दिल्ली में दागियों की भरमार, आप के 20% दागी

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राजनीतिक लड़ाई में ईमानदारी, सिद्धांतों और साफ-सुथरी कार्यप्रणाली का के दावे सभी दलों द्वारा किए जाते हैं, लेकिन जब चुनाव जीतने की बात आती है तो हर पार्टी जीतने योग्य व्यक्ति पर नजर रखती है और उसकी पृष्ठभूमि को नजरअंदाज करती है। इस तरह हर दल में भ्रष्ट और अपराधियों का बोलबाला हो जाता है। दिल्ली के विधानसभा में भी स्थिति देश के अन्य राज्यों की तुलना में अलग नहीं है। यहां भी प्रत्येक पार्टी की ओर से अपराधियों को टिकट दिया गया है और ये अपने-अपने दलों की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं।  
साफ-सुथरी राजनीति का दम भरने वाली आम आदमी पार्टी (आप) ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को उतारने से परहेज नहीं किया है। पार्टी ने चुनाव मैदान में जो उम्मीदवार उतारे हैं, उसके 70 उम्मीदवारों में से 14 (20 फीसद) ऐसे हैं, जिनके खिलाफ अलग-अलग इलाके में गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। राजधानी में चुनाव लड़ रहे कुल प्रत्याशियों में से  117 प्रत्याशी ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
 
इस मामले में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार भी अपवाद नहीं हैं। मैदान में उतारे गए भाजपा व कांग्रेस के 17 व 11 उम्मीदवार भी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। लेकिन अन्य राजनीतिक दलों से अलग होने का दावा करने वाली 'आप' के प्रत्याशियों की संख्या जिस तरह सामने आईं है, यह पार्टी के टिकट बंटवारे को लेकर कथनी और करनी को उजागर करता है।
 
दिल्ली इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) ने विस चुनाव में उतरे 673 उम्मीदवारों द्वारा नामांकन के दौरान दिए गए शपथ पत्र के आधार पर तैयार रिपोर्ट को जारी किया, जिसमें उम्मीदवारों द्वारा घोषित वित्तीय, आपराधिक व अन्य विवरणों का विश्लेषण है।
 
आपराधिक पृष्ठभूमि के 117 उम्मीदवारों में से 74 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। आठ उम्मीदवारों ने अपने ऊपर महिलाओं से अत्याचार संबंधित मामले की जानकारी शपथ पत्र में दी है। शपथ पत्र में दी गई जानकारी के अनुसार तीन उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आईपीसी की धारा 354 (स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या आपराधिक बल का प्रयोग), तीन प्रत्याशियों ने महिला से अनादर करने संबंधित धारा में मामला चलने की जानकारी दी है। एक प्रत्याशी ने अपने ऊपर हत्या और पांच ने अपने ऊपर हत्या के प्रयास से संबंधित मामले घोषित किए हैं।
 
राजनीति में धनबल का प्रभाव सभी जगह देखने को मिलता है और दिल्ली में इसे और भी अधिक स्पष्टता से देखा जा सकता है। इस संदर्भ में पिछले चुनावों का उदाहरण दिया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लडऩे वालों में से 23 फीसद करोड़पति उम्मीदवार मैदान में थे। वहीं दिसंबर, 2013 में हुए चुनाव में करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या 33 फीसद हो गई। महज 14 महीने बाद हो रहे चुनाव के लिए अभी जो 673 प्रत्याशी मैदान में हैं, उनमें करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या 34 फीसद है। कहना गलत ना होगा कि चुनाव में करोड़पति उम्मीदवारों की भरमार है।
 
दिल्ली के चुनावों में कुल 673 में से 62 (9 फीसद) उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति 10 करोड़ से अधिक घोषित की है। जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों की घोषित औसत संपत्ति 9.60 करोड़ रुपए, आप के प्रत्याशियों की 5.89 करोड़, बसपा के 2.16 करोड़ तथा भाजपा के 69 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 7.96 करोड़ रुपए हैं।
 
लेकिन चुनाव मैदान में ऐसे भी प्रत्याशी हैं जिन्होंने अपनी सम्पत्ति को शू्न्य या बहुत कम बताया है। सुशील कुमार मिश्रा, बुराड़ी विधानसभा सीट से अखिल भारत हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वह एकमात्र ऐसे प्रत्याशी हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति शून्य घोषित की है। इधर, मटियाला सीट से श्रेष्ठतम राष्ट्र पार्टी के चुनाव लडऩे वाले रामचरण साहनी ने अपनी संपत्ति मात्र सौ रुपए घोषित की है।
 
 

विदित हो कि राजधानी में मात्र 14 माह बा‍द फिर से चुनाव हो रहे हैं, लेकिन इतने कम समय में भी नेताओं की सम्पत्ति बढ़ी है। इसी तरह बल्लीमारान से कांग्रेस के प्रत्याशी हारून यूसुफ की सम्पत्ति भी एक से बढ़कर तीन करोड़ हो गई है। राजधानी के कई अन्य प्रमुख नेताओं की संपत्ति में भी बढ़ोतरी हुई है। राजधानी के राजौरी गार्डन से शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा की सम्पत्ति 235 से बढ़कर 239 करोड़ हो गई है। 
 
बदरपुर से भाजपा के प्रत्याशी रामवीरसिंह बिधूड़ी की सम्पत्ति भी 12 से बढ़कर 15 करोड़ हो गई।  रिठाला से भाजपा के उम्मीदवार कुलवंत राणा की आय भी 5 से बढ़कर आठ करोड़ हो गई है। बादली से कांग्रेसी उम्मीदवार देवेंद्र यादव की सम्पत्ति 27 से बढ़कर 29 करोड़ हो गई है बशर्ते कि इन प्रत्याशियों ने अपनी सम्पत्ति को लेकर सही-सही जानकारी दी है। 
 
राजधानी के चुनाव मैदान में उतरे 673 उम्मीदवारों में से 373 (56 फीसद) उम्मीदवार ऐसे हैं जो महज 12 वीं तक पढ़े हुए हैं। जबकि 265 (39 फीसद) उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता स्नातक और इससे अधिक घोषित की है। 11 उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने पीएचडी तक की पढ़ाई की है और 26 निरक्षर भी हैं।
 
चुनाव और जन प्रतिनिधियों के बारे में जानकारी रखने वाली संस्था इलेक्शन वॉच का दावा है कि हर बार की तरह इस बार भी चुनावों में हर पार्टी साफ-सुथरी सरकार देने का वायदा कर रही है, सुशासन को बढ़ावा देने का दावा कर रही है। लेकिन भाजपा ने  
सबसे ज्यादा आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट दिया है।
 
पार्टी के 69 में से 27 यानी 39 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इसके बाद नंबर आता है आम आदमी पार्टी का जिसने अपने 70 में से 23 (33%) उम्मीदवार ऐसे उतारे हैं, जिन्होंने खुद हलफनामे में सार्वजनिक तौर पर ये माना है कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस है जिसने ऐसे 21 (30%) उम्मीदवार उतारे हैं।
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