यदि आज श्रीकृष्ण आ जाएँ तो?

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युगपुरुष श्रीकृष्ण ऐसे महामानव थे, जिस पर भारत समुचितरूपेण गौरव का अनुभव कर सकता है। वे आदर्श मानव एवं मानवता के आदर्श थे। शेक्सपीयर ने एक स्थान पर लिखा है कि- 'कुछ जन्मजात महान होते हैं, कुछ महत्ता प्राप्त करते हैं और कुछ पर महत्ता लाद दी जाती है'। किन्तु वैदिक मान्यता इससे थोड़ी-सी हटती हुई है। केवल इन्हीं अर्थों में कि कोई भी व्यक्ति जन्मजात महान नहीं होता। क्योंकि जन्म से तो प्रत्येक व्यक्ति शूद्र होता है, संस्कारों से ही वह द्विज बनता है। अतः महत्ता दो प्रकार की ही शेष रह जाती है। एक वह जो स्वयं अर्जित की जाती है और दूसरी वह जो कि उस पर लाद दी जाती है।

मनुष्य महान कैसे बनता है? इसका उत्तर सुकरात के शब्दों में इस प्रकार है- 'मनुष्य ठीक उसी मात्रा में महान बनता है, जिस मात्रा में वह मानव मात्र के कल्याण के लिए श्रम करता है'। महान समाज सुधारक एवं वेदोद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती इससे भी एक कदम आगे जाकर कहते हैं कि मानव मात्र का ही कल्याण क्यों? प्राणीमात्र का क्यों नहीं? इसीलिए संसार का उपकार करने की बात का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति जितना संसार का उपकार करेगा, वह उतना ही महान होगा।
पाश्चात्य लेखक ट्‌यानेवी के अनुसार विकट परिस्थिति आने पर प्रत्येक व्यक्ति उस परिस्थिति से निकलने के लिए जूझना चाहता है, परन्तु स्वार्थ अथवा भीरुता के कारण जूझ नहीं पाता। उस समय कोई महापुरुष होता है, जो सबकी पीड़ा को अपने हृदय में खींचकर परिस्थिति की विषमता से लड़ने के लिए उठ खड़ा होता है। और जब कोई ऐसा महापुरुष आता है तब सबके सिर उसके समक्ष झुक जाते हैं।

महामानव श्रीकृष्ण ऐसे ही थे। वे न तो जन्मजात महामानव थे और न ही उन पर महानता लादी गई थी, अपितु यह महत्ता उन्होंने स्वयं अर्जित की थी।

मनुष्य अपनी विविध प्रवृत्तियों से उन्नति के सर्वोच्च सोपान पर पहुँचकर किस प्रकार एक साधारण व्यक्ति से महामानव तथा युगपुरुष के उच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है, इसका श्रेष्ठ उदाहरण कृष्ण का जीवन है। कारागार की विवशतापूर्ण परिस्थितियों में जन्म लेकर भी कोई मनुष्य संसार का महानतम नेता बन सकता है, यह कृष्ण का चरित्र देखने से स्वतः ही विदित हो जाता है।

बंकिम के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपनी ज्ञानार्जनी, कार्यकारिणी तथा लोकरंजनी तीनों प्रकार की प्रवृत्तियों को विकास की चरम सीमा तक पहुँचा दिया था, तभी उनके लिए यह सम्भव हो सका कि वे अपने समय के महान राजनीतिज्ञ और समाज व्यवस्थापक के गौरवान्वित पद पर आसीन हो सके।

श्रीकृष्ण ऐसे महामानव थे जो युगों के बाद जन्म लिया करते हैं। फिर भी यदि यह कल्पना कर ली जाए कि श्रीकृष्ण आज आ जाएँ, तो वे क्या सोचेंगे? और क्या करेंगे? यदि श्रीकृष्ण आज आ जाएँ तो सबसे पहले यह देखकर अत्यंत आश्चर्य प्रकट करेंगे कि सर्वत्र जिस कृष्ण की जय-जयकार हो रही है, क्या वस्तुतः वह मैं ही हूँ? फिर वह यही सोचेंगे कि नहीं, निश्चय ही वह कृष्ण कोई और होगा, जिसकी यह जय-जयकार कर रहे हैं। क्योंकि मैं तो केवल एक मानव था, विशुद्ध मानव! पर इन्होंने तो मुझ पर ईश्वरत्व आरोपित कर मेरी सहज, स्वाभाविक मानवता को अनेक प्रकार से कलंकित कर न जाने कहाँ तिरोहित कर दिया है?'

और जब राधा का नाम अपने नाम के साथ जुड़ा पाएँगे तो एक बार फिर सोचेंगे कि क्या सचमुच यह मैं ही हूँ जिसके नाम के साथ एक पराई स्त्री का नाम हठपूर्वक जोड़ा जा रहा है। अरे! मैंने तो रुक्मणी के साथ विवाह किया था। यह राधा कहाँ से आ गई? और फिर सोचेंगे कि यदि कहीं आज रुक्मणी आ जाए और यह देखे कि मेरे नाम के साथ राधा नाम की स्त्री का नाम जुड़ा हुआ है तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी? क्या यह वही कृष्ण है कि जिसने स्वप्न में भी परनारी का कभी चिन्तन तक नहीं किया था और जिसने गृहस्थ में भी संयम की मर्यादा स्थापित की थी तथा जिसने एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति के लिए 12 वर्ष तक स्वयं भी और मुझे भी घोर ब्रह्मचर्य पालन का व्रत का पालन करवाया था। हाय! आज इसकी 16 हजार रानियाँ हैं?

  यदि आज श्रीकृष्ण आ जाएँ तो यह देखकर अत्यन्त दुःखी होंगे कि उस समय तो एक द्रौपदी की लाज लुटी थी पर अब तो हर द्रौपदी की लाज लुट रही है। तब तो एक कंस था पर आज तो सभी ओर कंस ही दीख रहे हैं।      
अपने नाम के साथ चोर, जार, शिखामणि तथा अन्य अनेक गालियों को सुनकर श्रीकृष्ण कब तक चुप रहेंगे? शिशुपाल की भी सौ गालियाँ सहन की थीं। फिर चक्र सुदर्शन उठाना ही पड़ा था। तो आज इन गाली देने वाले भक्तों को छोड़ देंगे? कदापि नहीं। श्री कृष्ण दुष्टों को दंड देने में विश्वास रखते हैं। और जब उन्हें यह बताया जाएगा कि यह सब तो आपके भक्तजन हैं, तो फिर वे सोचने के लिये बाध्य होंगे कि मेरे भक्त हैं या शत्रु? मैंने तो सम्पूर्ण जीवन कोई पाप कर्म किया ही नहीं था, फिर इन भक्तों ने चोर-जार-शिखामणि मुझे कैसे कह दिया? यह रासलीला मेरे नाम से कैसे सम्बद्ध हो गई? दासी के साथ व्यभिचार से यह कृष्ण कैसे जुड़ गया?

श्रीकृष्ण यदि आज आ जाएँ तो अवश्यमेव सोचेंगे और कहेंगे कि इन्होंने नाहक मुझे भगवान बना दिया। काश! यदि यह मुझे मानव ही रहने देते तो मेरी सहज स्वाभाविक मानवता तो लुप्त न होती। मैं व्यर्थ में कलंकित तो न होता? शिशुपाल ने मुझे सौ गालियॉं दी थीं, किन्तु ऐसी गाली जैसी ये भक्तजन दे रहे हैं, किसी ने भी न दीं थी। छिः-छिः-छिः। कृष्ण यह तू क्या सुन रहा है? क्या यही है तू, जिसे श्रेष्ठतम व्यक्ति होने के नाते सर्वप्रथम अर्ध्य दिया गया था? अरे! तेरे नाम के साथ यह 'योगीराज' शब्द क्यों लगा है? तब क्या कृष्ण अपने इन मूर्ख भक्तों की करनी पर आँसू नहीं बहाएँगे?

यदि आज श्रीकृष्ण आ जाएँ तो यह देखकर अत्यन्त दुःखी होंगे कि उस समय तो एक द्रौपदी की लाज लुटी थी पर अब तो हर द्रौपदी की लाज लुट रही है। तब तो एक कंस था पर आज तो सभी ओर कंस ही दीख रहे हैं। तब तो एक ही दुर्योधन था पर आज तो सभी तरफ दुर्योधन ही दुर्योधन दिखाई दे रहे हैं। आज न तो कोई अर्जुन दिखाई दे रहा है और न ही धर्मराज युधिष्ठिर। आज न भीष्म हैं न द्रोण। और सत्य तो यह है कि आज कोई मानव भी तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। क्या हो गया है मेरे भारत को?

और यदि गोपाल कृष्ण भारत में गोवध होता सुन लें, तो फिर उनके मन्यु का क्या ठिकाना? एक भी गोहत्यारा न बचे भारत में यदि गोपालकृष्ण आ जाएँ तो। और यदि गोपाल कृष्ण को यह पता चल जाए कि आज भारत में दूध-घी आदि बाजार में बिक रहा है तो उन्हें कितना दुःख होगा? और फिर पानी मिला या सिंथेटिक दूध जब पीकर देखेंगे तो सोचेंगे कि गाय को कुछ हो गया है या ग्वालों की नीयत को?

और यदि वे कहीं राधाकृष्ण के मन्दिर में पहुँच जाएँ तो फिर उनके क्रोध का क्या ठिकाना? प्रथम तो अपने नाम के साथ राधा जुड़ा होने पर, फिर अन्दर अपने पार्श्व में राधा की मूर्ति खड़ी देखकर और फिर भक्तों को राधे-राधे, कृष्णा-कृष्णा की रट लगाते देखकर कि मेरा नाम ही बिगाड़ दिया। कृष्ण (पुल्लिंग) से कृष्णा (स्त्रीलिंग) बना दिया। और फिर क्या एक क्षण को कभी वहाँ वे रह पाएँगे? हाँ, जिस स्थान पर नित्य हवन-यज्ञ एवं संध्या तथा वेदपाठ होता है, अवश्यमेव अपने नित्यकर्मों के सम्पादनार्थ वहाँ पहुँच जाएँगे।

श्रीकृष्ण यदि पुनः आ जाएँ तो निश्चित रूप से उदास हो जाएँगे और सोचेंगे कि कैसे नादान लोग हैं, जो मेरे भक्त कहे जाते हैं? और फिर फटकार लगाएँगे उन्हें जो उनके चित्र की तो पूजा करते हैं, परन्तु चरित्र पर लांछन लगाते हैं।

क्या श्रीकृष्ण की भावनाओं को कोई समझ पाएगा? जब पाँच हजार साल से भी अधिक समय में नहीं समझे तो अब भला क्या समझेंगे? और जब नहीं समझेंगे तो फिर कृष्ण को क्या पड़ी है, वे क्यों आने लगे! धर्म की हानि होती रहेगी, अधर्म दनदनाता रहेगा, और कृष्ण???
- आचार्य संजयदेव

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