भारत ने महारत हासिल कर ली है उपग्रह प्रक्षेपण क्षेत्र में

शरद सिंगी
हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और अभियंताओं ने पिछले माह 22 जून को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सफलता का एक नया पृष्ठ जोड़ा जब भारतीय पीएसएलवी (उपग्रह प्रक्षेपण यान) बीस उपग्रहों को लेकर एक साथ उड़ गया तथा सभी उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। 
उल्लेखनीय है कि इन उपग्रहों में भारत के अलावा अन्य देशों के उपग्रह भी थे जिनमें अमेरिका, कनाडा, जर्मनी जैसे देश शामिल हैं। गर्व की बात है कि प्रथम तो भारत दुनिया के उन नौ देशों में से एक है जिसके पास उपग्रह प्रक्षेपण की तकनीक है तथा अपने प्रथम प्रयास को छोड़कर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र अभी तक 35 यान लगातार सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है। 
 
1750 किलो तक का भार उठाकर 600 किमी की ऊंचाई पर पहुंच सकने वाले भारत के इस पीएसएलवी  यान ने दुनिया में अपनी विश्वसनीयता और  क्षमता का डंका बजा दिया है। अब तक यह  यान 113 उपग्रहों को  भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर चुका  है  जिनमें  से 39 भारतीय और 74 विदेशी हैं। इस प्रक्षेपण  में जो भारतीय उपग्रह छोड़ा गया है उसमें लगे  शक्तिशाली लैंस के माध्यम से पृथ्वी पर  लगभग दो फुट आकार वाली वस्तु को भी साफ देखा जा सकेगा।
 
प्रक्षेपण की तकनीक को सरल शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है। चार खंडों में विभाजित पीएसएलवी राकेट पटाखे के राकेट की तरह उड़ता है। गति प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम सबसे नीचे वाले खंड  को सुलगाया जाता है।  जब इस खंड का ईंधन  समाप्त हो जाता  है तब वह यान से अलग हो जाता है और अगला खंड  सुलगता है जो  राकेट को नई ऊर्जा एवम  गति देता है। यह प्रक्रिया हर खंड में दोहराई जाती है।  अंतिम  खंड  उपग्रहों को लेकर भू-स्थिर  कक्षा में पहुंच जाता है।
 
मिसाइल तकनीक एवम राकेट छोड़ने की तकनीक लगभग एक जैसी  है। अंतर यह है कि मिसाइल की लक्ष्य तक की यात्रा पूरी तरह कंट्रोल रूम से निर्देशित  होती है, वहीं राकेट स्वचालित होते हैं। जिस तरह मिसाइल लक्ष्य पर पहुंचकर  विस्फोटक पदार्थों की डिलिवरी कर नष्ट हो जाती है, उसी तरह  उपग्रहों को  पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के बाद राकेट का  काम समाप्त हो जाता है। यद्यपि अब पीएसएलवी  यान को पुनः पृथ्वी पर लाकर उसे फिर से उड़ने  योग्य बनाने के प्रयोग जारी हैं।  इसी सिलसिले में एक प्रक्षेपण पूरा हो चुका है और यान को पुनः पृथ्वी पर लौटाकर बंगाल की खाड़ी में गिरा दिया गया, किंतु इसे कार्यरूप देने में कुछ वर्ष और लगेंगे।  
 
यद्यपि अंतरिक्ष विज्ञान  में पाकिस्तान के साथ भारत की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है किंतु आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पाकिस्तान अभी तक यह तकनीक विकसित नही कर पाया है बावजूद इसके कि उसने उत्तरी कोरिया से चोरी से मिसाइल तकनीक हासिल की थी। आपको स्मरण होगा कि पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कदीर खान पर यूरोप से परमाणु तकनीक चुराने के अरोप हैं और यही तकनीक उसने उत्तरी कोरिया को देकर बदले में मिसाइल तकनीक हासिल की थी, किन्तु अभी तक उन्हें प्रक्षेपण में कोई सफलता नहीं मिली है। भारतीय प्रधानमंत्री ने नेपाल में सार्क देशों के सम्मेलन में भारत की ओर से  एक सार्क उपग्रह छोड़ने का प्रस्ताव किया था, ताकि  सभी सार्क देश उसका उपयोग कर सकें किंतु पाकिस्तान को यह भेंट पसंद नहीं आई और वह उपग्रह प्रोजेक्ट से अलग हो गया।
 
उपग्रह आज सभी देशों की आवश्यकता है क्योंकि इसी के माध्यम से प्रशासन को मौसम, जलवायु  तथा प्राकृतिक विपदा संबंधी जानकारियां प्राप्त होती है। संचार माध्यमों के लिए इनका इस्तेमाल होता है। उपग्रह बनाना भी कोई बड़ा काम नही बचा है। यह कम गौरव की बात नहीं है कि अब तो कई महाविद्यालयों में विद्यार्थी अपने प्रोजेक्ट में उपग्रह बना रहे हैं, किंतु उपग्रह को  पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना बड़ा तथा महंगा काम है। भारत से उपग्रह छोड़ने की लागत कम होती है इसलिए पूरे विश्व से अब ये मांग बढ़ने वाली है और  भारत के लिए अवसर हैं अपनी अगली शोधों के लिए धन अर्जन करने का। यदि भारत को इस बाजार में अपनी भागीदारी बढ़ानी है तो नए प्रक्षेपण स्टेशन तथा आधारभूत सुविधाओं में निवेश करना होगा। 
 
भारत अभी औसतन वर्ष में तीन प्रक्षेपण कर रहा है, उसकी संख्या बढ़ाकर बीस करनी होगी तब कहीं वह इस बाजार के बड़े खिलाड़ियों अमेरिका, रूस एवम चीन को चुनौती दे पाएगा। बाजार है, तकनीक है, गुणवत्ता के साथ उचित दर है, बस निवेश चाहिए। विश्वास  है कि 'मेक इन इंडिया' को  सर्वाधिक महत्व देने वाली वर्तमान सरकार  इस ओर अवश्य ध्यान दे रही होगी। इसमें संदेह नहीं है कि इस क्षेत्र में भारत के लिए अनंत संभावनाएं हैं और सफलता के अवसर भी कम नहीं हैं। 
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