Bangladeshi Hindu:1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तब पाकिस्तान में 1951 तक करीब 22 प्रतिशत हिंदू रहते थे। 1998 की जनगणना के दौरान पाकिस्तान में 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे थे जो अब और भी घट गए हैं। इसी तरह जब पाकिस्तान का विभाजन हुआ तब बांग्लादेश में 18 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू रहते थे परंतु अब 8 प्रतिशत से कम ही हिंदू बचे हैं। जबकि विभाजन के समय भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या करीब 5 करोड़ के आसपास थी जो अब बढ़कर 15 करोड़ से ज्यादा हो गई है। 2011 में बांग्लादेशी सरकार द्वारा जारी किए गए धार्मिक जनगणना के डाटा अनुसार इस समय बांग्लादेश में हिन्दुओं की संख्या महज 8.6 प्रतिशत रह गई है। बांग्लादेश की 2022 की जनगणना में सबसे बड़े अल्पसंख्यक हिंदुओं की जनसंख्या 1.31 करोड़ से कुछ ज्यादा थी, जो देश की आबादी का 7.96 सबसे बड़ा अल्पसंख्यक हिस्सा हैं। बांग्लादेश की 16.51 करोड़ आबादी में से 91.08 फीसदी मुसलमान हैं।
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हालांकि जनगणना के इस आंकड़े को अंतरराष्ट्रीय समुदाय मानता नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में यहां हिन्दुओं पर हमलों की कई घटनाएं हुई हैं। हिंदुओं की संपत्तियों को लूटा गया, घरों को जला दिया गया तथा मंदिरों की पवित्रता को भंग कर उसे आग के हवाले कर दिया गया और ये हमले बेवजह किए गए जो अब भी जारी है। हसीना सरकार के पतन के बाद हिंदुओं पर अब तक 200 से ज्यादा हमले हो चुके हैं।
बांग्लादेश में कहां-कहां पर है हिंदुओं की जनसंख्या?
बांग्लादेश कुल 64 जिले हैं जिनमें से 8 जिलों में ही अब हिंदू बचे हैं। सिलहट जिले में हिंदुओं की आबादी करीब 13.51, रंगपुर में 12.98. गोपालगंज में 26.94, खुलना में 20.75, स्यालहाट में 24.44, ठाकुरगांव में 22.11 और मैमनसिंह में 3.94 प्रतिशत है। इसी प्रकार अन्य जिलों में आबादी का अनुपात मुस्लिमों की अपेक्षा कम ही है।
पाकिस्तान विभाजन के दौरान शिया और हिंदुओं का कत्लेआम:
पाकिस्तान का जबरन हिस्सा बनाए गए बंगालियों ने जब विद्रोह छेड़ दिया तो इसे कुचलने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों की पहली प्रतिक्रिया उन्हें 'भारतीय एजेंट' कहने के रूप में सामने आई और उन्होंने चुन-चुनकर शिया और हिन्दुओं का कत्लेआम करना शुरू कर दिया। 24 साल के भीतर ही यह दूसरा क्रूर विभाजन था जिसमें लाखों बंगालियों की मौत हुई। हजारों बंगाली औरतों का बलात्कार हुआ। एक गैर सरकारी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30 लाख से ज्यादा हिन्दुओं का युद्ध की आड़ में कत्ल कर दिया गया। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ 9 महीने तक चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हिन्दुओं पर अत्याचार, बलात्कार और नरसंहार के आरोपियों में दिलावर को दोषी पाया गया था।
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बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन: 1971 के दौरान तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार और खूनी संघर्ष में पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) के लगभग 1 करोड़ हिन्दू और मुसलमानों को पड़ोसी देश भारत के पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्य (असम आदि) में शरण लेनी पड़ी। जिसके बाद कठोर कदम उठाते हुए भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के विरोधा के बावजूद भारतीय सेना को भेज बांग्लादेश के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया। बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना ने अपना खून बहाकर सन् 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद कराया गया।
भारतीय सीमा पर गड़बड़ा गए हैं जातीय समीकरण:-
बांग्लादेश बनने के बाद युद्ध शरणार्थी शिविरों में रहने वालों मुसलमानों को सरकार ने आज तक उनके देश भेजने का कोई इंतजाम नहीं किया। अब इनकी संख्या 1 करोड़ से बढ़कर 3.50 करोड़ के आसपास हो गई है। बांग्लादेश की उत्तर, पूर्व और पश्चिम सीमाएं भारत और दक्षिण-पूर्व सीमा म्यांमार से मिलती हैं। दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। बांग्लादेश के पश्चिम में भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल है तो उत्तर-पूर्व में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम हैं। दूसरी ओर बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्व में म्यांमार का रखैन इलाका है। जहां-जहां से भारत की सीमा बांग्लादेश से लगती है अब वहां जातीय गणित गड़बड़ा गया है। हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया है और मुसलमान बहुसंख्यक। बांग्लादेश की ओर से घुसपैठ जारी है जिसके चलते असम में हालात बिगड़ गए हैं।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमात और पाकिस्तान का दखल:-
बांग्लादेश में हिंदुओं की घटती संख्या और अत्याचार के पीछे वहां की कट्टरपंथी जमात के साथ ही पाकिस्तान का हाथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसी के साथ ही भारतीय राजनीति और जनता की ढुलमुल और उपेक्षा की नीति के चलते भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा आए दिन होती रहती है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि भारत सहित दुनियाभर की मीडिया और बुद्धिजीवी हिंदुओं पर हो रहे जुल्म को कभी प्रमुखता से दिखाया या विरोध नहीं किया जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में बहुसंख्यक कहे जाने वाले हिंदुओं को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कभी भी आवश्यक मोरल सपोर्ट नहीं मिला और न ही उन पर हो रहे अत्याचार को रोकने का कभी प्रयास किया। जैसे कश्मीर में जब पंडितों का नरसंहार किया जा रहा था तब न तो केंद्र और राज्य सरकार ने इसको रोकने का प्रयास किया और न ही अन्य राज्यों के हिंदुओं ने कभी उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।