आसान नहीं है भगोड़े अपराधियों का विदेशों से प्रत्यर्पण करवाना

शरद सिंगी
आज हम यहां चर्चा करेंगे उन भगोड़ों की जो भारत में अपराध कर भाग चुके हैं और भारतीय एजेंसियां उन्हें वापस लाने के प्रयास कर रही है। किसी भी सरकार को किसी अन्य देश से अपराधी का प्रत्यर्पण करवाना बहुत कठिन होता है चाहे फिर वह आर्थिक क्षेत्र का आरोपी हो या हत्याओं का आरोपी।
 
सबसे पहले विजय माल्या का उदाहरण लेते हैं। इस भगोड़े को वापस लाने के लिए सरकार को एड़ी से चोटी तक दम लगाना पड़ रहा है। भारतीय नागरिक होते हुए भी वह इंग्लैंड के कानून कायदों का भरपूर लाभ ले रहा है और उनकी आड़ में भारतीय एजेंसियों को छका रहा है। ऐसा तब हो रहा है जब उसे इंग्लैंड की सरकार और वहां के प्रशासन का समर्थन प्राप्त नहीं है।
 
यदि विदेशी प्रशासन सहयोग न करे तो ऐसे किसी केस में थोड़ी भी प्रगति नहीं होती। विजय माल्या के केस में आज भारत की सरकारी एजेंसियां जहां तक पहुंच चुकी हैं सामान्यतः वहां तक पहुंच पाना मुमकिन नहीं होता है। दूसरी ओर देश के भीतर भी जब तक सरकार का हर विभाग एक-दूसरे के साथ सहयोग न करे तब तक विदेशी न्यायालयों में भारतीय केस मज़बूत नहीं बन पाता और हमें मालूम है कि हमारे देशी प्रशासन में भी कुछ ढीले पेंच होते हैं जो अपराधी के प्रभाव में होते हैं और वे प्रत्यर्पण के केस को मज़बूत नहीं होने देते।
 
 
उधर अपराधी भागने के लिए या तो उन देशों को चुनते हैं, जहां प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जटिल होती है या ऐसे देशों को जहां वे अपने धन से प्रशासन को खरीद सकते हैं। नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, संदेसारा आदि भगोड़े ऐसे लोगों की गिनती में आते हैं।
 
अगली श्रेणी है दाऊद जैसे आतंकियों की, जो अपराध कर दुश्मन देश के मेहमान बन जाते हैं। इन्हें पाकिस्तान के नेताओं और प्रशासन का समर्थन प्राप्त होता है इसलिए भारतीय नागरिक होने के बावजूद भी इनका प्रत्यर्पण कराना संभव नहीं होता है। जैसा हमने देखा कि भारतीय नागरिकों को मित्र देशों से ही भारत पकड़कर लाना टेढ़ी खीर है तो उन दुश्मन देशों की बात तो छोड़ ही दीजिए, जहां ये सरकारी मेहमान हैं।
 
 
इसके बाद की श्रेणी में आते हैं वे विदेशी अपराधी जो भारत में अपराध कर पुनः अपने देश भाग जाते हैं। ऐसे लोगों को तो मित्र देशों से भी लाना मुमकिन नहीं होता। इन अपराधियों को किसी भी देश की सरकार वापस नहीं देती क्योंकि यदि देती है तो उसके नागरिक होने की वजह से उस देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धक्का लग सकता है। पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी आतंकी डेविड हेडली इसका उदाहरण है जिसे भारत सजा देने के लिए अपने यहां लाना चाहता है किंतु अमेरिका उसे छोड़ेगा यह मुमकिन नहीं लगता।
 
 
अंत में बात करें सबसे जटिल श्रेणी के उन अपराधियों की जो एक देश का नागरिक हैं, दूसरे देश में अपराध करते हैं और तीसरे देश में शरण ले लेते हैं। उपरोक्त सब विवशताओं का ध्यान रखते हुए हम यह सोचें कि यदि ऐसे अपराधी का किसी तीसरे देश से प्रत्यर्पण करवाना है तो कोई चमत्कार हो तभी संभव है। लेकिन पिछले दिनों यह चमत्कार हुआ जब क्रिश्चियन मिशेल जिस पर भारत में बड़े पैमाने पर घूसखोरी के आरोप हैं, एक ब्रिटेन का नागरिक होते हुए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में निश्चिन्त बैठा हुआ था उसे रातोंरात प्रत्यर्पित करवाया गया।
 
 
इस प्रत्यर्पण के पीछे भारत के कितने अधिकारियों ने कितनी बार यात्राएं की होंगी, कितने फोन कॉल हुए होंगे, किस स्तर पर चर्चाएं हुई होंगी हमारे अंदाज़ से परे है किंतु हम यह तो जानते हैं कि बिना शीर्ष स्तर पर बातचीत के यह संभव नहीं था। इस प्रक्रिया के पीछे अजित डोभाल का पूरा दिमाग माना जा रहा है। इस तरह के ऑपरेशन्स को बहुत ही गोपनीय रखा जाता है क्योंकि इन अपराधियों का नेटवर्क बहुत शक्तिशाली होता है और जरा-सी भनक पर ये दुनिया के ऐसे कोने में पहुंच जाते हैं जहां किसी देश की पुलिस नहीं पहुंच सकती।
 
 
कहते हैं मिशेल के प्रत्यर्पण में पिछले छ: महीनों से काम चल रहा था। बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी थी। अपुष्ट खबरों के अनुसार तो सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा को भी नहीं बताया गया था क्योंकि उन पर आरोप हैं कि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग उनकी मदद का लाभ लेकर भारत से फरार हुए थे। मिशेल का प्रत्यर्पण भारत की एजेंसियों की और भारत की कूटनीति की एक बड़ी कामयाबी है। इसमें संदेह नहीं कि इस हाई प्रोफाइल प्रत्यर्पण से अपराधियों के हौसले तो पस्त होंगे ही।

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