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Dhanteras 2025: भगवान कुबेर के 3 पैर, 8 दांत और 1 आंख वाले रहस्यमयी स्वरूप का क्या है मतलब? जानिए रावण से उनका अद्भुत रिश्ता

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 (17:14 IST)
who is kuber bhagwan: सनातन धर्म में, जब भी धन और समृद्धि की बात होती है, तो देवी लक्ष्मी के साथ-साथ धन के देवता भगवान कुबेर का नाम अवश्य लिया जाता है। कुबेर केवल धन के दाता नहीं, बल्कि खजानों के रक्षक और यक्षों के राजा भी हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में स्थायी संपत्ति और वैभव आता है। लेकिन कुबेर देव का स्वरूप अन्य देवताओं से काफी अलग और रहस्यमय है। उनके तीन पैर, आठ दांत और एक आंख होने के पीछे एक गहरी पौराणिक कथा और प्रतीकात्मक अर्थ छिपा है।  

कुबेर के रहस्यमय स्वरूप का अर्थ
कुबेर देव के इस विशिष्ट और कुछ हद तक विकृत स्वरूप का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, जिसके पीछे उनके कठिन तप और त्याग की कहानी है:
1. एक आंख (एकाक्षी पिंगल) का रहस्य: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कुबेर ने कठोर तपस्या द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया। जब वह तपस्या के बाद कैलाश पर्वत पर पहुचे, तो उन्होंने माता पार्वती को देखा।
पौराणिक कथा: कुबेर की तपस्या से प्रभावित होकर, एक बार जब वे कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचे, तो उन्होंने माता पार्वती के सौंदर्य को एकटक देखा। माता पार्वती के दिव्य तेज और क्रोध के कारण कुबेर की एक आंख नष्ट हो गई। इस घटना के बाद कुबेर को 'एकाक्षी पिंगल' भी कहा जाने लगा। यह स्वरूप धन के अत्यधिक लालच और मोह से बचने का संदेश देता है। यह बताता है कि धन का रक्षक होने के बावजूद, कुबेर को भी अपनी दृष्टि को संयमित रखना पड़ा।

2. तीन पैर और आठ दांत का तात्पर्य : कुबेर के तीन पैर और आठ दांत उनके तपस्या के दौरान हुए शारीरिक कष्टों को दर्शाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने वर्षों तक एक ही पैर पर खड़े रहकर घोर तपस्या की थी। इस तप के दौरान उनका एक पैर निष्क्रिय हो गया, और कठिन साधना के कारण उनके कुछ दांत भी टूट गए या विकृत हो गए।
प्रतीकात्मक अर्थ: यह स्वरूप बताता है कि धन और समृद्धि का पद आसान नहीं है। इसके लिए अथक प्रयास, बलिदान और कठोर तप की आवश्यकता होती है। कुबेर का यह विरूपित शरीर ही उनके अद्भुत तप का प्रमाण है, जिसके फल स्वरूप उन्हें 'देवताओं के कोषाध्यक्ष' का पद प्राप्त हुआ।

रावण से कुबेर का रिश्ता: बहुत कम लोग जानते हैं कि धन के देवता कुबेर और लंकापति रावण आपस में सौतेले भाई थे। दोनों के पिता महर्षि विश्रवा थे, जो ब्रह्माजी के पौत्र थे। महर्षि विश्रवा की दो पत्निहां थीं। इलविला से कुबेर का जन्म हुआ था। कैकसी से रावण, कुंभकर्ण और विभीषण का जन्म हुआ था।

इस प्रकार, कुबेर रावण के बड़े और सौतेले भाई थे। रामायण की कथा के अनुसार, कुबेर ने ही अपनी राजधानी सोने की लंका बसाई थी और ब्रह्माजी से पुष्पक विमान प्राप्त किया था। लेकिन रावण ने अपनी शक्ति और अहंकार के बल पर कुबेर को पराजित किया, उन्हें लंका से निष्कासित कर दिया, और उनका पुष्पक विमान छीन लिया।

रावण से पराजित होने के बाद, कुबेर ने कैलाश पर्वत के पास अलकापुरी को अपनी नई राजधानी बनाया, जहां वे उत्तर दिशा के दिक्पाल के रूप में देवताओं के धन की रक्षा करते हैं। कुबेर की यह कथा सिखाती है कि सच्चा धन पद में नहीं, बल्कि धर्म और न्याय में निवास करता है।
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