1- धम्मगिरी में दो सप्ताह का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक रहा। ऐसा लगा कि एक नया जीवन मिल गया है। मेरे विचार में विपश्यना का बड़ा लाभ जीवन के दृष्टिकोण का परिवर्तन है। शारीरिक और मानसिक लाभ तो मिला ही परंतु यथाभूत ज्ञान जिसे आप सांध्यकालिन प्रवचनों में दुहराते थे उसकी भी कुछ झलकें मिलीं।
एक बौद्ध विद्यार्थी के नाते मेरे लिए विपश्यना के अनुभव कुछ अधिक सूक्ष्म थे। आज तक ध्यान साधना को पढ़ाया ही था, किन्तु कभी साक्षात अनुभव करने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ था। धम्मगिरी के शिविर में यह अनुभव हुआ, इसके लिए हम आपके सदा आभारी रहेंगे। भवतु सब्ब मंगलम्।
- ना.हे साम्तानी (वाराणसी) पूर्व प्रो. पाली विभाग बनारस हिन्दू विव ि
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2- आप महाकारुणिक भगवान बुद्ध की लुप्त हुई विपश्यना विद्या को भारत वापस लाए इसके लिए सभी विपश्यी साधक-साधिकाएँ आपके बहुत ऋणी हैं। किसी साधु की प्रेरणा से दिसंबर 84 में इगतपुरी में शिविर करने का सौभाग्य मिला था। अनोखी विद्या हाथ लगी। दस दिनों में कर्म संस्कारों के क्षीण होने से बहुत हल्का और रोमांचित हुआ। उसके बाद शीघ्र ही दुबारा शिविर में शामिल हुआ तो इस विद्या की तकनीक ठीक से समझ पाया।
आज भारत की जनता में जातीयता, गुंडागर्दी, बलात्कार, जीव-हिंसा, दगाबाजी, बेईमानी छल-कपट का जो माहौल है वह इस साधना के अभ्यास से दूर होकर सचमुच ब्राह्मी सुख की अनुभूति हो सकेगी। आज का समाज भगवान बुद्ध की इस कला से अनभिज्ञ है, इसलिए मनचाहा जीवन जीकर अपने लिए दुःखों का ही सृजन कर रहा है। दुःखों से मुक्त होने की यह कला किसी ने भी नहीं सिखाई।
मैं भी चमत्कार एवं मूर्तिपूजा में खिंचा जा रहा था। इसलिए दुःखों का पहाड़ ही बन रहा था। परमेश्वर की खोज बाहर कर रहा था। अपने कर्म सुधारने की ओर ध्यान ही नहीं दिया। बुद्ध की वास्तविक शिक्षा समझ में ही नहीं आई थी। अब तो अधिक से अधिक शिविर करने का विचार है। - जी.जे. धंडारे नाशि क
3. विपश्यना साधना के प्रभाव से मेरे सारे नशे-पत्ते छूट गए। मुझे जो माइग्रेन का रोग था वह अब काबू में आ गया है। मेरे जीवन में अधिक सहनशीलता आई है और अब मुझमें स्वार्थांधता पहले से बहुत कम हुई है। - नोरिस, अध्यापिका (ऑस्ट्रेलिया)
4. मैं अब किसी प्रकार के नशे का सेवन नहीं करती। विपश्यना का नियमित अभ्यास करती हूँ और संभवतः अब मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सजग हो गई हूँ। अब मेरे लिए वस्तुतः जीवन में कोई बड़ी समस्याएँ नहीं हैं। - विन्नी (इंग्लैंड)
5. 1965 में एक कार दुर्घटना में मेरी रीढ़ की हड्डी सात जगह से टूट गई थी। परिणामतः कुछ दिनों में लकवा हो गया था। 1976 में विपश्यना शिविर में शामिल होने के बाद इसमें बहुत सुधार हुआ है। मानसिक स्तर पर अब मैं अपने आप के साथ अधिक शांति से रह पाता हूँ और लोगों के साथ भी संबंध सुधरे हैं, क्योंकि उन्हें स्वीकारने में आसानी हुई है। पहले चरस, एलएसडी, मशरुम और मेस्कालिन जैसे नशों की लत लग गई थी। अब विपश्यना के प्रभाव से इनसे पूर्णतया मुक्त हो गया हूँ। - मेक्सवेल जोहन रयान (अध्यापक) न्यू साउथ वेल् स
( लोकमत-विपश्यना में प्रकाशित साधकों के चंद अनुभव)