वैश्विक मंच से लेकर पानी तक पाक की घेराबंदी

उमेश चतुर्वेदी
मंगलवार, 27 सितम्बर 2016 (17:11 IST)
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ख्याति उनकी भाषण शैली ही रही है। भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी तो सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके हैं कि सुषमा की वक्तृत्व क्षमता के सामने वे हीनताबोध से ग्रस्त होते रहे हैं। संसद में तो कई बार उनके भाषणों पर वे सुषमा की पीठ थपथपा चुके हैं।
चुनावी अभियान हो या संसद का मंच या फिर सार्वजनिक जिंदगी का कोई और भाषण, सुषमा ने कभी निराश नहीं किया। उनकी भाषण कला के मुरीद उनके विपक्षी भी रहे हैं। ऐसी सुषमा अगर संयुक्त राष्ट्रसंघ के मंच पर पाकिस्तान को माकूल जवाब नहीं देतीं तो ही हैरत होती। आतंकवाद के मसले पर जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान को घेरा और वैश्विक मंच से उसे अलग-थलग करने की भारतीय कोशिश की दिशा में एक कदम आगे बढ़ गईं, उससे पाकिस्तान में जरूर खलबली होगी।
 
सुषमा के भाषण में प्रमुखत: सात बिंदु ऐसे नजर आए, जिन्होंने आतंकवाद और कश्मीर के मसले पर ना सिर्फ दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा, बल्कि भारतीय पक्ष को समझने की कोशिश की है। सुषमा ने जोर देकर कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा। इसलिए पाकिस्तान को कश्मीर को लेकर ख्वाब देखना छोड़ देना चाहिए।
 
सुषमा ने नवाज शरीफ को मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर जो जवाब दिया, वह भी काबिल-ए-गौर है। उन्होंने कहा कि जिनके अपने घर शीशे के हैं, वे दूसरे पर पत्थर न फेंके। लगे हाथों उन्होंने बलूचिस्तान में पाक सेनाओं द्वारा हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का मामला उठाकर दुनिया का ध्यान एक बार फिर ना सिर्फ पाकिस्तान की तरफ आकर्षित किया, बल्कि नवाज को घेर भी लिया।
 
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में यातना की पराकाष्ठा है।सुषमा ने नवाज के उस आरोप को भी सिरे से खारिज कर दिया कि पाकिस्तान द्विपक्षीय बातचीत में शर्तें थोप रहा है। सुषमा ने इसके जवाब में कहा कि हमने हमेशा मित्रता की पहल की और बदले में हमें उड़ी, पठानकोट और बहादुर अली मिला। बहादुर अली पाकिस्तान का रहने वाला आतंकी है, जिसे भारतीय सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार किया है।
 
सुषमा ने जोर देकर कहा कि बहादुर अली पाकिस्तान के खिलाफ भारत के पास जिंदा सबूत है। उन्होंने पाकिस्तान को निशाने पर लेते हुए कहा कि दुनिया के कुछ देशों का शौक आतंकवादियों को पालना बन गया है। सुषमा ने जोरदार शब्दों में वैश्विक समुदाय से अपील की कि जो देश आतंकवाद न रोकें, उन्हें अलग-थलग किया जाए। लगे हाथों ने उन्होंने एक और बड़ा और जोरदार तर्क रखा। सुषमा ने कहा कि आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा हनन है। जिस तरह संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में हिंदी में दिए उनके इस जोरदार भाषण पर तालियां बजीं, उससे साफ है कि वैश्विक समुदाय भारतीय तर्कों से सहमत है। निश्चित तौर पर इससे पाकिस्तान की छवि वैश्विक समुदाय के बीच संदेहास्पद ही होगी।
 
सुषमा के संयुक्त राष्ट्रसंघ में भाषण के ठीक पहले जिस तरह सिंधु, रावी, व्यास समेत पश्चिमी भारत की छह नदियों के पानी को लेकर भारत में कैबिनेट ने बहस की, उससे एक बात तो तय है कि पाकिस्तान को या तो आतंकवाद की राह छोड़नी होगी या फिर उसे अपनी जनता को संकट में डालने के लिए तैयार रहना होगा। बैठक में जिस तरह प्रधानमंत्री ने कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते, उसका अपना तार्किक महत्व है। निश्चित तौर पर खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। लेकिन भारत की भी अपनी सीमाएं हैं। 
 
 
उसके पास इन नदियों के पानी को रोकने के लिए कोई बड़ी योजना नहीं है। उसे पानी को रोकने और उसके इस्तेमाल के लिए बड़ी योजना बनानी होगी। वैसे भी गर्मियों में पानी के लिए इन्हीं नदियों से कुछ सौ किलोमीटर दूर स्थित पंजाब और हरियाणा राज्य लड़ते हैं। अगर इस पानी के समुचित इस्तेमाल की योजना और उसके तहत कारगर तंत्र विकसित कर लिया गया तो इन राज्यों के फसलों और लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है।
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