योग साधना से खुलते जीवन के रहस्य

जीवन रहस्य पर योग की दृष्टि

Webdunia
ND

' योग विज्ञान संस्थान' द्वारा देश भर में योग याधना की गहराइयों को उजागर करने वाले शिविरों का बड़े स्तर पर आयोजन होता है। अनेक संस्था के योगाचार्यों द्वारा हर स्तर के साधकों को योगासन कराए जाते हैं। साथ ही सैद्धांतिक रूप से योगदर्शन के प्रवचनों एवं व्याख्यानों का भी श्रवण कराया जाता है।

योग मूर्ति ऋषिराम शर्मा ने हाल में ही योग शिवर के अवसर पर जीवन रहस्य पर योग दृष्टि पर अपने गहन विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए।

हमारे शास्त्रों में जीवन उत्कृष्टि के तीन मार्ग बताए हैं। ज्ञान, कर्म और भक्ति। समझदारी से कर्म करेंगे तो फल अच्छे आएंगे। कर्म से उपलब्धियों के कारण अहंकार आता है। वह भक्ति से समाप्त होता है। भक्ति से जो अकर्मणयता आती है वह कर्म से ठीक होगी। ज्ञान में होश है, कर्म में उपलब्धि और भक्ति में समर्पण।

अतः तीनों ही जीवन को पूर्णता की ओर ले जाते हैं। पर मानव को तो कर्म करने का अधिकार मिला है। और वास्तव में यह बहुत बड़ा अधिकार है। इसके चार भाग हैं- भाव, इच्छा, कर्म और फल। इन सभी का शोधन योग का विषय है।

ND
हमारी भावनाएं जन्म जन्मांतर के संस्कारों तथा वर्तमान के संपर्कों पर आधारित है। साधना काल में हम बहिमुर्खता से अंतमुर्खता में जब आते हैं और स्वरूप अवस्था ग्रहण करते हैं तो भावनाएं गौण हो जाती हैं। इसी पर निर्भर करती है हमारी इच्छा। इच्छा को नियंत्रित करने का वर्णन पतांजलि योग दर्शन में किया है 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।

जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को सीमित करना सीख जाता है तो उसके कर्म भी तदानुसार होने लगते हैं। इच्छा पर ही कर्म आधारित हैं। हम जीवन में वही करेंगे जैसा हम चाहेंगे और वैसी ही उपलब्धि हमें होगी। धन लेना, चाहें धन मिलेगा, वैभव प्राप्त करना चाहें वैभव प्राप्त होगा। कर्म से निवृत्ति चाहें, वह भी मिल जाएगी। साधारण व्यक्ति स्वार्थ पूर्ण कर्म करता है। जब दूसरे भी उससे स्वार्थ व्यवहार करते हैं तो वह सोचने पर मजबूर होता है कि यह ठीक नहीं है।

योगाभ्यास काल में उसका चिंतन और बढ़ता है और वह दूसरों के लिए सहायक बनने लगता है। साधना और आगे बढ़ने पर सभी के कल्याण में अपना कल्याण देखता है। और अंततोगत्वा कोई भी उसे पराया नजर नहीं आता। 'सीय राममय सब जग जानी,' साधक की उत्कृष्ट अवस्था मानी जाती है।

हमारे जीवन का रहस्य हमारे द्वारा किए गए कर्म से ही है। स्वार्थ से निस्वार्थ, निस्वार्थ से लोक कल्याण और लोक कल्याण के साथ-साथ निष्कामता जीवन की परम उपलब्धि है। हम जो भी कर्म करते हैं उसमें इच्छा के साथ वासना मिली रहती है। बस यही जीवन की न्यूनता है। कर्म में वासना न रहे, यह साधना है। गीता में कर्म की कुशलता का उल्लेख है।

' योगः कर्मसु कौशलम्‌' कर्म की कुशलता क्या है? एक डॉक्टर बीस ऑपरेशन कर मरीजों की जान बचाता है। निश्चय ही व्यक्ति के लिए वह बहुत बड़ा उपकार है। पर क्या यह कर्म में कुशलता है? नहीं। क्योंकि वह ऑपरेशन से उपलब्धि अपने भोग के लिए खर्च करता है। कुशलता का एक प्रमाण तो यह है कि कर्म से जो उपलब्धि हुई है क्या साधक उसे समाज में बांटने के लिए तैयार है?

दूसरे कुश एक घास जैसा पौधा है जिसके पत्ते पूजा के लिए काम आते हैं। उसके पत्ते इतने तेज होते हैं कि अगर हाथ में लग जाएं तो काट देते हैं। अतः उनको तोड़ा नहीं जाता बल्कि पौधे को जड़ से उखाड़ा जाता है। कुश से ही कुशलता बना है। ठीक इसी प्रकार हम कर्म करते हुए कर्म के मूल में जो वासना है उसे जड़ से उखाड़ दें तो कर्म में कुशलता है।

जीवन में कर्म से उपलब्धि हो पर हम उसके दास न बनें। ऐसा नहीं है कि फल आएगा नहीं। या फल के बारे में कर्म करने से पहले सोचना नहीं। पर उससे चिपकना नहीं।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

लाल किताब के अनुसार मंगल दोष से बचने के 10 अचूक उपाय, फिर निश्चिंत होकर करें विवाह

क्या आप जानते हैं चातुर्मास के समय क्यों योग निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, नहीं होते मांगलिक कार्य

क्या फिर कहर बरपाएगा कोरोना, क्या है जापानी बाबा वेंगा की भविष्यवाणी

शीघ्र विवाह बंधन में बंधना चाहते हैं आजमाएं ये 5 प्रभावी उपाय

मांगलिक दोष शुभ या अशुभ, जानें इसके फायदे और ज्योतिषीय उपाय

सभी देखें

धर्म संसार

मुहम्मद बिन क़ासिम से इस तरह लड़े थे वीर सिंधु सम्राट दाहिर सेन, लेकिन हुआ धोखा

Saptahik Muhurat: नए सप्ताह के मंगलमयी मुहूर्त, जानें साप्ताहिक पंचांग 16 से 22 जून

Aaj Ka Rashifal: आज किसी खास व्यक्ति से होगी मुलाकात, चमकेंगे सितारे, पढ़ें 15 जून का राशिफल

15 जून 2025 : आपका जन्मदिन

एयर इंडिया विमान हादसे का क्या कनेक्शन है जगन्नाथ मंदिर और अच्युतानंद महाराज की गादी से