भारत में महिलाओं के बीच वेश्यावृत्ति तो सदियों से चली आ रही है, लेकिन अब पुरुष भी इस धंधे में पड़ने लगे हैं। ऐसे पुरुषों को 'जिगोलो' कहा जाता है। भारत में 'जिगोलो' की सेवाएं दिल्ली में तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में एक जिगोलो एक रात के 1 से 3 हजार रुपए तक लेता है। हालांकि ये सभी कंडोम का प्रयोग करते हैं।
पैसा कमाने की होड़ में डिग्री कॉलेजों के लड़के इस व्यापार में लिप्त हो रहे हैं। इन लड़कों से सेवाएं लेने वाली महिलाएं भी बड़े घरानों की होती हैं, जो एक बार के 3 हजार रुपए तक देती हैं। दिल्ली में करीब 20 एजेंसियां हैं, जो जिगोलो की सप्लाई करती हैं। जिगोलो का ट्रेंड दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ आदि में स्थित मिडिल क्लास नाइट क्लबों में तेजी से बढ़ा है।
1992 में एक सर्वे में पाया गया कि मात्र 27 प्रतिशत सेक्स वर्कर ही कंडोम का प्रयोग करते हैं, जबकि 1995 में यह संख्या 82 फीसती तक पहुंच गई और 2011 की रिपोर्ट के अनुसार, 86 फीसदी सेक्स वर्कर कंडोम का प्रयोग करते हैं यानी जितनी तेजी से यह व्यापार बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से एड्स संबंधी जानकारियां भी।
बीबीसी वर्ल्ड ट्रस्ट के द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, घरेलू हिंसा भी वेश्यावृत्ति में जाने के लिए लड़की को प्रेरित करती है। शुरुआत में जब घर से गाली-गलौज मिलती है और माता-पिता, भाई-बहन साथ नहीं देते, ऐसी स्थिति में लड़कियां यह रास्ता अख्तियार करती हैं।
ऑल इंडिया सप्रेशन ऑफ इम्मॉरल ट्रैफिक एक्ट के अनुसार, भारत में वेश्यावृत्ति को धीरे-धीरे अपराध के दायरे में लाने के प्रयास चल रहे हैं। एआईएसआईटीए के अंतर्गत कोई भी वेश्या अपना फोन नंबर सार्वजनिक स्थल पर प्रकाशित नहीं कर सकती है। इसके लिए दस महीने की जेल अथवा जुर्माना हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति 18 साल से कम उम्र की वेश्या के साथ सेक्स करता पकड़ा जाता है तो उसे 7 से 10 वर्ष की कैद हो सकती है।
भारत में कई इलाके ऐसे हैं, जहां पर वेश्यावृत्ति का स्तर बहुत ही बुरा है। ऐसी जगहों पर 30 रुपए से वेश्याओं की कीमत की शुरुआत होती है। ऐसा ज्यादातर गांव व छोटे कस्बों में होता है और यहीं पर असुरक्षित यौन संबंध ज्यादा बनते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 25 फीसदी 'चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूट्स' या तो अगवा करके लाई गई होती हैं या उन्हें खरीदकर लाया जाता है, वहीं 18 फीसदी वेशयाओं का तो 13 से 18 साल की उम्र में ही कौमार्य भंग हो जाता है।
नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 6 प्रतिशत लड़कियां बलात्कार के बाद बेच दी जाती हैं, उसके बाद देह व्यापार के धंधे में आ जाती हैं। 8 प्रतिशत वेश्याओं ने बताया कि उन्हें उनके पिता ने बड़े व्यापारियों के हाथों बेच दिया, जिस वजह से वो आगे चलकर इस व्यापार में आईं।
भारत में 50 मिलियन वेश्याएं यौन संक्रमण से ग्रसित
दुनियाभर में करीब 200 मिलियन वेश्याएं यौन संक्रमित बीमारियों से ग्रसित हैं, जिनमें से 50 मिलियन तो सिर्फ भारत से आती हैं। वेश्यावृत्ति संसार के सबसे पुराने व्यवसायों में से एक है। स्त्रियां इस धंधे में वह खिलौना होती हैं जिनके साथ जब तक मन होता है खेला जाता है और फिर वासना खत्म होने पर धन देकर छोड़ देते हैं। स्त्रियों का वेश्या बनना समझ में आता है कि पुरुष स्त्री वर्ग की तरफ आकर्षित रहता है और उसकी वासना स्त्री ही मिटा सकती है, लेकिन आधुनिकता, अराजकता और पश्चिमी सभ्यता में वासना की पूर्ति के लिए शायद महिलाएं काफी नहीं।
और इनका कहना है कि यह कहां का अन्याय है कि मर्द जब चाहे तब अपनी वासना की पूर्ति के लिए वेश्याओं का सहारा ले और स्त्री अपना मन मारकर रह जाए, इसीलिए एक नए व्यवसाय का सृजन हुआ 'जिगोलो' या 'पुरुष वेश्याएं'। 'पुरुष वेश्याएं' सुनकर काफी अटपटा लगेगा लेकिन यह सच है कि आज यह लोग हमारे बीच काफी अधिक मात्रा में मौजूद हैं।
जिगोलो का उपयोग महिलाएं अपनी वासना पूर्ति के लिए करती हैं। जब महिलाएं वेश्या बनकर आराम से धन कमा सकती हैं तो पुरुषों में भी यह काम काफी लोकप्रिय हो गया। जिगोलो बने पुरुषों को लगता है कि यह काम उनके लिए आम के आम गुठलियों के दाम जैसा है। और ऐसा होता भी है, लेकिन जब कड़वी सच्चाई सामने आती है तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है।
कई लोगों से शारीरिक संबंध बनाने के चक्कर में एड्स और अन्य एसटीडी (यौन संक्रमित रोग) इन्हें हो जाता है। पुरुष वेश्याओं का समाज में ज्यादा प्रयोग महिलाओं द्वारा किया जाता है खासकर उम्रदराज महिलाओं और विधवाओं द्वारा। कामकाजी महिलाएं जिन्हें घर पर अपने पति से सुख नहीं मिलता वह इन जिगोलो की सर्विस का मजा लेती हैं, लेकिन सबसे अहम सवाल कि रोजगार के इतने साधन होने के बाद भी युवा वर्ग इस दलदल भरे काम को करता क्यों है?
सबसे पहले तो यह जिगोलो प्रणाली भारत में अन्य सामाजिक प्रदूषण की तरह पश्चिमी सभ्यता से आई, जहां नंगापन सभ्यता का हिस्सा है। पश्चिमी सभ्यता के कदमों पर चलते हुए भारत में भी युवा वर्ग इस काम को करने लगा क्योंकि उसे इस काम में ज्यादा मेहनत नजर नहीं आता और कमाई चकाचक।
भारत जहां गरीबी काफी ज्यादा है और रोजगार के साधन सीमित हैं, वहां अच्छी जीवनशैली को तो छोड़ दीजिए अगर आम जिंदगी भी जीनी है तो काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे में बहकते युवा वर्ग को यह काम पैसा कमाने का नया और आसान तरीका लगता है। भारत एक ऐसी जगह है जहां आपको पानी से लेकर देह सब बिकता नजर आएगा। साथ ही पश्चिमी देशों की नकल करना तो अब भारतीयों की पहली पसंद होती जा रही है।
वेश्याओं का भोग करते मर्दों को देखकर उन्मुक्त हो चुकीं महिलाओं को अपनी वासना की पूर्ति के लिए जिगोलो के रूप में साधन मिला। और युवाओं के लिए जब पैसा जिंदगी से बढ़कर हो तो कोई काम गंदा या बुरा नहीं मानते, लेकिन जब भी युवा वर्ग इस तरह का कोई नया काम करता है तो हमेशा इसका सही चेहरा ही उसे दिखता है, उसे इसे काम में छुपा दूसरा पहलू नजर ही नहीं आता।
जिगोलो कार्य तो लड़कों को सही लगता है क्योंकि पैसों के साथ उन्हें इस काम में मजा भी आने लगता है, लेकिन इतनी स्त्रियों से संबंध बनाने के बाद अक्सर उनमें से ज्यादातर एड्स या अन्य घातक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। नतीजा जब वह उम्रदराज होते हैं तो महिलाएं उन्हें इस लायक नहीं समझतीं कि वे उनसे मनोरंजन कर सकें और एड्स आदि के साए में आने से उनका विवाह करना सुरक्षित नहीं होता।
भारतीय समाज के शहरी जीवन में यह प्रदूषण कुछ ज्यादा ही फैला हुआ है क्योंकि एक तो यहां महिलाएं उतनी उन्मुक्त नहीं हैं लेकिन अंदर ही अंदर दबी भावनाओं को शांत करने का वह अक्सर इसका इस्तेमाल करने से पीछे भी नहीं हटतीं। भारतीय समाज में विधवाओं की जो हालत है उससे कोई भी अनजान नहीं और ऐसे में ऐसी महिलाएं इस नए धंधे को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाने लगती हैं।
यानी इसके समाज में आने का सबसे बडा कारण भी समाज ही है। जिगोलो का काम कितना बुरा होता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पुरुष वेश्या कहा जाता है। महिलाएं पुरुषों को उसी तरह इस्तेमाल करती हैं जैसे वह महिलाओं को करते हैं। इन सबमें सबसे अहम बात छुपी रह जाती है कि भारतीय समाज में यह चीज हमारे संस्कारों और सभ्यता के लिए दीमक की भांति है। जिस युवा पीढ़ी पर जमाने भर का बोझ होता है वह चंद मुश्किलों के आगे झुककर इस दलदल में फंस जाता है और अपने भविष्य के साथ मजाक कर लेता है।
अगर कानूनी नजर से देखा जाए तो यह बिलकुल मान्य नहीं है। पुरुष वेश्यावृत्ति को भी वेश्यावृत्ति की तरह देखा जाता है और इसे गैर-कानूनी माना जाता है। भारत में वेश्यावृत्ति के खिलाफ कई कानून हैं लेकिन पुरुष वेश्यावृत्ति के खिलाफ कोई ठोस कानून नहीं है, हालांकि इसके बावजूद भी भारतीय कानून इसे वेश्यावृत्ति ही मानता है, जबकि विश्व स्तर पर इसे मनुष्य के स्वतंत्रता के अधिकार से जोड़कर देखा जाता है।
कई बार पुरुष वेश्यावृत्ति को छुपाने के लिए 'लिव इन रिलेशनशिप' का भी सहारा लिया जाता है। ऐसे में महिलाएं साथी के साथ रहती हैं और किसी कानूनी लफड़े से भी बच जाती हैं। पुरुष वेश्यावृत्ति को अब व्यापार से जोड़कर देखा जा रहा है। केरल जैसे राज्यों में जहां लोग गरीब हैं, वहां सैलानी अब भारत का रुख सेक्स पर्यटन के रूप में भी करने लगे हैं, जहां सैलानी घूमने-फिरने की बजाय सेक्स के लिए आते हैं। सबसे बुरी हालत तो तब दिखती है, जब इस गंदे व्यवसाय में कई बार मासूम बच्चों को भी धकेल दिया जाता है।
जिंदगी को व्यापार बनाकर देखने वाले मानव स्वतंत्रता का उद्घोष करते नजर आते हैं और इस आड़ में अपने छुपे अनैतिक मंतव्यों को पूर्ण करने की ख्वाहिश रखते हैं। क्या भारतीय संस्कृति इतनी लाचार और कमजोर है जो ऐसे दुराचारियों के दबाव में आकर परंपराओं और संस्कृति को तोड़ देगी?
अभी भारत में समलैंगिकता और वेश्यावृत्ति तथा 'लिव इन रिलेशनशिप' के प्रति दृष्टिकोण बदलने की बात की जा रही है। बिका हुआ मीडिया और शासन तंत्र भी रह-रह के ऐसे विचारों को समर्थन देता प्रतीत होता है। इसलिए देश की जनता को स्वयं कठोर निर्णय लेकर अपना विरोध दर्शाना चाहिए, जिससे शासन को मजबूर होकर ऐसे मुद्दों पर उचित कदम उठाना पड़े।