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संस्कृत दिवस: संस्कृतनिष्ठ हिंदी है भारतीयों की संपर्क भाषा, प्रांतवादी सोच से क्या बढ़ेगा अंग्रेजी का वर्चस्व?

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अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 6 अगस्त 2025 (16:32 IST)
भारत की सभी भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है। हिंदी भी संस्कृत से जन्मी भाषा है। संस्कृत भाषा से ही पाली और प्राकृत भाषा जन्म हुआ और इन्हीं तीनों भाषाओं के स्थानीय या बिगड़े स्वरूप को अपभ्रंश कहा गया। अपभ्रंश के तीन मुख्य रूप थे: शौरसेनी, मागधी और अर्धमागधी। इन तीनों अपभ्रंशों से ही हिंदी भाषा का विकास हुआ। दरअसल, 500 ई. से 1000 ई. तक प्राकृत भाषा के अंतिम चरण से अपभ्रंश का विकास हुआ। अपभ्रंश के ही जो सरल और देशी भाषा शब्द थे उसे अवहट्ट कहा गया और इसी अवहट्ट से ही हिंदी का उद्भव हुआ।
 
संस्कृतनिष्ठ हिंदी: हिंदी भाषा करीब 1000 साल पुरानी है। मुगलों के आने के पहले हिंदी भाषा ही संपूर्ण भारत की संपर्क भाषा हुआ करती थी। इस भाषा को हर प्रांत का व्यक्ति आसानी से सीख और समझ सकता था। दूसरी ओर जो हिंदी भाषी थे वे अन्य भाषाओं को भले ही बोल नहीं सकते थे परंतु वे समझ लेते थे। क्योंकि उस काल में हिंदी का स्वरूप संस्कृतनिष्ठ होकर उसमें भारत की बोलियों और प्रांतीय भाषाओं के शब्दों की संख्या ज्यादा थी।

यदि आप शुद्ध हिंदी बोलना सीख जाएंगे तो बहुत जल्द ही आप मराठी, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, उड़िया, बांग्ला, मलयालम, कन्नड़, असमी भाषाओं के शब्दों को भी पकड़ने लगेंगे। इसका एकमात्र कारण यह है कि सभी भारतीय भाषाओं की जड़ में संस्कृत है और भारत की प्रत्येक भाषा में संस्कृत के ही शुद्ध और अपभ्रंश स्वरूप विद्यमान हैं। जैसे मराठी में विमान कहते हैं और हिंदी में भी विमान को विमान कहते हैं। ऐसे हजारों शब्द हैं जैसे अतिथि, अभ्यास, भजन, कविता, राजा, रानी, पृथ्‍वी आदि।
 
फारसी, तुर्की और अरबी निष्ठ हिंदी: जब भारत में उत्तर भारत के कई क्षेत्रों पर मुगलों का राज हो गया तो उन्होंने हिंदी में फारसी, तुर्की और अरबी शब्दों का मिश्रण करना प्रारंभ किया। आगे चलकर हिंदी और उक्त 3 भाषाओं से एक नई भाषा का जन्म हुआ जिसे उर्दू कहा जाने लगा। यही कारण था कि हिंदी का भारत की अन्य भाषाओं से नाता टूटने लगा और इस प्रयास में हिंदी का मूल स्वरूप धीरे-धीरे लुप्त होने लगा और वह फारसीनिष्ठ भाषा बनकर रह गई। हिंदी के बहुत सारे शब्दों की जगह फारसी, तुर्की और अरबी के शब्दों ने ले ली। जैसे स्त्री की जगह औरत, उपयोग की जगह इस्तेमाल, धनी की जगह अमीर, विधि या विधान की जगह कानून, बंदी की जगह कैदी, स्वामी की जगह मालिक, निर्धन की जगह गरीब, ध्वनि की जगह आवाज, विश्राम की जगह आराम, अस्वस्थ की जगह बीमार। ऐसे सैंकड़ों शब्द अब प्रचलन में हैं जो कि हिंदी के शब्द नहीं है। अब लोगों को यही शब्द अच्छे लगते हैं।
 
अंग्रेजी निष्ठ हिंदी: जब अंग्रेजों का शासन काल प्रारंभ हुआ तो हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों का भी मिश्रण होने लगा। हालांकि यह मिश्रण कई जगह मजबूरीवश भी आया क्योंकि ऐसे कई उपकरण या समझे जाने वाले शब्द थे जिनका समानार्थी कोई हिंदी शब्द नहीं था। जैसे कि टायर, पेंसिल, रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर, टिकट, मशीन आदि। हालांकि अंग्रेज काल में विद्यालय और पाठशाला को स्कूल बोला जाने लगा और महाविद्यालय को कॉलेज कहा जाने लगा जो कि अब प्रचलन में है। इसी तरह से अंग्रेजी के बहुत से शब्द हैं जो हिंदी में समाते चले गए। 
 
कठिन हिंदी और सरल हिंदी का कुतर्क: कई लोग मानते हैं कि कठिन हिंदी की जगह सरल हिंदी का प्रयोग करना चाहिए लेकिन सच मायने में यह है कि सरल हिंदी का अर्थ है फारसी और अंग्रेजीनिष्ठ हिंदी है। यानी कि हम से सरल हिंदी के नाम पर अप्रत्यक्ष रूप से कहा जा रहा है कि आप हिंग्लीश बोलो या उर्दू बोलो। हालांकि कठिन हिंदी कभी भी उतनी कठिन नहीं थी जितनी की उसे आज बना दी गई है।
 
हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने और यूएन में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने में रोड़े:
मंदारिन चीनी, स्पेनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी को दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली पहली भाषा माना जाता है, लेकिन दुर्भाग्य की यह यूएन में जगह नहीं बना पाई है। इसके कई कारण हैं जिसमें से एक कारण खुद भारतीयों का विरोध भी है। इसी के चलते हिंदी आज राष्ट्रभाषा नहीं बन पा रही है। प्रांतवादी सोच के लोग हिंदी का विरोध अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए कर रहे हैं लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि भविष्य में हिंदी के खत्म होने से भारत की अन्य भाषाओं का खत्म होना भी तय हो जाएगा। और, इसका फायदा अंग्रेजी भाषा को मिलेगा जो भारत की मुख्य भाषा बन जाएगी। यानि भाषांतरण से होगा धर्मांतरण।
 
दूसरा कारण है संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा न मिलने का मुख्य कारण संयुक्त राष्ट्र का एक नियम है। इस नियम के अनुसार, यदि किसी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाता है, तो उस भाषा के उपयोग से संबंधित सभी लागतों को सभी सदस्य देशों को वहन करना होता है। यानी यह नियम है कि जो देश हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के पक्ष में वोट करेंगे वे बाद में इसे लागू करने में आने वाली लागत को भी उठाएंगे। ऐसे में कई देश हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के भारतीय प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर पा रहे हैं। इसके और भी कारण हैं।
 
कैसे बनेगी हिंदी भारत की संपर्क भाषा?
वर्तमान में भारत के अंदर ही अंग्रेजी को भारत की संपर्क भाषा बनाए जाने का अभियान चल रहा है। आने वाले समय में जिस तरह हिंदी हिंगलिश हो गई है। उसी तरह तमिल, मराठी, गुजराती, असमी, मलायालमी और बंगाली का भी यही हाल होने वाला है। इसलिए हिन्दी को बढ़ावा देने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है हिन्दी में बात करना। जहां जरूरी हो वहीं अंग्रेजी बोलें। इसी के साथ शुद्ध हिंदी बोलने का प्रयास करें। शब्दों का सही उच्चारण करें। बोलते और लिखते वक्त हमें हिन्दी के ही शब्दों का चयन करना चाहिए। इसमें अंग्रेजी, अरबी, तुर्की या फारसी के शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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