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राज्यपाल आनंदी बेन ने क्यों कहा कि मोदी-योगी की जोड़ी कोई नहीं तोड़ सकता?

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अनिल जैन

भाजपा में सतही तौर पर देखा जाए तो नेतृत्व को लेकर कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्विवाद रूप से पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं ही और उनके बाद नंबर दो की पोजिशन पर भी गृह मंत्री अमित शाह के सामने कोई चुनौती नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद कुछ वाकये ऐसे हुए हैं जो बताते हैं कि भाजपा में अब शीर्ष स्तर सब कुछ ठीक नहीं है और 'मोदी के बाद कौन’ को लेकर सत्ता-संघर्ष शुरू हो चुका है। 
 
भाजपा में नंबर दो की पोजिशन को लेकर चर्चा तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ही शुरू हो गई थी। चुनाव से पहले चर्चा थी कि अमित शाह उत्तर प्रदेश में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। यह चर्चा निराधार भी नहीं थी, क्योंकि 2014 के बाद उत्तर प्रदेश में यह पहला ऐसा चुनाव था जिसमें अमित शाह ने बहुत कम रैलियां की। भाजपा ने यह पूरा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधे पर सवार होकर ही लड़ा। उत्तर प्रदेश से शाह के अलगाव की वजह यह मानी जा रही थी कि योगी का तेजी से उभरना वे अपनी नंबर दो की पोजिशन के लिए निरापद नहीं मानते हैं। 
 
हालांकि चुनाव के बाद इस तरह की कई रोपी हुई कहानियां मीडिया में आई कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत में अमित शाह ने अहम भूमिका निभाई है और पार्टी में उनका कद पहले से ज्यादा ऊंचा हो गया है। शीर्ष पर मोदी के बाद योगी के आ जाने के प्रचार की काट के लिए यह दलील भी खबरों में परोसी गई कि योगी तो अभी पार्टी के सात सदस्यीय सर्वोच्च निकाय यानी संसदीय बोर्ड के सदस्य भी नहीं हैं, इसलिए तकनीकी रूप से उनकी हैसियत संसदीय बोर्ड के मौजूदा सात सदस्यों के बाद ही आंकी जा सकती है। 
 
बात तार्किक रूप से सही भी है लेकिन यह भी वास्तविकता है कि भाजपा में संसदीय बोर्ड का सदस्य होना अब कोई बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। पार्टी में वाजपेयी-आडवाणी के दौर तक जरूर संसदीय बोर्ड की हैसियत हुआ करती थी लेकिन अब तो सारे फैसले मोदी-शाह और संघ नेतृत्व के स्तर पर ही होते हैं, जिस पर संसदीय बोर्ड औपचारिक रूप से अपनी मंजूरी की मुहर लगा देता है। इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं कि योगी संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं या नहीं। वैसे भी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच भी बीच भी अमित शाह से ज्यादा लोकप्रिय योगी ही हैं। जिस भी प्रदेश में चुनाव होता है वहां के उम्मीदवारों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच शाह से ज्यादा योगी की रैलियों के लिए मांग होती है।
 
उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद शाह का कद बढ़ने और योगी के संसदीय बोर्ड का सदस्य न होने की चर्चा को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान अपने एक बयान के माध्यम से फालतू करार दे दिया है। राज्यपाल के रूप में आनंदी बेन का राजनीतिक बयानबाजी करना क्या उचित है, यह सवाल अब बेमतलब है, क्योंकि पिछले आठ वर्षों के दौरान राज्यपाल और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता का अंतर अब पूरी तरह खत्म हो गया है। 
 
पिछले आठ वर्षों के दौरान शायद ही कोई ऐसा राज्यपाल रहा हो जो जिसने सक्रिय राजनीति से अपने को अलग रखा हो। गैर भाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल जहां अपनी ही राज्य सरकार के खिलाफ विपक्ष के नेता की भूमिका में काम करते हैं, वहीं भाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल पार्टी और सरकार के प्रचारक के रूप में काम करते हुए दिखते हैं। कुछ राज्यपालों ने तो चुनावों में भाजपा का प्रचार करने में भी संकोच नहीं किया है। आनंदी बेन भी अपवाद नहीं हैं। वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल रहते हुए भी पार्टी के प्रचारक की भूमिका निभाती रही हैं और अब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के रूप में भी यही कर रही हैं।
 
बहरहाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश में दोबारा भाजपा की सरकार बनने के बाद अपने गृह राज्य गुजरात की यात्रा के दौरान सूरत में एक निजी मेडिकल कॉलेज के भूमिपूजन कार्यक्रम में राजनीतिक भाषण देते हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोडी का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ''मोदी और योगी की जोड़ी का कोई तोड़ नहीं है। इस जोड़ी को कोई नहीं तोड़ सकता, कोई नहीं।’’ 
 
आनंदी बेन यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने वहां मौजूद भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा, ''इस चुनाव में आप सबका बहुत सहयोग रहा। आप में से कई लोग चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश आए थे, जिससे एक सुंदर वातावरण बन गया था। उत्तर प्रदेश में पिछले 35-40 साल के दौरान ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि कोई मुख्यमंत्री दूसरी बार चुनकर आया हो। इसके लिए आप मुझे भी बधाई दीजिए और मेरा अभिनंदन कीजिए।’’
 
भाजपा की अंदरूनी राजनीति के लिहाज से आनंदी बेन के इस बयान के गहरे मायने हैं। उन्होंने जब कहा कि मोदी-योगी की जोड़ी को कोई नहीं तोड सकता, तो सवाल है कि वह कौन है जो मोदी-योगी की जोड़ी को तोड़ना चाहता है? इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस जोड़ी को मजबूत करने और उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीत दिलाने में कई लोगों ने मेहनत की है तो सवाल है कि क्या कई लोगों में वे खुद भी शामिल हैं, जिसके लिए वे लोगों से अपना अभिनंदन करने को कह रही हैं? 
 
यह कहना गैर जरूरी है कि आनंदी बेन ने विशुद्ध राजनीतिक बयान दिया है, जिससे भाजपा के अंदर का सत्ता-संघर्ष उजागर होता है। गुजरात की राजनीति जानने वाले जानते हैं कि आनंदी बेन और अमित शाह दोनों ही मोदी के बेहद विश्वासपात्र हैं लेकिन दोनों का आपसी रिश्ता छत्तीस जैसा है।
 
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदी बेन का गुजरात का मुख्यमंत्री बनने और हटने, फिर उनकी जगह अमित शाह के करीबी विजय रूपानी के मुख्यमंत्री बनने और फिर उनको हटाए जाने के बाद आनंदी बेन की करीबी भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने की राजनीति शाह और आनंदी बेन के राजनीतिक अहम के टकराव की कहानी है। इसलिए आज आनंदी बेन अगर मोदी-योगी की जोड़ी के अटूट होने की बात कर रही हैं तो यह भाजपा में नंबर दो की पोजिशन के लिए सत्ता-संघर्ष शुरू होने का स्पष्ट संकेत हैं। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती।) 

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