भगत सिंह का गुम हुआ खत 83 साल बाद सामने आया

(23 मार्च को शहादत दिवस पर विशेष)

Webdunia
देश के लिए प्राण न्यौछावर कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह का एक गुम हुआ खत 83 साल बाद सामने आया है। यह पत्र उन्होंने क्रांतिकारी साथी हरिकिशन तलवार के मुकदमे में वकीलों के रवैए के खिलाफ लिखा था।

भगत सिंह के जीवन पर कई पुस्तकें लिख चुके जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल ने बताया कि शहीद-ए-आजम का यह गुम हुआ खत 83 साल बाद सामने आया है, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भगत सिंह के दुर्लभ दस्तावेज’ में प्रकाशित किया है।


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हरिकिशन तलवार ने 23 दिसंबर 1930 को लाहौर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दौरान पंजाब के तत्कालीन गवर्नर को गोली चलाकर मारने का प्रयास किया था, लेकिन हमले में वह बच गया था और एक पुलिस निरीक्षक मारा गया था।

चमन लाल ने बताया कि हरिकिशन तलवार के मुकदमे को लेकर शहीद-ए-आजम द्वारा लिखा गया यह पत्र गुम हो गया था। इस पर भगत सिंह ने दूसरा पत्र लिखकर कहा था कि उन्होंने एक पत्र पहले भी लिखा था जो कहीं गुम हो गया है। इसीलिए उन्हें दूसरा पत्र लिखना पड़ रहा है।

मुकदमे के दौरान वकीलों ने तर्क दिया था कि हरिकिशन का गवर्नर को मारने का कोई इरादा नहीं था। इस पर भगत सिंह वकीलों के रवैए से नाराज हो गए।

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भगत सिंह ने पत्र में लिखा था, ‘हरिकिशन एक बहादुर योद्धा है और वकील यह कहकर उसका अपमान नहीं करें कि उसका गवर्नर को मारने का कोई इरादा नहीं था।’

चमन लाल ने बताया कि भगत सिंह ने यह खत 23 मार्च 1931 को अपनी फांसी से दो महीने पहले जनवरी 1931 में लिखा था। गवर्नर को मारने के प्रयास और पुलिस निरीक्षक को मारने के मामले में हरिकिशन को भी 9 जून 1931 को फांसी दे दी गई।
हरिकिशन तलवार मरदान शहर (अब पाकिस्तान के खबर पख्तूनख्वा प्रांत में) के रहने वाले थे। उनके भाई भगत राम तलवार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उस समय महत्वपूर्ण सहयोग दिया था, जब वह अंग्रेजों की नजरबंदी को धता बताते हुए विदेश चले गए थे।

भगत सिंह का 83 साल बाद सामने आया खत 1931 में कहीं गुम हो गया था, लेकिन हरिकिशन की फांसी के बाद यह खत 18 जून 1931 को हिन्दू पंच में छपा था। इसके बाद इस खत को फिर भुला दिया गया और तबसे यह अब सामने आया है।

अखबार में प्रकाशित खत की प्रति को झांसी के पास बीना निवासी पंडित राम शर्मा ने संभालकर रखा हुआ था। बाद में उन्होंने यह पलवल के निवासी रघुवीर सिंह को भेजा।

चमन लाल के अनुसार रघुवीर सिंह से यह पत्र उन्हें मिला और अब यह 83 साल बाद फिर से लोगों के सामने है। ( भाषा)

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