हाल ही में रिलीज हुई एक फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) बहुत चर्चा में है। इस फिल्म को निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने बनाया है और अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, मिथुन चक्रवर्ती, पुनीत इस्सर एवं अतुल श्रीवास्तव ने अभिनय किया है। इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की कहानी को दर्शाया गया है। इसी कारण इस फिल्म #KashmirFilesMovie को लेकर विवाद है। आओ जानते हैं आखिर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की क्या है सचाई।
कबाइलियों का आक्रमण और कब्जा : कश्मीर को लेकर भारत और पाकिसतान में विवाद की शुरुआत विभाजन के समय से ही प्रारंभ हो गई थी। 26 अक्टूबर को 1947 को जम्मू और कश्मीर (लद्दाख सहित) के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया। वर्तमान के पाक अधिकृत कश्मीर में खून की नदियां बहा दी गईं।
पाकिस्तानी सेना, पुलिस और कबायलियों द्वारा मीरपुर, मुजफ्फराबाद, भिंबर, कोटली और देव बटाला जैसे शहरों पर पाकिस्तान के कब्जे के कारण 50 हजार नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी और लाखों लोग विस्थापित होकर शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। पिछले 70 वर्षों में जहां गैरमुस्लिम और शियाओं को मार-मारकर भगा दिया गया, वहीं वहां रह रहे कश्मीरियों को भी पिछले कुछ वर्षों से भगाया जा रहा है।
पंहित नेहरू की गलती : भारत की सेना के साथ पाकिस्तान की सेना और कबाइलियों का युद्ध हुआ लेकिन 31 दिसंबर 1947 को नेहरूजी ने यूएनओ से अपील की कि वह युद्ध विराम चाहता है जिसके चलते सेना कश्मीर में आगे नहीं बढ़ पाई और कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय रेखा के साथ ही नियंत्रण रेखा भी निर्मित हो गई। 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम की घोषणा कराई गई थी लेकिन पाकिस्तान ने तब तक लद्दाख के गिलगित बाल्टिस्तान सहित जम्मू और कश्मीर के आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया था। बाद में उक्त क्षेत्र में से जम्मू कश्मीर के क्षेत्र को पाकिस्तान ने एक आजाद देश घोषित कर दिया और गिलगित बाल्टिस्तान वाले क्षेत्र को अपने हिस्से में लेने के लिए छोड़ दिया जिसे पाकिस्तान का नॉर्दन एरिया कहा गया।
कश्मीर को लेकर भारत पाक युद्ध : इसके बाद पाकिस्तान ने अपने सैन्य बल से 1965 में कश्मीर पर कब्जा करने का प्रयास किया जिसके चलते उसे मुंह की खानी पड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि 1971 में उसने फिर से कश्मीर को कब्जाने का प्रयास किया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका डटकर मुकाबला किया और अंतत: पाकिस्तान की सेना के 1 लाख सैनिकों ने भारत की सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और 'बांग्लादेश' नामक एक स्वतंत्र देश का जन्म हुआ। इंदिरा गांधी ने यहां एक बड़ी भूल की। यदि वे चाहतीं तो यहां कश्मीर की समस्या हमेशा-हमेशा के लिए सुलझ जाती, लेकिन वे जुल्फिकार अली भुट्टो के बहकावे में आ गईं और 1 लाख सैनिकों को छोड़ दिया गया।
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान को समझ में आ गई कि कश्मीर हथियाने के लिए आमने-सामने की लड़ाई में भारत को हरा पाना मुश्किल ही होगा। 1971 में शर्मनाक हार के बाद काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को इस हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई और अगले युद्ध की तैयारी को अंजाम दिया जाने लगा लेकिन अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध के कारण अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे और पाकिस्तान वहां उलझ गया।
1971 से 1988 तक पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी अफगानिस्तान में उलझे रहे। यहां पाकिस्तान की सेना ने खुद को गुरिल्ला युद्ध में मजबूत बनाया और युद्ध के विकल्पों के रूप में नए-नए तरीके सीखे। यही तरीके अब भारत पर आजमाए जाने लगे। सबसे पहले उनसे एक ओर पंजाब के सिखों को खालिस्तान का समय दिखाया और दूसरी ओर उसने कश्मीर के लिए छद्म युद्ध की तैयारी कर ली।
ऑपरेशन टोपाक : जुल्फिकार अली भुट्टों की मौत के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के विरुद्ध 'ऑपरेशन टोपाक' नाम से 'वॉर विद लो इंटेंसिटी' की योजना बनाई। इस योजना के तहत भारतीय कश्मीर के लोगों के मन में अलगाववाद और भारत के प्रति नफरत के बीज बोने थे और फिर उन्हीं के हाथों में हथियार थमाने थे। साथ ही वहां से गैर मुस्लिमों को पलायन के लिए मजबूर करना भी शामिल था।
भारतीय राजनेताओं के इस ढुलमुल रवैये के चलते कश्मीर में 'ऑपरेशन टोपाक' बगैर किसी परेशानी के चलता रहा। 'ऑपरेशन टोपाक' पहले से दूसरे और दूसरे से तीसरे चरण में पहुंच गया। अब उनका इरादा सिर्फ कश्मीर को ही अशांत रखना नहीं रहा, वे जम्मू और लद्दाख में भी सक्रिय होने लगे। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने मिलकर कश्मीर में दंगे कराए और उसके बाद आतंकवाद का सिलसिला चल पड़ा। पहले चरण में मस्जिदों की तादाद बढ़ाना, दूसरे में कश्मीर से गैरमुस्लिमों और शियाओं को भगाना और तीसरे चरण में बगावत के लिए जनता को तैयार करना। अब इसका चौथा और अंतिम चरण चल रहा है। अब सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते हैं और सरेआम भारत की खिलाफत की जाती है, क्योंकि कश्मीर घाटी में अब गैरमुस्लिम नहीं बचे और न ही शियाओं का कोई वजूद है। यह तथ्य दुनिया से छुपा नहीं है कि पाकिस्नान ने पाक अधिकृत कश्मीर को भारतीय कश्मीर में आतंकवादी फैलाने के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर बना दिया है। 1988 से ही पाकिस्तान आतंकवादियों को यहां ट्रेंड कर जम्मू और कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए भेजता है।
बेनजीर भुट्टो ने भड़काई अलगाववाद की आग : पाक अधिकृत कश्मीर के नरसंहार के बाद भारत अधिकृत कश्मीर में रह रहे पंडितों के लिए कश्मीर में छद्म युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के काल में हुई। उसने षड़यंत्र पूर्वक कश्मीर में अलगाव और आतंक की आग फैलाई। उसके भड़काऊ भाषण की टेप को अलगाववादियों ने कश्मीर में बांटा। बेनजीर के जहरिले भाषण ने कश्मीर में हिन्दू और मुसलमानों की एकता तोड़ दी। अलगाववाद की चिंगारी भड़का दी और फिर एक सुबह पंडितों के लिए काल बनकर आई।
नरसंहार की शुरुआत : 19 जनवरी 1990 को कश्मीर के हर पंडितों और हिन्दुओं के घरों पर रातोरात एक पर्चा चिपका दिया गया कि कश्मीर छोड़कर चले जाओ वर्ना मौत के घाट उतार दिए जाओगे। 19 जनवरी 1990 को सुबह कश्मीर के प्रत्येक हिन्दू घर पर एक नोट चिपका हुआ मिला, जिस पर लिखा था- 'कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे।'
इस नोट के साथ ही मस्जिदों से ऐलान किया गया कि पंडितों कश्मीर छोड़ो। सभी ओर अफरा तफरी मच गई और पूरे कश्मीर में कत्लेआम का दौरा शुरु हो गया। सिर्फ भारत ही नहीं पाक अधिकृत कश्मीर में भी यह दौर शुरु हो गया। पनुन कश्मीर सहित 1989 से 1995 के बीच कत्लेआम का एक ऐसा दौर चला की पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पड़ा। पन्नुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। विस्थापित कश्मीरी पंडितों का एक संगठन है 'पनुन कश्मीर'। इसकी स्थापना सन् 1990 के दिसम्बर माह में की गई थी। इस संगठन की मांग है कि कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए।
कश्मीर में आतंकवाद के चलते करीब 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। इस दौरान हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया।
नरसंहार : इस नरसंहार में 6000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 750000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1500 मंदिरों नष्ट कर दिए गए। 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंड़ितों के घाटी से पलायन से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त है।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध के द्वारा आज कश्मीरी पंडित अपनी पवित्र भूमि से बेदखल हो गए हैं और अब अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। पिछले 32 वर्षों से जारी आतंकवाद ने घाटी के मूल निवासी कहे जाने वाले लाखों कश्मीरी पंडितों को निर्वासित जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर दिया है। ऐसा नहीं है कि पाक अधिकृत कश्मीर और भारतीय कश्मीर से सिर्फ हिंदुओं को ही बेदखल किया गया। शिया मुसलमानों और सिखों का भी बेरहमी से नरसंहार किया गया।
पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो हजारों कश्मीरी मुसलमानों ने पंडितों के घर को जलाना शुरू कर दिया। महिलाओं का बलात्कार कर उनको छोड़ दिया। बच्चों को सड़क पर लाकर उनका कत्ल कर दिया गया और यह सभी हुआ योजनाबद्ध तरीके से। इसके लिए पहले से ही योजना बना रखी थी। सबसे पहले हिन्दू नेता एवं उच्च अधिकारी मारे गए। फिर हिन्दुओं की स्त्रियों को उनके परिवार के सामने सामूहिक बलात्कार कर जिंदा जला दिया गया या नग्नावस्था में पेड़ से टांग दिया गया। बालकों को पीट-पीट कर मार डाला। यह मंजर देखकर कश्मीर से तत्काल ही 3.5 लाख हिंदू पलायन कर जम्मू और दिल्ली पहुंच गए। यह सारा तमाशा पूरा देश मूक दर्शक बनकर देखता रहा।
आतंक का ट्रेनिंग स्थल : जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में एक बार उमर अब्दुल्ला ने ताजा जानकारी दी थी कि पाक अधिकृत कश्मीर में अब भी करीब 4,000 कश्मीरी ट्रेनिंग ले रहे हैं। उन्होंने विधायक प्रोफेसर चमनलाल गुप्ता के प्रश्न के लिखित जवाब में विधानसभा में कहा था कि पीओके और पाकिस्तान में कथित रूप से अब भी करीब 3,974 आतंकवादी घुसपैठ की तैयारी कर रहे हैं।
पुनर्वास की सचाई : सच्चाई यह है कि कोई भी संगठन, राज्य और केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास में खास रुचि नहीं रखती। कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए विभिन्न केंद्रीय व राज्य सरकारें लगातार प्रयास करने का दावा करते हुए कई पैकेजों की घोषणा कर चुकी हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है।