ईश्वर न करे कभी ऐसा हो, किंतु यदि कभी अगला विश्वयुद्ध हुआ तो समझ लीजिए सबसे पहले वह अंतरिक्ष में ही लड़ा जाएगा और वह शायद अंतरिक्ष में ही समाप्त भी हो जाएगा। इसको समझने के लिए हम थोड़ा पीछे चलते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि युद्ध जीतने के लिए सबसे पहले दुश्मन के भेदियों/जासूसों की पहचान कर उन्हें ठिकाने लगाना पड़ता है। एक समय था, जब दुश्मन देशों की रणनीति और उनके गुप्त ठिकानों की टोह लेने के लिए जासूसों का इस्तेमाल किया जाता था।
किंतु आधुनिक युग में उन जासूसों की जगह उपग्रहों ने ले ली है। इनकी वजह से आज पृथ्वी की सतह से ऊपर दुनिया की किसी भी वस्तु को छुपाया नहीं जा सकता। न सेना को और न ही उनके सामरिक उपकरणों को। किसी भी क्षेत्र में यदि सेना का जमावड़ा हो रहा हो तो पूरे संसार को पलभर में खबर लग जाती है।
इन उपग्रहों में लगे कैमरे अंतरिक्ष में बाज की तैरती आंखों की तरह हैं, जो चप्पे-चप्पे और पल-पल की जानकारी दुनिया के विभिन्न देशों के नियंत्रण कक्षों को मुहैया कराते रहते हैं। जब दुश्मन देश की सेना और उनके पास तैनात हथियारों की पूरी जानकारी आपके पास हैं तो लड़ाई या तो होती नहीं या फिर रणनीति बहुत आसान हो जाती है। जैसे कहां, कितनी और कौन सी बटालियन को लगाना है? किस तोप के विरुद्ध कौन सी तोप इस्तेमाल करनी है। किस पोत के विरुद्ध कौन सा पोत और किस लड़ाकू विमान के विरुद्ध कौन सा लड़ाकू विमान अधिक कारगर होगा इत्यादि। बिना उपग्रह की सहायता के आज न तो लड़ाकू विमान से दागी मिसाइल को और न ही जमीन से प्रक्षेपित मिसाइल को लक्ष्य तक ले जाजा जा सकता है।
उदाहरण के लिए देखें तो जिस जीपीएस सिस्टम का उपयोग कर आज हम गंतव्य पर बहुत ही सुलभता से पहुंच जाते हैं (यानी अब हम अपनी कार से भारत के किसी भी कोने में पहुंच सकते हैं बिना किसी की सहायता या पूछताछ के) यदि उस जीपीएस सिस्टम को आपके मोबाइल से हटा दिया जाए और आपको किसी अनजान शहर में छोड़ दिया जाए तो निश्चित ही आप दिग्भ्रमित हो जाएंगे और बिना सहायता के मंजिल पर नहीं पहुंच पाएंगे।
कुछ ऐसा ही लड़ाकू विमानों के साथ होता है। उपग्रह की सहायता के बिना वे नेत्रहीन हैं। विमानों के लिए उपग्रह, महाभारत के संजय की आंख के समान हैं। वही गिद्ध दृष्टि है, वही गरुड़ दृष्टि और वही दिव्य दृष्टि। अब सोचिए कि यदि दुश्मन देश के सामरिक उपग्रह को गिरा दिया जाए तो उस देश की पूरी वायुसेना ही पंगु हो जाएगी और नौसेना के युद्धपोत तो समुद्र में इधर-उधर कहीं भटक रहे होंगे इसलिए आज के युग में युद्ध के दौरान उपग्रहों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण ही नहीं, अनिवार्य हो गई है।
भारतीय सेना द्वारा बालाकोट के आतंकी ठिकाने पर हुआ सटीक हमला उपग्रह की इसी तकनीक का परिणाम था। कुछ दशकों पहले जब सेना को उपग्रह की सहायता उपलब्ध नहीं थी तब मिसाइल को अनुभव, अनुमान और जासूसों से मिली जानकारी के अनुसार छोड़ दिया जाता था, जो अधिकांश समय रहवासी इलाकों में गिरती थी। उपग्रह की मदद से अब उन्हें सटीक निशाने पर छोड़ा जाता है।
जरा कल्पना कीजिए कि यदि युद्ध के समय दुश्मन देश आपके सामरिक उपग्रह को मार गिरा दे तो आप हवा में तीर छोड़ने के अलावा आप कुछ नहीं कर पाएंगे इसीलिए अमेरिका, रूस और चीन ने उपग्रहों को मार गिराने की क्षमता बहुत पहले ही अर्जित कर ली थी।
इसलिए भारत के लिए जरूरी था कि वह भी अंतरिक्ष में उपग्रहों को मार गिराने वाली क्षमता को शीघ्र विकसित करे ताकि आकाश में तैर रहे हमारे उपग्रहों पर किसी दुश्मन देश की बुरी नजर न पड़े। अत्यधिक वेग से पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए उपग्रह की एक विशिष्ट समय पर अपनी कक्षा में स्थिति कहां होगी, उसको जानने के लिए गणना प्रणाली बेहद जटिल होती है और फिर उपग्रह को उसकी गति की विपरीत दिशा से मारना। ऐसा भी कह सकते हैं कि वैज्ञानिकों के सामने चुनौती होती है इतने वृहद् अंतरिक्ष में सुई की नोक को उड़ा देना।
भारत इस सप्ताह एक जीवित दौड़ते हुए उपग्रह का सटीक निशाना लगाकर उन देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है जिनके पास उपग्रह गिराने की क्षमता है। जब चीन ने यह परी क्षण किया था तो दूसरे सभी देशों ने इसकी आलोचना की थी, क्योंकि यह कदम विरोधी देशों के बीच एक सामरिक दौड़ को भी प्रारंभ करता है। चीन ने किसी की परवाह नहीं की।
अब चीन के पास यह योग्यता होने से जरूरी था कि भारत के पास भी हो यही योग्यता ताकि दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन बना रहे। यद्यपि सामरिक उपलब्धियों में भारत को अभी बहुत आगे जाना है किंतु हर एक कदम हमारी मंजिल को नजदीक जरूर लाता है और भारतवासियों को गौरवान्वित करता है।
भारत ने पिछले दिनों की दो महत्वपूर्ण घटनाओं से विश्व को यह भी बता दिया है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए न केवल थल सीमा को पार कर सकता है, वरन अंतरिक्ष की सीमाओं को भी लांघ सकता है। हम अपने वैज्ञानिकों पर जितना गर्व करें कम है।