आतंकवादी सिद्ध हो चुके अफजल गुरु की फांसी के बाद, बहुत संभव है, कि देविंदरपाल सिंह भुल्लर को भी किसी भी समय फांसी पर लटका दिया जाए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गत 12 अप्रैल को फांसी की वैधता की पुष्टि कर दी है।
अब, सब कुछ इस पर निर्भर है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दया दिखाने की भुल्लर के परिवार की और देश-विदेश की गुहार को स्वीकार करते हैं या नहीं।
इस गुहार में जर्मनी की सरकार भी शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला आने के कुछ ही घंटे बाद देविंदरपाल सिंह भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर पंजाब के शिरोमणि अकाली दल के कुछ नेताओं को साथ ले कर नई दिल्ली में जर्मन दूतावास पहुंचीं।
बर्लिन स्थित जर्मन विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, 'हां, नई दिल्ली में जर्मन राजदूत और भुल्लर के परिजनों तथा समर्थकों के बीच एक भेंट हुई है।
स्मरणीय है कि भारत में 1991 और 1993 मे हुए दो आतंकवादी बमकांडों में शामिल रहे भुल्लर को जर्मनी में ही गिरफ्तार कर भारत के हवाले किया गया था। 1993 वाले बमकांड के बाद, जो नई दिल्ली स्थित युवा कांग्रेस के कार्यालय के बाहर हुआ था और जिससे 9 लोग मरे तथा 17 घायल हुए थे, भुल्लर लंबे समय तक भागता फिरता व पुलिस को चकमा देता रहा।
इस लुका-छिपी का अंत हुआ दिसंबर 1994 में। भुल्लर हवाई जहाज से कनाडा जा रहा था। रास्ते में उसे जर्मनी के फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे पर उतरना पड़ा। वहीं जर्मन पुलिस ने उसे धर-दबोचा। उसका पासपोर्ट जाली था।
जेल की हवा खाने से बचने के लिए उसके पास सबसे कारगर और सस्ता उपाय यही था कि वह जर्मनी में राजनीतिक शरण की मांग करता। लाखों विदेशी इसी तरह जर्मनी में पैर जमाने में सफल रहे हैं।
जर्मनी का संविधान राजनीतिक अत्याचार पीड़ित हर विदेशी को जर्मनी में शरण मांगने का मौलिक अधिकार देता है।
भुल्लर ने भी यही किया। कहा, वह सिख है, 'खलिस्तान लिबरेशन फोर्स' से संबंध रखता है, इसलिए भारत में सरकारी अत्याचार से पीड़ित रहा है। उसे भारत लौटाने के बदले जर्मनी में शरण दी जाए। लेकिन, जांच-पड़ताल के बाद उसकी शरण-याचना ठुकरा दी गई।
मुख्य कारण यह बताया गया कि उसका पासपोर्ट जाली था। यानी वह धोखाधड़ी कर रहा था। साथ ही कई आपराधिक मामलों में भी उसकी पहले से ही तलाश थी। तय हुआ कि उसे भारत को प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा।
जर्मनी के और कई विदेशी मानवाधिकार संगठनों ने भी इस प्रत्यर्पण का विरोध किया। उनका तर्क था कि भुल्लर को भारत में यातनाएं दी जाएंगी। हो सकता है कि उसे फांसी पर लटका दिया जाए।
जर्मनी में, तथा यूरोप के कई अन्य देशों में भी, नियम है कि जिन देशों में अब भी मृत्युदंड दिया जाता है, वहां किसी को भी लौटाया नहीं जाए। भारत में क्योंकि मृत्युदंड का परित्याग नहीं किया गया है, इसलिए अपराध चाहे जो भी हो, किसी भी व्यक्ति को भारत वापस नहीं भेजा जाना चाहिए।
विरोध के इन स्वरों को अनसुना करते हुए जर्मनी ने 1995 में भुल्लर को भारत लौटा दिया। भारत पहुंचते ही नई दिल्ली में उसे गिफ्तार कर लिया गया। दो साल बाद फ्रैंकफर्ट स्थित जर्मनी के एक प्रशासनिक न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि भुल्लर को जर्मनी में शरण नहीं देना तो सही था, लेकिन उसे भारत लौटाना सही नहीं था। उसे भारत लौटाकर जर्मन अधिकारियों ने देश के क़ानून की अनदेखी की है।
देविंदरपाल सिंह भुल्लर के यार-दोस्त, परिजन और शिरोमणि अकाली दल के उसके शुभचिंतक तभी से जर्मनी को कोसते रहे हैं कि उसने भुल्लर को भारत भेज कर उस की जान को दांव पर लगा दिया है। भारत में जर्मन राजदूत से मिल कर उन्होंने राजदूत महोदय को जो पत्र दिया, उसमें दवा किया है कि भुल्लर को सुनाया मृत्युदंड जेल में जोर-जबर्दस्ती से लिए गए कबूली बयान पर आधारित है।
उसमें लिखा है कि भुल्लर को जिस षड़यंत्र और उस को पूरा करने में हाथ बंटाने का दोषी ठहराया गया है, अदालत ने उसके मुख्य अभियुक्त को बरी कर दिया है।
यूरोप से भुल्लर के लिए दया की गुहार... आगे पढ़ें...