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दिल्ली में भाजपा का अध्याय शुरू, BJP की बंपर जीत के 5 बड़े कारणों की इनसाइड स्टोरी

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संदीपसिंह सिसोदिया

, शनिवार, 8 फ़रवरी 2025 (15:23 IST)
Delhi Election Results : दिल्ली की राजनीति में इस बार ऐसा भूचाल आया कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) को जबरदस्त झटका लगा और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। लेकिन क्या यह जीत अचानक आई, या इसके पीछे महीनों की मेहनत, रणनीति और विपक्षी दलों की कमजोरियां थीं? आइए, इसे एक कहानी की तरह समझते हैं। ALSO READ: अन्ना हजारे ने बताया, दिल्ली चुनाव में क्यों हारी केजरीवाल की पार्टी
 
अध्याय 1 : शीर्ष नेतृत्व की मास्टरस्ट्रोक रणनीति : दिल्ली चुनाव की दौड़ में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व एक शतरंज के खिलाड़ी की तरह आगे बढ़ रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव की कमान इस तरह संभाली कि विपक्ष को बचने का मौका ही नहीं मिला। चुनाव से पहले कई दौर की बैठकें, जमीनी स्तर पर बूथ प्रबंधन और सोशल मीडिया पर आक्रामक कैंपेन– ये सभी फैक्टर भाजपा को मजबूती दे रहे थे। हर सीट पर 'जीत पक्की' रणनीति अपनाई गई। ALSO READ: दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के साथ अर्श से फर्श पर अरविंद केजरीवाल?
 
अध्याय 2 : INDI गठबंधन की फूट : विपक्ष खुद को कमजोर करता गया, वहीं भाजपा एक संगठित और मजबूत रणनीति के साथ आगे बढ़ रही थी। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. पूरी तरह बिखरा नजर आया। कांग्रेस और AAP आपसी लड़ाई में उलझ गए और एक-दूसरे के वोट काट बैठे। इस आंतरिक कलह का फायदा भाजपा को मिला, क्योंकि कांग्रेस को मिले वोट का सीधा नुकसान AAP को हुआ। उदाहरण के लिए नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल 4 हजार वोटों से हारे और तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेसी उम्मीदवार संदीप दीक्षित को 4 हजार से अधिक वोट मिले, जिससे भाजपा के प्रवेश वर्मा की जीत आसान हो गई। इससे भाजपा को बढ़त मिल गई। इसके अलावा भाजपा ने यमुना नदी की बदहाली, बढ़ते प्रदूषण जैसे जनता से जुड़े मुद्दों पर भी आक्रामक रणनीति अपनाकर भाजपा ने आप पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराया, जिसकी पुष्टि कहीं न कहीं कांग्रेस के कैम्पेन में भी नजर आई। 
  
अध्याय 3 : स्वाति मालीवाल का 'बदलापुर' और AAP की नैया डूबती गई : स्वाति मालीवाल का मामला इस चुनाव में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। AAP नेता और राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के बेहद करीबी लोगों पर गंभीर आरोप लगाए। पार्टी की छवि को इस विवाद ने गहरी चोट पहुंचाई। विपक्ष और मीडिया में इसे 'बदलापुर राजनीति' कहा जाने लगा। भाजपा ने इस मुद्दे को चुनाव प्रचार में जमकर भुनाया और जनता के बीच संदेश गया कि AAP खुद ही अंदर से बिखर रही है। ALSO READ: दिल्ली में 4 फीसदी वोटों से हो गया खेल, आप और कांग्रेस की दूरियों का मिला BJP को फायदा
 
अध्याय 4 : मुस्लिम वोटर्स का BJP पर भरोसा - पहली बार नया बदलाव : दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में इस बार भाजपा को अपेक्षा से ज्यादा वोट मिले। यह बदलाव इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा ने मुस्लिम समुदाय के लिए 'विकास' की राजनीति पर जोर दिया, न कि सिर्फ ध्रुवीकरण की। पीएम मोदी ने कई भाषणों में कहा कि 'सबका साथ, सबका विकास' सिर्फ नारा नहीं, बल्कि सच्चाई है।  
- मुस्लिम व्यापारियों को भाजपा की नीतियों से फायदा हुआ, जिससे उनका झुकाव भाजपा की ओर बढ़ा।  
- विपक्षी दलों की आपसी लड़ाई से मुस्लिम मतदाता एक ठोस विकल्प तलाशने लगे।  
 
अध्याय 5 : अनुभवी पैतृक संगठनों का मार्गदर्शन - भाजपा के छिपे हुए योद्धा : दिल्ली चुनाव में भाजपा को मजबूत करने में उसके अनुभवी पैतृक संगठनों की बड़ी भूमिका रही। RSS और अन्य सहयोगी संगठनों ने बूथ-स्तर पर मोर्चा संभाला।  भाजपा की जमीनी पकड़ मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं को कई महीनों तक क्षेत्रीय ट्रेनिंग दी गई। मोहल्लों में जाकर भाजपा की नीतियों को लोगों तक पहुंचाने का काम बड़े स्तर पर हुआ।  
 
अंतिम अध्याय 6 : भाजपा की सुनामी और विपक्ष का अस्तित्व संकट : प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में 5 रैलियां की और आप-दा के नारे को दिल्ली की बदहाली से जोड़ दिया। इसके अलावा किसी पैराशूट उम्मीदवार के बजाय भाजपा ने केजरीवाल के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा को उतारकर स्थानीय उम्मीदवार का ट्रंप कार्ड चल दिया। साथ ही आप के बड़े चेहरों को 'मैन टू मैन मार्किंग' रणनीति अपनाकर अपने क्षेत्रों तक सीमित कर दिया। हरियाणा की जीत से भाजपा को एक बड़ा फायदा हुआ कि दिल्ली के 300 से अधिक जाट खापों और गांवों ने भाजपा को समर्थन दिया और सभी 10 जाट बहुल सीटों पर भाजपा जीती। 
 
जब नतीजे आए, तो यह साफ हो गया कि AAP का किला ढह चुका है और भाजपा ने दिल्ली की राजनीति में अपना परचम लहरा दिया है। कांग्रेस की स्थिति और खराब हो गई और INDI गठबंधन का अस्तित्व भी सवालों में आ गया।  
 
दिल्ली की इस राजनीतिक लड़ाई में भाजपा की जीत महज चुनावी आंकड़ों तक सीमित नहीं थी। यह एक रणनीतिक विजय थी, जो संगठित नेतृत्व, विपक्ष की फूट, आंतरिक कलह, जनाधार विस्तार और ज़मीनी स्तर पर मजबूत पकड़ के चलते संभव हुई। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा इस लहर को आगामी चुनावों तक बरकरार रख पाएगी? या विपक्ष फिर से खुद को खड़ा कर पाएगा?

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