पैंतरे बदल गए उत्तरी कोरिया के सनकी तानाशाह के

शरद सिंगी
आज हम इस आलेख में संसार को अतिचिंता में डाल देने वाली और फिर उसे चिंता से निजात देने वाली एक ऐसी घटना का विवरण दे रहे हैं जो किसी तिलस्मी कहानी से कम नहीं है। पिछले दिनों उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की बख्तरबंद (आर्मर्ड) ट्रेन जैसे ही चीन की राजधानी बीजिंग पहुंची वैसे ही पूरी दुनिया में सनसनी फ़ैल गई। अचानक यह क्या हुआ कि इस सनकी तानाशाह को अपनी मांद में से बाहर निकलना पड़ा। कोई भी तानाशाह तख्ता पलटी हो जाने के भय इतनी आसानी से अपने देश के बाहर नहीं निकलता है। जब वह चीन पहुंचा तो उसकी ऐसी आवभगत हुई कि जैसे अचानक कोई बिगड़ैल बच्चा सही राह पर आ गया हो।


पूरा का पूरा चीनी नेतृत्व किम की आगवानी में एकत्रित हो गया। किसी समय उत्तरी कोरिया और चीन के बहुत नज़दीकी संबंध थे, किंतु कुछ समय से ये संबंध धीरे-धीरे बिगड़ने लगे थे। चीन, उत्तरी कोरिया का इस्तेमाल अपने दुश्मन देशों के विरुद्ध कर रहा था वहीं उत्तरी कोरिया के तानाशाह की महत्वाकांक्षाएं बढ़ने लगी थीं। वह अपनी शैतानियों से बाज नहीं आ रहा था। मन चाहे जब तो मिसाइलें उड़ा रहा था और सनक आए तब परमाणु परीक्षण कर रहा था। यहां तक कि उसने हाइड्रोजन बम का परीक्षण भी कर डाला था। विश्व उसकी इन करतूतों का दोष चीन पर डाल रहा था यह कहते हुए कि उत्तरी कोरिया को चीन की शह और प्रश्रय प्राप्त होने की वजह से ही तानाशाह को पंख लगे हुए हैं।

धर अंदर ही अंदर चीन भी अपने पड़ोसी देश के इन कारनामों को लेकर चिंतित था। डर था कि कहीं यह देश भविष्य में उसे ही चुनौती न दे डाले। किंतु माहौल में यकायक परिवर्तन हुआ। हुआ यूं कि सनकी तानाशाह को शायद कोई विचार आया और उसने अपनी बहन को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के पास भेज दिया शिखर वार्ता का संदेश लेकर। उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया की वर्षों की दुश्मनी ने अचानक एक नई करवट ली। दक्षिण कोरिया एक प्रजातांत्रिक देश है और किसी भी प्रजातांत्रिक देश का नेता कोई ऐसा अवसर नहीं गंवाना चाहेगा, जहां उसे जनता में लोकप्रिय होने का अवसर मिल रहा हो। उन्होंने तुरंत हां कर दी और अप्रैल माह भी तय कर लिया शिखर वार्ता के लिए। बात यहीं नहीं रुकी।

तानाशाह ने हाथोंहाथ अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने की इच्छा भी जता दी। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रम्प भी ठहरे प्रजातांत्रिक देश के राष्ट्रपति। वे भी हाथ आया मौका कहां चूकने वाले थे। उन्होंने भी तुरंत हां कर दी और मिलने के लिए मई का महीना भी निश्चित हो गया। जो राष्ट्राध्यक्ष कल तक एक-दूसरे को भद्दे सम्बोधनों से बुला रहे थे, वे आज अचानक एक-दूसरे से मिलने के लिए उतावले गए। इस बीच चीन के नेतृत्व को झटका लगा कि अचानक ये क्या हो गया? उसीके इलाके की गली का एक गुंडा उसके हाथों से बाहर कैसे निकल गया? अब चीन को लगा कि कहीं ऐसा न हो कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया मिलकर उत्तरी कोरिया के साथ कोई समझौता कर ले जो चीन के हितों के विरुद्ध हो।

यदि इन देशों में आसानी से सुलह हो गई तो चीन को पूछने वाला कोई नहीं रहेगा। चीन का नेतृत्व तुरंत हरकत में आया। आनन-फानन में उत्तरी कोरिया के छोटे नवाब को आमंत्रित किया गया। अपने पिता की तरह शायद हवाई यात्रा से खौफ रखने वाला यह शासक भी तुरंत अपनी बख्तरबंद ट्रेन से रवाना हो गया। शुरू में इस यात्रा को गोपनीय रखने का प्रयास किया गया जो असफल रहा। जो लगता था कि चीन शांति प्रक्रिया से बाहर हो गया है वह शांति वार्ता की टेबल पर मुख्य किरदार बन गया। उसे भी वैश्विक मंच पर अपनी साख बनानी है। इस तरह चीन ने शायद किम को भी चेतावनी दी होगी कि किसी भी नतीजे या समझौते पर पहुँचने से पहले वह चीन सलाह अवश्य ले ले।

यूं तो कई महीनों से किम और ट्रम्प के बीच ट्विटर के माध्यम से धमकियां प्रसारित हो रही थीं, किंतु जो सर्वाधिक चर्चा में आई वह अधिक पुरानी बात नहीं है। इसी वर्ष के पहले ही दिन तानाशाह ने दावा किया था कि उसकी डेस्क पर एक परमाणु बटन है और पूरा अमेरिका उस बम की रेंज के भीतर है। उसने चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिका कभी मेरे या मेरे राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध नहीं लड़ सकता। जवाब में राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी ट्वीट कर दिया कि मेरे पास भी एक परमाणु बटन है, लेकिन वह तुम्हारे मुकाबले बहुत बड़ा और अधिक शक्तिशाली है और मेरा बटन काम भी करता है!

इस तरह की धमकियों के बीच कोई किसी सकारात्मक कदम की कल्पना भी नहीं कर सकता था किंतु लगता है सनकी तानाशाह को कुछ बुद्धि मिली है। यदि यह वार्ता सफल होती है तथा कुछ परिणाम निकलते हैं तो विश्व के सिर से एक बड़ा बोझ हल्का होगा। इस घटना से निष्कर्ष यह भी निकलता है कि इस रंग बदलती दुनिया में कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र का न तो स्थायी मित्र है और न ही शत्रु। दूसरा कोई भी राष्ट्राध्यक्ष अपने बयानों से पलटने में न परहेज करते हैं और न समय लेते हैं। अगले अंकों में हम ये चर्चा जारी रखेंगे कि इस घटनाक्रम से किसने क्या खोया क्या पाया?

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