यह आपदा सिर्फ कुदरती नहीं!

अनिल जैन
इस समय लगभग आधा भारत भारी बारिश और बाढ़ की चपेट में है। हिमालय से लेकर गंगा के मैदानी इलाकों सहित मध्यप्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात के भी कई इलाके तबाही झेल रहे हैं।
बाढ़ प्रभावित राज्यों से लगातार लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं। हजारों लोग बेघर होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। लाखों एकड़ खेत पानी में डूब गए हैं और फसलें चौपट हो गई हैं। इस पूरी विनाशलीला को कुदरत का प्रकोप बताया जा रहा है लेकिन यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि यह कुदरत का प्रकोप तो है लेकिन यह मानव निर्मित त्रासदी भी है, जो हमारे आधुनिक विकास की अवधारणा पर सवाल खड़े करती है।
 
बाढ़ की खबरें हर साल मानसून के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से आती हैं और भारत जैसे विशाल देश में यह स्वाभाविक भी है। चूंकि इस साल बारिश सामान्य से थोड़ी ज्यादा हुई है, लिहाजा बाढ़ की ज्यादा खबरें स्वाभाविक हैं। लेकिन ज्यादा समस्याएं बारिश के पानी के असंतुलित वितरण से पैदा हो रही हैं। बाढ़ का पानी वहां भी पहुंचा है, जहां बरसात कम हुई है। 
 
जाहिर है, इसके लिए सिर्फ मानसून को दोषी नही ठहराया जा सकता। पिछले कुछेक वर्षों में बाढ़ के पैटर्न को देखते हुए कहा जा सकता है कि जल प्रबंधन में लगातार हो रही चूक से यह संकट बढ़ा है। 
 
भारतीय उपमहाद्वीप एक बहुत बड़ा भू-भाग है और हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि किसी भी वर्ष हर जगह सामान्य बारिश होगी। वास्तव में हम जिसे भारत की 'सामान्य वर्षा' कहते हैं, वह अनेक वर्षों का औसत निकालकर तय की गई है और ठीक उतनी वर्षा शायद किसी भी साल नहीं हुई है। ऐसे में किसी इलाके में ज्यादा और किसी इलाके में कम बारिश हर साल होगी। 
 
इस साल मौसम विभाग का सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान सही होते दिख रहा है, फिर भी देश के कई हिस्सों में सामान्य से काफी कम बारिश भी रिकॉर्ड की गई है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों से मौसम में बदलाव यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बारिश ज्यादा अनियमित होने लगी है।
 
इन तमाम वजहों से पानी का सही प्रबंधन ज्यादा जरूरी है ताकि बाढ़ से नुकसान न हो और पानी का संग्रह भी किया जा सके। ये दोनों बातें जुड़ी हुई हैं। पानी को रोकने और संग्रह करने के जरूरी इंतजाम नहीं किए गए हैं और पुराने इंतजाम कथित विकास की भेंट चढ़ गए हैं इसलिए बारिश का अतिरिक्त पानी बाढ़ पैदा करता है और बारिश के खत्म होने पर पानी की किल्लत पैदा हो जाती है। 
 
इस सिलसिले में गंगा नदी में गाद भर जाने का हवाला देते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़े सवाल की ओर देश का ध्यान खींचा है। उनका कहना है कि गंगा में गाद भर जाने से उसकी गहराई कम हो गई है और बाढ़ आ गई है। उन्होंने फरक्का बांध का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि इस बांध की वजह से गंगा नदी में लगातार गाद जमने लगी है जिसके चलते नदी की गहराई बहुत कम हो गई है। बिहार के 12 जिलों में आई भीषण बाढ़ इसी का नतीजा है। 
 
नीतीश ने कहा है कि या तो फरक्का बांध को तोड़ दिया जाए या गंगा तथा अन्य नदियों में जमी गाद की सफाई का एक बड़ा कार्यक्रम तत्काल शुरू कर दिया जाए। इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में बाढ़ को आने से रोकना तकरीबन नामुमकिन है इसलिए बजाय उसे रोकने के उससे नुकसान न हो, ऐसे इंतजाम किए जाने चाहिए। जबकि कई जगह ऐसा भी हुआ है कि बाढ़ से बचने के लिए किए गए अवैज्ञानिक इंतजामों ने बाढ़ का खतरा और उससे होने वाला नुकसान कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है।
 
नीतीश कुमार ने नदियों की सफाई का सवाल उठाया है लेकिन सचाई यह भी है कि गाद से सिर्फ नदियों की ही गहराई नहीं घटी है, बल्कि तमाम शहरों, कस्बों और गांवों में तालाब, झील, कुएं, नाले आदि भी या तो पट गए हैं या पाट दिए गए हैं। उन पर आधुनिक विकास के प्रतीक शॉपिंग मॉल या बहुमंजिला आवासीय इमारतें खड़ी हो गई हैं। 
 
शहरों का निकासी तंत्र बेहद कमजोर हो गया है इसलिए जगह-जगह पानी का विध्वंस देखने में आता है। इसकी एक बड़ी और भयावह मिसाल हम पिछले वर्ष चेन्नई जैसे महानगर में भी देख ही चुके हैं, जहां बेमौसम भीषण वर्षा से जलप्रलय जैसे हालात बन गए थे जिसकी वजह से सैकड़ों लोग मारे गए थे, हजारों लोग बेघर हो गए थे और अरबों की संपत्ति बर्बाद हो गई थी। वैसे औसत से थोड़ी ज्यादा बारिश भी बड़े शहरों का जीवन अस्त-व्यस्त कर देती है। पिछले महीने गुडगांव और बेंगलुरु इसकी मिसाल बने हुए थे।
 
विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से वर्षा का चक्र प्रभावित हो रहा है इसलिए बाढ़ का खतरा पहले से कहीं ज्यादा भयावह रूप ले सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार बाढ़ की प्रवृत्ति, प्रकृति और बारंबारता में लगातार बदलाव आएगा और इसमें वृद्धि भी होगी इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि पारंपरिक जलस्रोतों को हमें हर हाल में फिर से मजबूत बनाना होगा। यह तभी संभव है, जब विकास योजनाओं का स्वरूप बदले।
 
अब वक्त आ गया है कि भारत में जल प्रबंधन को अनियमित और फौरी तौर-तरीकों से निजात दिलाई जाए और एक दूरगामी नीति के तहत काम किया जाए। पिछले कई वर्षों से भारत के तमाम ग्रामीण इलाकों के अलावा कई महानगर बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इसी के साथ-साथ जल संकट भी बढ़ रहा है। 
 
अब भी अगर सरकार और समाज ने गंभीरता से उपाय नहीं किए तो बाढ़ और सूखा देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा बोझ बन जाएंगे। दुनिया में मौसम का चक्र जिस तरह से बदल रहा है, उसके रहते जल प्रबंधन को नेशनल एजेंडा बनाकर इसके तहत दूरगामी नीतियां बनानी होंगी।
 
सभी बाढ़ नियंत्रण योजनाओं को इसका हिस्सा बनाना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्यों में समन्वय होना चाहिए, साथ ही एक सक्षम आपदा प्रबंधन आपदा प्रबंधन तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए। प्रकृति के मिजाज को पहचानकर उसके साथ जीने की कला हमें नए सिरे से सीखने की जरूरत है।
Show comments

अभिजीत गंगोपाध्याय के राजनीति में उतरने पर क्यों छिड़ी बहस

दुनिया में हर आठवां इंसान मोटापे की चपेट में

कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान

पुतिन ने पश्चिमी देशों को दी परमाणु युद्ध की चेतावनी

जब सर्वशक्तिमान स्टालिन तिल-तिल कर मरा

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

अगला लेख