दिल्ली में क्या है भाजपा की असली चुनौती?

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श्रवण शुक्ल, नई दिल्ली से

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भारतीय जनता पार्टी ने भले ही डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यंमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर जनता के सामने खड़ा कर दिया हो, लेकिन उसकी असल चुनौती प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशियों का चेहरा सामने रखने की होगी। दरअसल, गोयल की जगह हर्षवर्धन के हांथों में कमान आने के बाद से हर एक सीट पर विधायकी के उम्मीदवारों के लिए भी समीकरण बदल गए हैं।

जाहिर सी बात है कि जो लोग विजय गोयल से नजदीकी के चलते अपना टिकट पक्का मान बैठे थे, वह हर्षवर्धन की पहली पसंद नहीं हो सकते। वहीं, हर्षवर्धन अपनी पसंद अगर थोपेंगे तो पार्टी में निचले स्तर पर व्यापक रूप से भीतरघात होगी। अब, ऐसे में भाजपा के सामने न सिर्फ प्रत्याशियों का नाम आगे रखकर उस पर कायम करने की चुनौती है, बल्कि भाजपा के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में अपना दमखम भी दिखाना होगा।

इस बार वैसे भी विधानसभा चुनाव सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के लड़ाई नहीं, भाजपा-कांग्रेस और आप की त्रिशंकु लड़ाई में बदल चुकी है। ऐसे में भीतरघात ी कहीं 'आप' या किसी अन्य दल से जुड़कर खुद भाजपा के लिए ही बड़ी मुसीबत न पैदा कर दें।

प्रदेश भाजपा अब उन लोगों के मुंह की तरफ से ताक रही है, जो पार्टी में लम्बे समय से कार्यरत हैं। ऐसे लोग या तो खुद के लिए या फिर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, जिन्हें नजरंदाज करना पार्टी की बड़ी भूल साबित हो सकती है।

पुराने भाजपाई पिछले 15 सालों से यही सोचकर चुप बैठे थे कि कभी तो उनकी बारी आएगी, लेकिन विजय गोयल और हर्षवर्धन के बीच कांटे का मुकाबला होने के दौरान ही दोनों के समर्थक भी एक-दूसरे के आमने-सामने आ चुके हैं। ऐसे में गोयल कितने भी दावें कर ले कि पार्टी कार्यकर्ता एकजुट होकर कांग्रेस का सफाया करने उतरेंगे तो यह 'अति-आत्मविश्वास' नहीं बल्कि 'आत्मघात' ही कहा जाएगा।

यह बात हर्षवर्धन भी बखूबी समझते हैं कि गोयल और उनके समर्थकों को किसी भी प्रकार नाराज करना उनके लिए 'पैरों पर कुल्हाड़ी' मारने जैसा होगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि संगठन में लगभग सभी पदों पर विजय गोयल के शुभचिंतकों ने कमान सम्हाली हुई है, जो पिछले काफी समय से एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं, ऐसे में किसी एक के साथ हुई नाइंसाफी कई औरों का भी मूड बिगाड़ सकती है।

पार्टी के वरिष्ठ सदस्य के अनुसार इस समय करीब 12 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां भीतरघात की संभावना काफी ज्यादा है। इन सीटों पर कुछ 'अपने' ही सामने आ सकते हैं, जिनसे पार्टी के जीत का स्वाद कसैला हो सकता है।
भीतरघात की संभावना वाली ऐसी ही एक सीट का विवरण देते हुए पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता ने बुराड़ी विधानसभा सीट का उदाहरण दिया।

दरअसल, बुराड़ी विधानसभा सीट पर फिलहाल भाजपा का ही कब्ज़ा है, लेकिन पार्टी के आंतरिक सर्वे में उनके जीत की संभावना धूमिल बताई गई है। वहीं, इस सीट से दिल्ली भाजयुमो अध्यक्ष गौरव खारी ने भी दावेदारी ठोकी है। अब तक विजय गोयल ने गौरव खारी को दावेदारी करने से इसलिए रोका था कि उन्हें संगठन में अहम् पद दिया जाएगा, क्योंकि गौरव खारी को गोयल ग्रुप का माना जाता है, लेकिन गोयल के हाशिए पर चले जाने के साथ ही गौरव के लिए जब संभावनाएं धूमिल हुई तो गौरव ने इस सीट के लिए फिर से दावेदारी कर दी है।

हालांकि सीट से मौजूदा विधायक कृष्ण त्यागी और टिकट के दावेदार गौरव खारी दोनों ही भाजपा के इमानदारी प्रहरी है, इसलिए इन दोनों के पार्टी छोडिए की संभावनाएं कम ही है, लेकिन दोनों के बीच की प्रतिद्वंदिता कार्यकर्ता स्तर पर पार्टी का नुक्सान जरुर कर सकती हैं।

अब देखना दिलचस्प होगा कि भीतरघात की संभावनाओं से भरी 12-14 विधानसभा सीटों पर पार्टी क्या फार्मूला अपनाती हैं। ताकि पार्टी मजबूत रहकर चुनाव भी जीत सके और कोई अन्य दल उनको तोड़ने में कामयाब भी न पाए, क्योंकि बाकी अन्य जगहों पर स्थिति बुराड़ी से एकदम उलट है, जहां पार्टी के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता और नेता विद्रोह को तैयार बैठे हैं।

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