बलूचों के संघर्ष की कहानी, अब खतरे में है इनका अस्तित्व

अनिरुद्ध जोशी
सीधी भाषा में कहें तो बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। सबसे बड़ा हिस्सा तकरीबन पाकिस्तान के कब्जे में है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं।
 
 
1. 4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलू‍चों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। हालांकि इस घोषणा के बाद भी माउंटबेटन और पाकिस्तानी नेताओं ने 1948 में बलूचिस्तान के निजाम अली खान पर दबाव डालकर इस रियासत का पाकिस्तान में जबरन विलय कर दिया। अली खान ने बलोच संसद से अनुमति नहीं ली थी और दस्तावेजों पर दस्तखत कर दिए थे। बलूच इस निर्णय को अवैधानिक मानते हैं, तभी से राष्ट्रवादी बलोच पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्ष छेड़े हुए हैं।
 
2. बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि मेजर जनरल अकबर खान के निर्देश पर 27 मार्च 1948 को उनकी मातृभूमि पर अवैध ढंग से पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया। कब्जे की इस कार्रवाई को नाम दिया गया 'ऑपरेशन गुलमर्ग'। तब से 5 बार हुए विद्रोह में हजारों बलूच देशभक्त और पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके हैं।
 
3. 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान अधिकृत रूप से एक आजाद मुल्क बन चुका था फिर भी 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर हमला कर उसको अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद पहली बगावत निसार खान और अब्दुल करीम खान ने कर दी। 1948 में बलूच राजकुमार अब्दुल करीम खान के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई और गोरिल्ला पद्धति से पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया गया, जो अभी तक जारी है। 
 
4. 1958 में इस सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व कर रहे नवाब नवरोज खान को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और नवरोज खान के बेटों और भतीजों को फांसी दे दी गई।
 
5. 1948 से 1980 तक अफगानिस्तान के सुल्तान बलूचिस्तान में आजादी की जंग की मदद करते रहे। 1980 के बाद रूस समर्थित अफगान सरकारों ने भी बलोच लोगों को पूरी मदद देनी जारी रखी। आज भी अफगानिस्तान की ओर से बलोच लड़ाकों को राजनीतिक, आर्थिक और नैतिक समर्थन प्राप्त है। अत: पाकिस्तान द्वारा भारत पर बलूचिस्तान में बगावत करवाने का आरोप पूर्णतया बेबुनियाद और भारत विरोधी पाकिस्तानी साजिशों का नया पैंतरा है।
 
6. पाकिस्तान में बलूच राष्ट्रवादियों के संघर्ष के कई लंबे-लंबे दौर चले हैं। पहली लड़ाई तो बंटवारे के फौरन बाद 1948 में छिड़ गई थी। उसके बाद 1958-59, 1962-63 और 1973-77 के दौर में संघर्ष तेज रहा। ये लड़ाइयां हिंसक भी रहीं, मगर अहिंसक प्रतिरोध के दौर भी चले। मौजूदा अलगाववादी संघर्ष का हिंसक दौर 2003 से शुरू हुआ। इसमें सबसे प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को बताया जाता है जिसे पाकिस्तान और ब्रिटेन ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। इसके अलावा भी कई छोटे संगठन सक्रिय हैं। इनमें लश्कर-ए-बलूचिस्तान और बलूच लिबरेशन यूनाइटेड फ्रंट प्रमुख हैं। 2006 में बलूच नेता अकबर बुगती को कत्ल कर दिया गया। इसके बाद संघर्ष और बढ़ गया।
 
7. 2005 में बलूच सियासी लीडर नवाब अकबर खान और मीर बलूच मर्री ने बलूचिस्तान की स्वायत्तता के लिए पाकिस्तान सरकार को 15 सूत्री एजेंडा दिया। इनमें प्रांत के संसाधनों पर स्थानीय नियंत्रण और फौजी ठिकानों के निर्माण पर प्रतिबंध की मांग प्रमुख थी। इसी दौरान 15 दिसंबर 2005 को पाकिस्तानी फ्रंटियर कॉर्प्स के मेजर शुजात जमीर डर और ब्रिगेडियर सलीम नवाज के हेलीकॉप्टर पर कोहलू में हमला हुआ और दोनों घायल हो गए। बाद में पाकिस्तान ने नवाब अकबर खान बुगती को परवेज मुशर्रफ पर रॉकेट हमले का दोषी मानते हुए उन पर हमला किया। पाकिस्तानी फौज से लड़ते हुए नवाब अकबर खान शहीद हो गए।
 
8. पाकिस्तान की बर्बर कार्रवाई के चलते बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान सरकार के मुख्य ठिकानों पर हमले करने शुरू किए। राजधानी क्वेटा के फौजी ठिकाने, सरकारी इमारतों और फौजियों तथा सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया जाने लगा। पाकिस्तान की फौजी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जानें गईं और हजारों लोग लापता बताए जाते हैं जिनमें 2,000 महिलाएं और सैकड़ों बच्चे हैं।
 
9. 2006 में बलूचिस्तान की जंगे आजादी को बड़ा झटका लगा। पाकिस्तानी सैनिकों की कार्रवाई में कलात के खान बुगाटी शहीद हो गए और हजारों की तादाद में बलूची विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया गया। बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का हनन हुआ। मानवाधिकार समूहों के मुताबिक वहां फर्जी मुठभेड़ों में लगातार मौतों और लापता लोगों की तादाद बढ़ रही है।
 
10. परवेज मुशर्रफ के काल में अत्याचार अपने चरम पर रहा। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी पूर्व फौजी शासक परवेज मुशर्रफ की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए थे। कुछ मानवाधिकार संगठनों के मोटे अनुमान के मुताबिक 2003 से 2012 के बीच पाकिस्तानी फौज ने 8000 लोगों को अगवा किया। 2008 में करीब 1100 बलूच लापता बताए जाते हैं। सड़कों पर कई बार गोलियों से बिंधी और अमानवीय अत्याचार के निशान वाली लाशें पाई जाती रही हैं।
 
11. बलूचिस्तान के साथ पाकिस्तान ने कैसा-कैसा अन्याय किया है उसकी लंबी सूची है। पाकिस्तानी सेना के पूर्व सेनापति टिक्का खां ने बलूचों की सामूहिक हत्याएं की थीं इसलिए आज भी वहां की जनता उन्हें 'बलूचों के कसाई' के नाम से याद करती है। बलूचों का अपहरण पाकिस्तान में एक सामान्य बात है।
 
12. अप्रैल 2009 में बलूच नेशनल मूवमेंट के सदर गुलाम मोहम्मद बलूच और दो अन्य नेताओं लाला मुनीर और शेर मुहम्मद को कुछ बंदूकधारियों ने एक छोटे-से दफ्तर से अगवा कर लिया। 5 दिन बाद 8 अप्रैल को गोलियों से बिंधे उनके शव एक बाजार में पड़े पाए गए। इस वारदात से पूरे बलूचिस्तान में हफ्तों तक बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों और हिंसा तथा आगजनी का दौर चला। आखिर इसका नतीजा यह हुआ कि 12 अगस्त 2009 को कलात के खान मीर सुलेमान दाऊद ने खुद को बलूचिस्तान का शासक घोषित कर दिया और आजाद बलूचिस्तान काउंसिल का गठन किया।
 
इसी काउंसिल के धन्यवाद प्रस्ताव का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लाल किले के भाषण में किया। इसके दायरे में पाकिस्तान के अलावा ईरान के इलाकों को भी शामिल किया गया लेकिन अफगानिस्तान वाले हिस्से को छोड़ दिया गया। काउंसिल का दावा है कि इसमें नवाबजादा ब्रहमदाग बुगती सहित सभी गुटों का प्रतिनिधित्व है। सुलेमान दाऊद ने ब्रिटेन का आह्वान किया कि बलूचिस्तान पर गैरकानूनी कब्जे के खिलाफ विश्व मंच पर आवाज उठाने की उसकी नैतिक जिम्मेदारी है।
 
13. दूसरी ओर मीर हजारा खान बजरानी मरी कबीले से संबंध रखते हैं। उनके विरुद्ध पाकिस्तान की आईएसआई ने मोर्चा खोल रखा है। सरकार के विरुद्ध राष्ट्रवादी कबीलों ने 'बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी' गठित कर ली है। सरदार अताउल्ला के नेतृत्व में पिछले दिनों लंदन में एक बैठक हुई जिसमें मुहाजिर कौमी मूवमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन, पख्तून मिल्ली अवाम के नेता मोहम्मद खान अचकजई और सिन्धी नेता सैयद इमदाद शाह उपस्थित थे। अपनी बैठक में इन नेताओं ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत की कड़ी आलोचना करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद करने की अपील की।
 
14. एक और बलूच नेता गुलाम मोहम्मद बलूच, जिन्होंने बीएनएम का गठन किया था, ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया। उन्हें उनके वकील और पूर्व मंत्री कचकोल अली के चैंबर से उनके सहायक लाला मुनीर बलूच और बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता शेर मोहम्मद बलूच के साथ अगवा किया गया था। 5 दिनों बाद पिडरक में भेड़ें चरा रहे स्थानीय लोगों ने इनके क्षत-विक्षत शव को देखा। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सैन्य गुप्तचरों से धमकियों के बाद उनके अधिवक्ता कचकोल अली को बलूचिस्तान छोड़ना पड़ा, जो अब ओस्लो (नॉर्वे) में निर्वासन में रह रहे हैं। 
 
15. बलूची तो 1948 से ही अपनी आजादी की जंग लड़ रहे हैं। उन पर एक ओर से जहां पाकिस्तानी फौज अत्याचार कर रही है वहीं दूसरी ओर लगभग 2010 से पाकिस्तानी तालिबान और कट्टर सुन्नी गुटों- लश्कर-ए-जांघी और जमायत-ए-इस्लामी ने भी अपने हमले तेज कर दिए हैं जिसके चलते अब बलूचों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। ये कट्टरपंथी सुन्नी संगठन बलूच मुसलमानों के साथ ही हिन्दुओं और शिया समुदाय तथा अन्य अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इन हमले से हजारों अल्पसंख्‍यकों की जानें चली गई और करीब 3,00,000 लोग विस्थापित हैं, जो सिन्ध और भारत में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।
 
16. ऐसी परिस्‍थिति में पाकिस्तानी हुक्मरानों ने वहां का जनसंख्‍या गणित बदलने के लिए हाल के दिनों में अपनी परियोजनाओं के लिए बाहर से लोगों को लाकर बसाने की नीति शुरू की थी। उनकी दलील थी कि बलूच आबादी में साक्षरता दर बेहद कम होने और हुनरमंद लोगों की कमी की वजह से ऐसा करना जरूरी है। इस नीति के चलते पाकिस्तान ने कई इलाकों में बलूचों को अल्पसंख्यक बना दिया है। 
 
नोट ‍: विभिन्न स्रोत से संकलित

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