बुराई से ही बुराई का इलाज करता फिलीपींस

शरद सिंगी
लोकतंत्र में प्रजा को किसी भी नए प्रयोग को करने में कोई भय नहीं लगता। वह सूरमाओं को तख़्त से उठाकर सड़क पर छोड़ देती है तो किसी साधारण नेता को सड़क से उठाकर तख़्त पर विराजित कर देती है। ऐसा केवल भारत में ही नहीं होता अपितु  अमूमन प्रत्येक प्रजातान्त्रिक देश में यही कहानी है। सच कहा जाये तो प्रजा अनपढ़ हो सकती है किन्तु मूर्ख नहीं। यह कहानी है सुदूर पूर्व के राष्ट्र फिलीपींस की जहाँ  मई 2016 में हुए  आम चुनाव हुए जिनके परिणामो में   यही बात पुनः रेखांकित होती है। 7000 से अधिक छोटे छोटे सुन्दर द्वीपों के  समूह से बनता है एक  छोटा से देश फिलीपींस। 
यह देश विगत कुछ वर्षों से नशीले पदार्थों के व्यापारियों के चंगुल में फंस गया और हजारों नागरिकों को मादक पदार्थों का व्यसनी बना दिया। फिलीपींस की सड़कों पर गुंडों का राज हो गया। देश अराजकता की ओर धकेल दिया गया।  प्रशासन  भ्रष्ट हो गया और आम जनता असुरक्षित। इन परिस्थितियों में मई 2016 में हुए आम चुनावों में जनता ने एक तानाशाह की मानसिकता रखने वाले फिलीपींस के "दावो" शहर के मेयर रोड्रिगो को भारी बहुमत से राष्ट्रपति बना दिया । रोड्रिगो निरंतर 22  वर्षों तक इस शहर के मेयर रहे हैं।  
 
यह शहर रोड्रिगो के मेयर बनने से पूर्व  हत्याओं की राजधानी के रूप में कुख्यात था। रोड्रिगो ने विवादित तरीकों को अपनाकर इस शहर को फिलीपींस के सबसे शांतिपूर्ण शहर में तब्दील कर दिया। उन्होंने शांति समिति के नाम पर एक वध-दस्ता(डेथ स्क्वाड) बना रखा था जो अपराधियों का बिना मुकदमा चलाये एनकाउंटर करता था। फिलीपींस में उनके चाहने वाले उन्हें दंडाधिकारी या काल के नाम से पुकारते हैं तो विरोधी हत्यारे के नाम से। अब सोचिये, राष्ट्र को उम्मीद भी जागी तो ऐसे विवादित शख्स से। प्रजा ने काँटों को निकालने के लिए कांटे का सहारा लिया। 
 
रोड्रिगो ने चार्ज सँभालते ही नशीले पदार्थों के व्यापारियों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया और पकड़ पकड़ कर उनका वध आरम्भ कर दिया। यहाँ तक कि आम जनता को भी  ड्रग माफिया के सदस्यों को जान से मारने की छूट दे दी गयी है और घोषणा की  कि यदि सही अपराधी को मार गिराया तो सरकार उनका साथ देगी। पिछले तीन माह में   दो हज़ार से अधिक लोगों के वध कर दिए गए हैं और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा हैं। औसतन तीस अपराधियों के  क़त्ल  प्रतिदिन की रफ़्तार से जारी है। 11000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।  
 
मृत्युदंड के भय से करीब सात लाख लोगों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। फिलीपींस की कुल दस करोड़ की आबादी के हिसाब से यह संख्या बहुत बड़ी  है। जेलें अपनी क्षमता से कई गुना अधिक भर चुकी हैं। अपराधों का ग्राफ आधा हो गया है और तेजी से नीचे आ रहा है। दूसरी ओर इस कत्लेआम को लेकर मानवाधिकार वालों ने चिल्लाना शुरू कर दिया है। संयुक्त  राष्ट्र संघ ने संयम बरतने की सलाह दी तो रोड्रिगो ने उलटे संयुक्त राष्ट्र संघ पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया। 
 
जब राष्ट्रपति ओबामा ने रोड्रिगो के साथ अपनी भावी मुलाकात में इस अमानवीय कत्लेआम के मुद्दे को उठाने का संकेत दिया तो रोड्रिगो ने ओबामा को वैश्या पुत्र कहकर गाली दे डाली और कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर किसी की सलाह नहीं चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि फिलीपींस पहले अमेरिका का उपनिवेश था और वर्तमान में  दक्षिण एशिया में अमेरिका का प्रमुख सहयोगी है। 
 
चीन द्वारा बार बार समुद्री सीमा उल्लंघन से वह अमेरिका की शरण में गया था और उसके साथ सैन्य रक्षा समझौता किया था। इस समझौते की परवाह किये बिना रोड्रिगो ने अमेरिका के राष्ट्रपति को गाली दी तो उसे दुस्साहस ही कहेंगे। ओबामा ने इस गाली के जवाब में उन्हें एक रंगीन शख्सियत कहकर बात को टाल दिया किन्तु मुलाकात को तुरंत निरस्त कर दिया। अमेरिका इस बयान को लेकर फ़िलहाल सख्त होने के मूड में नहीं है और रोड्रिगो ने भी बाद में इस व्यक्तव्य पर अपना खेद प्रकट कर दिया है। 
 
यदि रोड्रिगो इसी तरह निरंकुश काम करते रहे तो हो सकता है कि वे राष्ट्र को ड्रग माफिया से मुक्त कर दें और देश में कानून व्यवस्था को बहाल कर दें। किन्तु मानवाधिकारों के हनन के चलते फिलीपींस को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में कुछ हानि उठानी पड़ सकती है। यद्यपि दुबई में बसे कुछ फिलीपींस के नागरिकों से बात करके मुझे  पता चला कि नए राष्ट्रपति के काम काज से वे लोग बहुत खुश हैं और कहते हैं कि अब उन्हें फिलीपींस में रह रहे उनके परिवारों की सुरक्षा की चिंता नहीं होती। 
 
रोड्रिगो जो परिणाम दे रहे हैं उसका तो सभी स्वागत करते हैं किन्तु उनके तरीकों पर पूरी दुनिया में विवाद हैं। आधुनिक संसार में रोड्रिगो द्वारा अपनाये तरीकों को मान्यता नहीं है। किन्तु जनता को परिणाम चाहिए तरीकों पर बहस नहीं इसलिए आम जनता में वे लोकप्रिय हो रहे हैं। देखना अब यह है कि विश्व, फिलीपींस की इस रंगीन शख्सियत को इतिहास के काले पन्नों में दर्ज करेगा या अपनी आंखे बंद कर लेगा। हमारी तो धारणा है कि बड़ी बुराई के घने अंधकार को मिटाने के लिए छोटी बुराई भी एक  दीपक के  प्रकाश का काम कर सकती है। यह संसार के इतिहास में एक अद्भुत दृष्टान्त बन सकता है।   
Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

कौन होगा महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, शाह के साथ महायुति के नेताओं का देर रात तक मंथन

Krishna Janmabhoomi : श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस की सुनवाई 4 दिसंबर तक टली, हिंदू पक्ष ने दाखिल किए हैं 18 मुकदमे

Waqf Issue : केरल में मुनंबम जमीन विवाद की जांच करेगा न्यायिक आयोग

अगला लेख