भारत से अलग होने के बाद ही पाकिस्तान ने अपने देश की शिक्षा, संस्कृति और इतिहास को इस्लामी जामा पहनाने के लिए सरकारी स्तर पर इतना दुष्प्रचार अभियान योजनाबद्ध तरीके से चलाया ताकि दुनिया को बताया जा सके कि पाकिस्तान, भारत से अलग नहीं हुआ वरन इसकी पहचान को सदियों से है? वे सिंधु घाटी सभ्यता के वासियों के वंशज हैं? पाकिस्तान के वैज्ञानिक जहां चोर तो हैं लेकिन वहां के इतिहासकारों की कल्पनाशक्ति इतनी उर्वर है कि वे संस्कृति को अरबी भाषा से पैदा हुई भाषा बताते हैं। भारतीय संस्कृति पर ईरानी प्रभाव को समाप्त करने के लिए उनका मानना है कि वे तो सउदी अरब के करीब हैं और मुहम्मद के वंशज हैं।
इसलिए पाकिस्तान ने जो गैर-भारतीय पहचान बनाने की कोशिश की है, वह केवल धर्म पर आधारित भारत विरोध है। वास्तव में, पाक को एकजुट बनाए रखने के लिए भारत विरोध, हिन्दुओं का विरोध सबसे बड़ी गोंद का काम कर रहा है। पाकिस्तानियों के लिए ऐसा करना जरूरी है क्योंकि उनका अल्लाह खुद ऐसा नहीं कर सका। जबकि दुनिया जानती है कि पाकिस्तान मूलत: एक सेना आधारित देश है जो कि अपने अस्तित्व के लिए सेना और आईएसआई पर निर्भर है। इसलिए हिन्दुओं के बारे में सोचते ही पाकिस्तानियों को हिन्दू फोबिया हो जाता है। उन्हें अब तक भारत अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा दिखाई देता है जबकि सच तो यह है कि पाकिस्तान के अस्तित्व को उसे इस्लामी देश बनाने वालों से खतरा है।
इस कारण से उन्होंने अपने ही लोगों का ब्रेनवाश किया और उनके दिमागों में कुछ मिथकों को भर दिया। यह पूरी तरह निराधार हैं लेकिन चूंकि इस्लाम में सवाल-जवाब करने की परंपरा ही नहीं है, इसलिए लोग भेड़-बकरियों की तरह यह शिक्षा दे रहे हैं कि पाकिस्तान का इतिहास सदियों पुराना है। वे आठ हजार पुरानी सिंधु घाटी की सभ्यता के वासियों के वंशज हैं। मानो सिंधु घाटी के लोग उर्दू लिखते बोलते थे और उन्हें अरब के लोगों का समर्थन भी हासिल था। पाकिस्तान के प्रत्येक शब्द के आगे उन्होंने इस्लामी जोड़ दिया और सोच लिया कि वे तो सदियों पुराने इस्लामी देश हैं जिसकी सभ्यता और संस्कृति सऊदी अरब जैसे देशों से आयात की गई है। वे अपनी स्थापना के बाद से ही केवल घृणा का पाठ पढ़ा रहे हैं।
कहने को देश लोकतांत्रिक है लेकिन पूरा देश सैन्य शासन से चलता है। गैर- मुस्लिमों के साथ मुस्लिमों की तालमेल बैठाने की नीतियां या मुस्लिमों की सामाजिक-राजनी तिक रणनीतियां चौराहे पर हैं और इन पर सारी दुनिया की निगाह है। इस संबंध में इस्लामी नेताओं द्वारा अपनाई गई स्थितियां समूचे दुनिया के लिए दीर्घकालिक परिणामों को जन्म देंगी जिनका असर मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों पर पड़ना स्वाभाविक है। इस संबंध में पाकिस्तान की इस्लामी जड़ों की पड़ताल करना जरूरी है क्योंकि यहां गैर-मुस्लिमों ही नहीं वरन मुस्लिम कट्टरपंथियों (सुन्नियों) और अन्य मुस्लिम मतावलंबियों के संबंधों पर गहरा असर पड़ना स्वभाविक है।
स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान में इस्लामी जड़ें और भी गहरी हुई हैं। पाक और अन्य इस्लामी देशों में इस्लामी रूढि़वादी कट्टरता तीन अहम सामाजिक मांगों के चलते प्रभावी हुई है। पाक और अन्य देशों में 1. मुस्लिमों के बीच दो-देशों का सिद्धांत, 2. इस्लाम के प्रति वैश्विक निष्ठा जोकि लोगों द्वारा बनाए गए देशों की संप्रभुता से बढ़कर होती है 3, तीसरे सिद्धांतों के चलते केवल इस्लामी जीत में यकीन रखती है।
द्विराष्ट्रवाद के तहत ही भारत का विभाजन किया गया था लेकिन विभाजन से पहले से ही मांग की जा रही थी कि मुस्लिम इस्लामी कानूनों के अनुरूप जीवन बिताना चाहते हैं। यानी मुस्लिमों के लिए अलग सामाजिक-राजनीतिक न्यायक्षेत्र बनाया जाए। यह लोक जीवन में 'इस्लामिक कानूनों' को स्थापित करने और 'इस्लामी-विशिष्टता' को बनाने का प्रयास किया गया जो कि धर्म निरपेक्षता और अनेकवाद की धारण के पूरी तरह से विपरीत है। यह स्थिति भारत में विभाजन के नाम से सामने आई। जब किसी क्षेत्र विशेष में मुस्लिमों की आबादी एक निश्चित सीमा को पार कर जाती है या वे अन्य लोगों की तुलना में संख्या में ज्यादा हो जाते हैं, तो मुस्लिमों द्वारा इस तरह की मांग की जाती है।
इस तरह की मांग के प्रभावी होने के साथ-साथ अखिल इस्लामी के प्रति वैश्विक निष्ठा को लेकर एक उन्माद पैदा किया जाता है जोकि तब तक चलता है जब तक कि मुस्लिम विश्वव्यापी आधार पर अपने अंतर्गत लाए गए भू-भाग को 'अल्लाह का काम' नहीं बताते हैं।
2. पैन इस्लामिक निष्ठा स्थानीय निष्ठा से ऊपर होती है : इस्लामिक सिद्धांत मानवता को दो हिस्सों में बांटते हैं और खुद को उस भूभाग या देशों की सीमाओं से अलग मानते हैं जिसे व्यक्तियों ने बनाया हो। इस स्थिति के लिए कहा यह जाता है कि दुनिया के सारे मुस्लिम इस्लाम के देश (दार-उल-इस्लाम) के भाग होते हैं। जबकि सभी गैर-मुस्लिम दार उल हरब (दुश्मनों के देश) में रहते हैं। यह द्विध्रुवीय परिभाषा केवल अल्लाह के विभाजन और सार्वभौमिकता को मानते हैं और केवल इस्लामी कानूनों के अनुसार रहना चाहते हैं।
उनका मानना है कि अमेरिका, भारत या अन्य देशों की सीमाएं लोगों ने बनाई हैं, इसलिए वे इन्हें नहीं मानते हैं। इसके परिणाम एक मुस्लिम को किसी भी विवाद की स्थिति में केवल मुस्लिम का ही पक्ष लेना चाहिए। कट्टर इस्लाम एक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और अन्य प्रकार के मेल या एकरूपता के लिए वैश्विक नेटवर्क का आह्वान करता है। इस्लाम का कहना है कि वह 1.2 अरब मुस्लिमों के दार उल इस्लाम का हिस्सा है। इसी सिद्धांत के तहत पाकिस्तान ने मुस्लिम, भारतीय मुस्लिमों को दार उल इस्लाम का हिस्सा बताते हैं और उनसे जिहाद करने का आग्रह करते हैं।
3. इस्लामी जीत का वाद : इस्लाम का एक प्रमुख सिद्धांत यह है कि वे ईश्वर के एक देश में रहने का भरोसा करते हैं। दार उल इस्लाम को देर सवेर सारी दुनिया कर राज्य करता है। इस तरह की घटनाओं को ईश्वरीय राज्य का प्रस्तावित धार्मिक आतंकवाद मानते हैं। जो लोग देर सवेर दार उल इस्लाम के रास्ते में आते हैं, वे इस धार्मिक विस्तारवाद का शिकार बन जाते हैं। पाकिस्तान के सरकारी इतिहास में औरंगजेब को बहुत सम्मानित किया जाता है क्योंकि उसने हिंदू , बौद्धों जैसे काफिरों को लूटा और प्रताडि़त किया। गजनी के मोहम्मद को इस्लामी जीत का महान हीरो समझा जाता है और पाकिस्तान ने तो अपनी मिसाइल का नाम भी गजनी रखा है।
पाकिस्तानी मुस्लिमों ने जहां खुद की गैर-हिन्दुस्तानी या पाकिस्तानी पहचान बनाने के लिए गलत और कल्पना पर आधारित इतिहास रचा। सभी जानते हैं कि 1947 के विभाजन से पहले हिंदुस्तान में पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम एक जैसे थे लेकिन पाकिस्तान ने इस्लामी बनने की कोशिशों में अपना हास्यास्पद इतिहास तक बनाया और अपने देश को झ़ूठ की बुनियाद पर खड़ा करने के लिए कुछ मिथकों का सहारा लिया।
इनमें सबसे बड़ी और झूठा मिथक यह है कि पाकिस्तानी सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के वंशज हैं। यह सभ्यता आठ हजार वर्ष से ज्यादा पुरानी है। हालांकि सिंधु और गंगा नदियों पर बसी सभ्यताओं को एक माना जाता है लेकिन पाकिस्तानी, सिंधु घाटी की सभ्यता को अपनी प्राचीन सभ्यता मानते हैं। पाक के सिंधु घाटी के शोधकर्ताओं ने उत्साह में आकर पाक की सिंधु घाटी सभ्यता का संबंध मेसोपॉटिमिया (इराक) की मध्य पूर्व सम्यताओं से जोड़ दिया।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान के इतिहास को आठ हजार वर्ष पुरानी सभ्यता से जोड़ते बताया गया कि पाकिस्तानी की जड़ें भारत से बिल्कुल अलग रही हैं। हालांकि द्विराष्ट्र सिद्धांत के जनक इकबाल का कहना था कि धर्म, राष्ट्र का आधार होता है और सिंधु घाटी और गंगा घाटी में अलग-अलग सम्यताएं पनपीं। चूंकि पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों का दावा है कि पाकिस्तान प्राचीन काल से ही एक अलग भौगोलिक क्षेत्र के रूप में विद्धमान रहा है।
आमतौर पर यह माना जाता है कि उर्दू का विकास भारत में आने वाले मुस्लिमों और स्थानीय लोगों के मेल मिलाप से हुआ लेकिन पाकिस्तानी भाषाविदों ने कहा कि न केवल उर्दू वरन संस्कृति का विकास भी अरबी भाषा से हुआ है। वास्तव में, पाकिस्तान नामक शब्द कही उपज ही 1933 में तब हुई जब कैंब्रिज में पढ़ रहे कुछ ज्ञानी मुस्लिम छात्रों ने एक पर्चा छपाया जिसका शीर्षक था ' नाउ ऑर नेवर'। पाकिस्तान उन भूभागों के पहले अक्षरों से मिलकर बनाया गया है जिन्हें पहले पंजाब, अफगानिया (उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश), कश्मीर, ईरान, सिंध, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ होता है कि पाक लोगों का देश जोकि आध्यात्मिक तौर पर पवित्र और साफ सुथरे हैं।
पाकिस्तान के संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि जहां तक समूची दुनिया की संप्रभुता केवल सर्वशक्तिभान अल्लाह के हाथों में है और अधिकारों का प्रयोग पाकिस्तान के लोगों द्वारा किया जाएगा।' जिन्नाह के बाद पाकिस्तान और अधिक कट्टरपंथी और इस्लामीकृत हो गया। सारा संविधान, नियम-कानून, कुरान और सुन्ना पर आधारित बनाकर इन्हें इस्लामी कानून बता दिया गया। पाकिस्तान के बलात्कार के कानून सीधे सउदी अरब से लिए गए हैं जहां पर व्यभिचार का सारा दोष केवल औरत का होता है और उसे पत्थर मार-मार कर समाप्त कर देना चाहिए।
उदाहरण के लिए वर्ष 1991 में ही तीन हजार में से दो तिहाई महिलाएं अवैध संबंध बनाने के आरोपों में जेलों में बंद थीं जबकि इनके साथ पुरुषों ने बलात्कार किया था। इस्लामी कानून के अनुसार महिलाओं को रेप के प्रत्यक्षदर्शी गवाह पेश करना चाहिए। पाकिस्तानी सेना के ट्रेनिंग में भी धार्मिक उदाहरणों का सहारा लिया जाता है। इतना ही नहीं, पाक सरकार ने तो इस्लामी सैन्य सिद्धांत ईजाद कर लिए हैं। पाकिस्तान के प्रसिद्ध लेखक मुबारक अली का कहना है कि 1971 की पराजय के बाद लोगों को न केवल धक्का लगा वरन देश की धार्मिक विचारधारा भी झूठी साबित हो गई।
तब भुट्टो के शासनकाल में देश का पूरी तरह से इस्लामीकरण किए जाने का बीड़ा उठाया गया। यह जनरल जिया उल हक के शासन में पनपी और जनरल परवेज मुशर्रफ ने इसमें चार चांद लगाए। आखिर में नवाज शरीफ भी इस काम में शामिल हो गए हैं और पाकिस्तानी सेना था खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से इस्लामीकरण की फैक्टरी पूरे जोरशोर से चल रही है। भारत में जहां मुस्लिमों की आबादी बढ़ी, देश में सभी क्षेत्रों में मुस्लिमों की संख्या बढ़ी है जबकि इस्लामी पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी वर्ष 1947 में 11 फीसदी थी जो कि अब 1 फीसदी से भी कम रह गई है।
एक शिक्षित पाकिस्तानी को यह बताना मुश्किल होगा कि उसका इतिहास 1947 वाले उस हिस्से से शुरू हुआ जो कि पहले भारत था (अब पाकिस्तान है)। लेकिन अगर यह मुहम्मद के समय से शुरू होता है तो यह भूभाग अरब देशों से बहुत दूर है। यह हिस्सा अतीत में हिंदू, बौद्ध इतिहास का भाग रहा है लेकिन पाकिस्तान अपने इतिहास को नकारता है और इसे इस्लामी बनाने की कोशिशों में अनगिनत झूठ बोलता आ रहा है। पाकिस्तानी यह नहीं मानते हैं कि उनके पूर्वज भी हिंदू थे जो कि इस्लाम में शामिल हो गए। इसी तरह कश्मीर में और देश के अन्य बाकी के हिस्सों में हुआ है लेकिन मुस्लिम अपनी पहचान को अलग बनाए रखना चाहते हैं और उन्होंने अपनी नकारात्मक पहचान के आधार अपने देश की पहचान बनाई है।