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क्यों उठ रहे संथारा पर सवाल, क्या है जैन धर्म में स्वेच्छा मृत्यु की यह प्रथा, क्या भारत में है इसे कानूनी अनुमति

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 6 मई 2025 (16:32 IST)
Know about Santhara: हाल ही में इंदौर में 3 साल की वियाना जैन के संथारा का मामला सामने आया है। बच्ची ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही थी। वियाना के माता पिता ने अपने धर्मगुरु के मार्ग दर्शन में उसका संथारा संपन्न कराया जिसके बाद बच्ची की मृत्यु हो गई। इसके बाद बच्ची के संथारा और इसकी नैतिकता पर सवाल उठ रहे हैं। साथ ही संथारा के बारे में लोगों की जिज्ञासा भी जागी है। आइये जानते हैं संथारा के बारे में विस्तार से :    

संथारा क्या है
जैन धर्म, अहिंसा और त्याग के सिद्धांतों पर आधारित एक प्राचीन भारतीय धर्म है। इस धर्म में जीवन को संयमित और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने के लिए कई कठोर तपस्याएं और व्रत बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है 'संथारा' या 'सल्लेखना', जो मृत्यु को शांतिपूर्वक और स्वेच्छा से स्वीकार करने की एक अनूठी प्रथा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जैन धर्म में किसे संथारा की अनुमति है, यह प्रक्रिया कैसे संपन्न होती है, और भारत में इसकी कानूनी स्थिति क्या है? आइए, इन महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

किसे है संथारा की अनुमति?
जैन शास्त्रों के अनुसार, संथारा हर किसी के लिए नहीं है। यह एक अत्यंत गंभीर और सोच-समझकर लिया जाने वाला निर्णय है। संथारा की अनुमति मुख्य रूप से उन व्यक्तियों को दी जाती है जो:
शारीरिक रूप से कमजोर और रोगग्रस्त हों: ऐसे व्यक्ति जिनका शरीर अब सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं है और जो असहनीय पीड़ा से गुजर रहे हों।
आध्यात्मिक रूप से परिपक्व हों: संथारा लेने वाले व्यक्ति में दृढ़ वैराग्य भाव, सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति और मृत्यु को समभाव से स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए।
परिवार और समाज की सहमति: संथारा लेने से पहले व्यक्ति को अपने परिवार और धार्मिक समुदाय के सदस्यों से अनुमति और सहमति प्राप्त करनी होती है। किसी भी प्रकार का दबाव या भावनात्मक ब्लैकमेलिंग अस्वीकार्य है।
गुरु का मार्गदर्शन: सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि संथारा हमेशा किसी योग्य जैन मुनि या अनुभवी धार्मिक व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही लिया जाता है।

कैसे और किसके मार्गदर्शन में लिया जाता है संथारा?
संथारा एक लंबी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे शरीर को भोजन और जल त्यागने की ओर ले जाती है। यह प्रक्रिया किसी योग्य जैन मुनि या अनुभवी धार्मिक व्यक्ति की देखरेख में शुरू होती है। इसमें निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
1. संकल्प: संथारा लेने वाला व्यक्ति अपनी इच्छा और कारणों को गुरु के समक्ष रखता है। गुरु उसकी आध्यात्मिक और मानसिक स्थिति का आकलन करते हैं।
2. त्याग की शुरुआत: गुरु की अनुमति मिलने के बाद, व्यक्ति धीरे-धीरे ठोस भोजन त्यागना शुरू करता है और केवल तरल पदार्थों पर निर्भर रहता है।
3. तरल पदार्थों का त्याग: कुछ समय बाद, व्यक्ति तरल पदार्थों का त्याग भी कर देता है और केवल जल पर निर्भर रहता है।
4. जल का त्याग: अंततः, व्यक्ति जल का त्याग भी कर देता है। इस दौरान, धार्मिक क्रियाएं, ध्यान और आध्यात्मिक चिंतन जारी रहता है।
5. शांतिपूर्ण मृत्यु: संथारा लेने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे शारीरिक रूप से कमजोर होता जाता है और अंत में शांतिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त होता है।
पूरी प्रक्रिया के दौरान, गुरु व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं, उसे धार्मिक ग्रंथों का श्रवण कराते हैं और मृत्यु के भय से मुक्त रहने में सहायता करते हैं। परिवार और समुदाय के सदस्य भी व्यक्ति के साथ रहते हैं और उसका सम्मान करते हैं।

क्या भारत में संथारा को है कानूनी अनुमति?
भारत में संथारा की कानूनी स्थिति विवादास्पद रही है। 2015 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने संथारा को आत्महत्या के समान मानते हुए इसे अवैध घोषित कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि जीवन को समाप्त करने का अधिकार किसी को नहीं है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को भारतीय दंड विधान की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था।

हालांकि, इस फैसले के खिलाफ जैन समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक इकाइयों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में संथारा प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा था कि ये धार्मिक विकल्प है, इसे क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

क्यों हो रहा है संथारा पर विवाद?
हाल ही में इंदौर की साढ़े 3 साल की बच्ची वियाना के माता-पिता द्वारा उसे संथारा दिलाए जाने को लेकर विवाद के पीछे लोगों का तर्क है कि क्या इतनी छोटी बच्ची खुद के लिए यह निर्णय ले सकती थी? क्या उसमें इस प्रथा को लेकर समझ थी कि वह अपनी शारीरिक हालत को लेकर अपना मत रख सके? इससे पहले भी संथारा पर विवाद होते रहे है जिसे लेकर अलग अलग दलीलें दी जाती रहीं हैं:
आत्महत्या बनाम धार्मिक प्रथा: कुछ लोग संथारा को आत्महत्या का एक रूप मानते हैं, जो भारतीय कानून के तहत अपराध है। उनका तर्क है कि किसी भी व्यक्ति को अपना जीवन समाप्त करने का अधिकार नहीं है।
मानवाधिकार: कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि संथारा गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
धार्मिक स्वतंत्रता: जैन समुदाय का तर्क है कि संथारा उनकी धार्मिक प्रथा का अभिन्न अंग है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि संथारा का उद्देश्य आत्महत्या नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और शांतिपूर्ण मृत्यु को प्राप्त करना है।
दुर्व्यवहार की संभावना: कुछ लोगों को यह डर है कि कमजोर या बुजुर्ग लोगों को संथारा लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है। हालांकि, जैन समुदाय इस बात पर जोर देता है कि संथारा हमेशा स्वैच्छिक होता है और गुरु की अनुमति के बिना इसे नहीं लिया जा सकता।
अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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