* यदि हम जनसंख्या वृद्धि को सहृदयता और न्यायोचित तरीके से नहीं रोकते हैं, तो हमारे लिए यह काम प्रकृति क्रूर और निर्दयी होकर करेगी। तब हमारे पास सिर्फ एक तबाह दुनिया रह जाएगी।
- डॉ. हेनरी डब्ल्यू केन्डाल, नोबेल पुरस्कार विजेता
* आबादी को स्थिर रखने के लिए हमें प्रतिदिन 3,50,000 व्यक्ति दुनिया से हटाने होंगे। -जेक्वेस यूव्स कॉस्टियू
* जनसंख्या वृद्धि रोकी नहीं गई तो यह ज्यामितीय अनुपात में बढ़ती है। -मॉल्थस
चिंतकों के अनेक गंभीर अनुमानों में से ये कुछ उद्धरण क्या हमें अभी भी सोचने के लिए विवश नहीं करते हैं?
सोच और क्रियान्वयन दोनों में नेतृत्व और समुदाय दोनों की ईमानदार सहभागिता जरूरी है। 'विश्व जनसंख्या दिवस' हमारे लिए मनुष्य जाति के भविष्य के लिए चिंतन और मंथन के अवसर पैदा कर रहा है-
11 जुलाई 1987 को दुनिया की आबादी 5 अरब को पार कर गई थी। यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी चिंता का विषय बनी। एक छोटे और स्वस्थ समाज, जिसका सतत और सुरक्षित भविष्य हो, उसके लिए एक बड़ा कदम उठाने की जरूरत महसूस की गई। इसके लिए प्रजनन स्वास्थ्य, उसकी जरूरत और आपूर्ति के आधार पर महत्वपूर्ण निवेश किया गया। एक कदम प्रजनन स्वास्थ्य के सुधार के साथ गरीबी को कम करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण के लिए भी बढ़ा।
सन् 1989 में गवर्निंग काउंसिल ऑफ यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम ने घोषित किया कि 11 जुलाई का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'विश्व जनसंख्या दिवस' के रूप में मनाया जाए। एक ऐसा दिन, जिस दिन सारे विश्व का ध्यान जनसंख्या विस्फोट से उपजे सवालों और उनकी गंभीरता की ओर खींचा जा सके। समय के साथ हमारी आबादी विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बनती गई, जब यूनाइटेड नेशंस के अनुसार 31 अक्टूबर 2011 को यह 7 अरब को पार कर गई। विश्व जनसंख्या घड़ी और वर्ल्डोमीटर के अनुसार तो यह आज 7.4 अरब को पार कर चुकी है।
आखिर वे कौन से सवाल थे जिन्होंने हमें जनसंख्या नियंत्रण पर सोचने को विवश किया। गवर्निंग काउंसिल ऑफ यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम को, समाज में प्रजनन स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा। महिलाओं के रोग, मातृ मृत्यु और शिशु मृत्य विश्व स्तर पर चौंकाने वाले आंकड़े थे। ऐसा देखा गया है कि 800 माताएं शिशु जन्म के लिए प्रतिदिन अपने प्राण देती हैं। परिवार नियोजन से मातृ मृत्यु दर को सिर्फ मातृत्व की आयु आगे बढ़ाकर, अवांछित गर्भ रोककर फलत: गर्भपात रोककर, एक-तिहाई कम किया जा सकता है। परिवार नियोजन 20% तक शिशु मृत्यु दर को भी रोकने में सहायक है।
विश्वभर में हर वर्ष लगभग 1.8 अरब युवा अपनी प्रजनन आयु में प्रवेश कर रहे हैं। अत: आवश्यक है कि उनका ध्यान प्रजनन स्वास्थ्य के प्रारंभिक ज्ञान की ओर खींचा जाए। 15-19 वर्ष के युवाओं की यौन-संबंधी जरूरतों और जिज्ञासाओं का निराकरण भी एक महती आवश्यकता है। गणनाओं के आधार पर इस आयु की लगभग 15 करोड़ महिलाएं शिशुओं को जन्म देती हैं और लगभग 40 लाख महिलाएं गर्भपात कराती हैं और अपने जीवन का जोखिम उठाती हैं।
कुछ इस तरह के चिंतनीय आंकड़ों के आधार पर विश्व जनसंख्या दिवस मनाने के उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं-
(1) युवाओं, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं, उन्हें सशक्त बनाना।
(2) उन्हें यौन एवं उपयुक्त आयु में विवाह के बारे में विस्तृत जानकारी देना ताकि वे अपनी जिम्मेदारी समझ सके।
(3) युवाओं को उनके लिए उपयुक्त परिवार नियोजन के साधनों के बारे में जानकारी देकर अवांछित गर्भ टालना।
(4) समाज में गर्भ से जुड़ी बीमारियों और अपरिपक्व आयु में गर्भधारण के बारे में जागरूकता लाना।
(5) यौनजनित संक्रमणों (STD) के बारे में बताना ताकि उनसे बचा जा सके।
(6) समाज में जागरूकता लाकर लिंग संबंधी रूढ़ियां मिटाना।
(7) कुछ प्रभावशाली कानून और नीतियों की मांग करना जिससे बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
(8) यह सुनिश्चित करना कि प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के एक आवश्यक अंग के रूप में हर दंपति को सुलभ हो।
(9) यह सुनिश्चित करना कि बालक-बालिकाओं को प्राथमिक शिक्षा सहजता से उपलब्ध हो।
हर वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस पर एक थीम घोषित की जाती है। इस वर्ष की थीम है- 'Investing in Teenage Girls' अर्थात किशोरियों पर निवेश। विश्वभर में किशोरियां विषम परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करती हैं। कई समाज और पालक उन्हें विवाह और मातृत्व के लिए सही समय मानकर उनके विवाह की तैयारी करने लगते हैं। उनका स्कूल जाना बंद कर दिया जाता है और भविष्य चौपट कर दिया जाता है। यदि वे स्कूल भी जाती हैं तो उन्हें स्वास्थ्य, मानव अधिकार और प्रजनन अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ रखा जाता है। परिणामस्वरूप वे बीमारियों, चोटों और शोषण की चपेट में आती रहती हैं। ये चुनौतियां हाशिये की जैसे जातीय अल्पसंख्यक समाजों में, गरीब और दूरस्थ इलाकों में रहने वाली बालिकाओं को ज्यादा झेलनी पड़ती हैं।
जैसे ही हम उन्हें सशक्त करते हैं और जब वे अपने अधिकारों को जानने लगती हैं, तो वे अपने समाजों में सकारात्मक बदलाव की माध्यम बन जाती हैं। UNFPA के कार्यक्रमों का उद्देश्य बाल विवाह खत्म करना, किशोरावस्था में गर्भ रोकना, बालिकाओं को सशक्त कर उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए बेहतर विकल्प प्रस्तुत करना है। इन कार्यक्रमों के तहत UNFPA ने 11.2 मिलियन 10-19 वर्ष आयु समूह की बालिकाओं को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और सूचनाओं का लाभ लेने में मदद की है।
अंतरराष्ट्रीय समाज ने एक सस्टेनेबल डेवलपमेंट का एजेंडा, जो समानता और मानवीय अधिकारों के सिद्धांतों पर आधारित है, के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की है। इसका एकमात्र उद्देश्य है कि कोई पीछे नहीं छूटे। बावजूद गरीबी को कम करने में, हर एक के लिए अनेक अवसर पैदा करने में उल्लेखनीय सफलता के बाद भी लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें उचित अवसर नहीं मिलते। इन्हीं में सर्वाधिक बालिकाएं और किशोरियां होती हैं।
विश्वभर में आधे से अधिक यौन-उत्पीड़न के मामले 15 वर्ष या कम आयु की बालिकाओं के साथ घटित होते हैं। विकासशील देशों में 3 में से 1 बालिका/ किशोरी का विवाह 18 से कम आयु में हो जाता है। बालिकाएं ही बालकों की अपेक्षा अधिक होती हैं, जो स्कूल जाना और न जाना पहले छोड़ती हैं।
यह असमानता 2030 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लक्ष्य को पाने में एक बड़ी बाधा है इसीलिए लिंग समानता और महिला सशक्तीकरण को इस लक्ष्य के साथ जोड़ा गया है। आइए, इस वर्ष की थीम के अनुसार 'इन्वेस्टिंग इन टीन एज गर्ल्स' अर्थात किशोरियों पर निवेश को समर्थन दें। विश्व में हर व्यक्ति आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के लाभों का हकदार है। इसीलिए हम साथ मिलकर सभी के लिए एक सुरक्षित, सम्मानित और भरपूर अवसरों की दुनिया के निर्माण में अपना योगदान दें।
अंत में, भारत जैसे देश में पुरुषों की जिम्मेदारी परिवार का प्रमुख होने से इच्छित लक्ष्य पाने में महत्वपूर्ण हो जाती है। मैं मानता हूं कि मेरी यह अपील उन्हें अवश्य आंदोलित करेगी।