्स तथा टीचोबो आदि को सस्ता सामान या वस्तुएं उपलब्ध कराएंगी।
 
सुपर मार्केट तक चीजें पहुंचाने की श्रृंखला में इनकी प्रमुख भूमिका होती है। जर्मनी में इस प्रकार की श्रृंखला ने खाद्य पदार्थों की बिक्री के खुदरा व्यापार पर 85 प्रतिशत कब्जा कर लिया है। वस्तुओं को प्रदाय करने वाली इस श्रृंखलाओं का दबाव श्रृंखला की अंतिम कड़ी वाले कृषक पर बढ़ता जा रहा है जिसका प्रभाव यह हो रहा है कि उसे कम कीमत पर ज्यादा मेहनत करना पड़ रही है। सुपर मार्केट की यह श्रृंखला मध्यम आय वाले देशों में भी फैल रही है, जैसे भारत, इंडोनेशिया तथा नाइजीरिया आदि। 
 
इस श्रृंखला से कृषि व्यवस्थाओं में कष्टकारी परिवर्तन होंगे। उससे परंपरागत कृषि का व्यापार करने वाली दुकानें एवं बाजारों को काफी हानि होगी एवं धीरे-धीरे वे समाप्त हो जाएंगे। इस सारे परिवर्तनों के पीछे खाद्य उद्योग से जुड़ी सारी छोटी-बड़ी कंपनियां यह दावा करती हैं कि बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने हेतु यह सब कुछ करना जरूरी है ताकि उत्पादन बढ़े, परंतु कॉर्पोरेट एटलस-2017 का दावा है कि कृषि भूमि से अनाज उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हो रही है, क्योंकि हजारों हैक्टर कृषि भूमि पर पशुचारे की फसल या जैव ईंधन देने वाले पौधे लगाए जा रहे हैं। 
 
दुनिया के लगभग 800 मिलियन लोगों में कुपोषण का कारण भोजन की कमी नहीं, अपितु उसका असमान वितरण बताया जा रहा है। जिन एजेंसियों में यह कॉर्पोरेट-17 एटलस जारी किया है, वे यह चाहती हैं कि विभिन्न देशों (विशेषकर विकासशील) की सरकारें अपनी जिम्मेदारी समझकर देशहित में कार्य करें। व्यापारिक फसलों के बजाए वे फसलें पैदा की जाएं, जो पेट भरने के साथ-साथ पशुओं तथा कृषि भूमि के लिए भी उपयोगी हों।
 
जर्मनी में अभी-अभी एंटीट्रस्ट कानून इस प्रकार सुधारा गया है कि इन बड़े कॉर्पोरेट्स या कंपनियों के प्रभाव से उत्पादक तथा उपभोक्ता को बचाया जा सके। इसके अलावा एजेंसियां पर्यावरण के अनुकूल कृषि के पक्ष में हैं, जो किसानों और उपभोक्ताओं के लाभ के लिए पैदावार में सुधार करने का एकमात्र तरीका मानते हैं।
 
(सप्रेस/ थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स)
साभार - सर्वोदय प्रेस समिति
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