भारतीय राष्ट्रवाद की अन्तर्निहित विशेषताएं

शरद सिंगी
भारत ही नहीं पूरे विश्व में इस समय एक बहस छिड़ी हुई है। देशभक्ति या राष्ट्रवाद में श्रेष्ठ कौन है? इनकी तुलना करने से पहले दोनों में भेद भी समझना होगा। क्या ये शब्द एक ही विचार के दो पहलू हैं, दो अर्थ हैं अथवा सर्वथा भिन्न-भिन्न हैं? इस लेखक के मतानुसार, ये शब्द विपरीत अर्थ वाले तो नहीं हैं किन्तु पर्यायवाची भी नहीं हैं। जहां एक की सीमा समाप्त होती है वहीं से दूसरे की आरम्भ होती है। रोचक बात यह है कि जब आप इस मार्ग पर यात्रा कर रहे होते हैं तो रेल यात्रा की तरह आपको पता ही नहीं चलता कि आपने एक प्रदेश की सीमा को कब पार किया और दूसरे प्रदेश में कब प्रवेश कर गए। 
 
देशभक्ति और राष्ट्रवाद पर चर्चा आरम्भ करने से पहले हमें देश और राष्ट्र की धारणा को भी समझना होगा। देश, किसी भूभाग की भौगोलिक और राजनैतिक सीमाओं से परिभाषित होता है जो सम्प्रभू हो भी सकता है नहीं भी। उदाहरण के लिए कभी उत्तरप्रदेश या राजस्थान से आए किसी श्रमिक से आपने सुना होगा कि मैं देश जा रहा हूं अर्थात वह अपने गांव जा रहा है। उसके गांव की सीमाएं भी उसका देश है। किन्तु हम यहां उसी देश की चर्चा करेंगे जो सम्प्रभु है और एक संविधान से बंधा है। देशभक्ति या देशप्रेम का अर्थ है अपने देश या क्षेत्र की सीमाओं से प्रेम। अब यदि राष्ट्र की बात करें तो राष्ट्र परिभाषित होता है उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों से, उसकी सांस्कृतिक विरासत और साझा इतिहास से। 
 
यदि आप देश की सीमाओं और उसके संविधान से प्रेम करते हैं तो देशभक्त हैं। यदि आप अपनी पहचान, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और अपने इतिहास  से प्रेम करते हैं तो आप राष्ट्रवादी हैं। अब प्रश्न यह है कि देशभक्ति महान है या राष्ट्रवाद? देशभक्त और राष्ट्रवादी में श्रेष्ठतर कौन? देशभक्त सुधारवादी होता है जो अपने देश और उसकी फिलॉसोफी (दर्शन) के साथ तो है ही किन्तु उनमें सुधार के लिए भी तत्पर होता है। विडम्बना यह है कि जब देशभक्ति अंधभक्ति पर पहुंचती है तब  राष्ट्रवाद का आरम्भ होता है। 
 
राष्ट्रवादी अपने देश की हर अच्छाई या बुराई के साथ खड़ा होता है। सुधरने या सुधारने की गुंजाइश नहीं होती। तर्क से भावना बड़ी होती है। हम श्रेष्ठ, हमारा समाज सर्वोत्तम और हमारा देश सर्वश्रेष्ठ। उनके अनुसार, अन्य देश और समाज हीन या निचले दर्जे के। जब यही राष्ट्रवाद चरम या अंधराष्ट्रवाद पर पहुंचता है तो फिर राष्ट्र युद्ध के लिए तत्पर हो जाता है। विश्व ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां एक देश या समाज ने अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने  के लिए अन्य जातियों के लोगों को मौत के घाट उतार दिया या अन्य देशों पर आक्रमण कर उनके लोगों को गुलाम बना लिया।  
 
यह भी कम उल्लेखनीय नहीं है कि राष्ट्रवाद युद्ध और आपदा के समय पूरे उन्माद पर होता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसका सर्वाधिक विस्तार हुआ था। शांति के समय यह भी शांत रहता है। किन्तु यह भी सच है कि यदि राष्ट्रवाद न हो तो राष्ट्र का अस्तित्व ही बेमानी लगने लगता है। बिना अस्मिता के मात्र सीमा रेखाओं के सहारे देश की पहचान क्या संभव है भला? राष्ट्रवाद ही अपने देश की आन और बान पर क़ुरबानी देने का जज़्बा पैदा करता है। राष्ट्रवादी अपनी सीमाओं के साथ अपने राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करता है। देशभक्त मात्र अपनी सीमाओं की। देशभक्त अपने लोगों से प्यार करता है तो राष्ट्रवादी अपने लोगों से प्यार के साथ उन लोगों से नफरत भी करता है जो राष्ट्र विरोधी हैं। देशभक्त सामान्य तौर पर प्रतिक्रियावादी नहीं होता किन्तु राष्ट्रवादी उग्र प्रतिक्रिया के लिए तत्पर होता है। 
 
अब यदि भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो परिभाषा के अनुसार, हम देश की श्रेणी में आते हैं, राष्ट्र की श्रेणी में नहीं, क्योंकि हमारे यहां असंख्य बोलियां, जातियां और संस्कृतियां हैं। यदि हम तार्किक दृष्टि से देखें तो भारत के रहने वाले लोग समान संस्कृति से नहीं बंधे हैं किन्तु जहां तक भारतवासियों का प्रश्न है उनके अनुसार, इतनी सारी भाषाएं, जातियां, संस्कृतियां सब मिलकर ही भारतीयता का स्वरूप बनती हैं। अतः हम तो एक पूर्ण राष्ट्र हैं, परिभाषा चाहे कुछ और बोले। ऐसा विचार केवल भारतवासी ही रख सकते हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति अंधवादी अथवा उग्रवादी नहीं है अपितु समावेशी है। 
 
कुछ नफरतपूर्ण विचारधाराएं छूत की बीमारी की तरह भारत के बाहर से आईं किन्तु भारत की संस्कृति की विशालता उस सागर के समान है जो गन्दी से गन्दी नदी को भी अपने में आत्मसात कर लेता हैं और अपना चरित्र नहीं खोता। भारतीय संस्कृति की विशालता को चुनौती देना असंभव है। कुछ जलजले आते हैं, चले जाते हैं जिनसे भारतीयता और अधिक निखरकर बाहर आती है। सामान्य तौर पर हमारा चरित्र देशभक्त का है किन्तु जरुरत पड़ने पर हम राष्ट्रवादी बनने से भी पीछे नहीं हटते और यह भी ध्यान रहे कि हमें अंधराष्ट्रवाद का मार्ग भी नहीं पकड़ना है।
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