विपश्यना : दुःखों से मुक्ति का मार्ग

सत्यनारायण गोयनका

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मानव जीवन के चार आर्य सत्य हैं, यह दुःख है, यह दुःख का कारण है, यह दुःख का निवारण है, यह दुःख निवारण का मार्ग है।

यह दुःख है- जीवन के इस प्रथम कटु सत्य को जब तक हम गहराई से जान-समझ नहीं लेते, स्वयं अनुभव नहीं कर लेते, तब तक उससे मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील ही नहीं हो सकते।

यह दुःख का कारण है- जीवन के इस द्वितीय गंभीर तथ्य को जब तक हम जान-समझ नहीं लेते, स्वयं अनुभव नहीं कर लेते तब तक दुःख की सच्चाई को जानकर भी उसके निवारण के लिए हम कुछ कर नहीं सकते।

यह दुःख का निवारण है- जीवन के इस तृतीय आशाप्रद सत्य को जान-समझकर और स्वयं अनुभव करके ही हम सब प्रकार की निराशाओं से मुक्त होते हैं। जिस दुःख का कोई कारण हो उस कारण के निवारण में ही दुःख का निवारण समाया हुआ है। यह तीसरा सत्य दुःख-संतप्त मानव के लिए असीम आशाओं का मंगल आश्वासन लिए हुए है।

यह दुःख निवारण का मार्ग है- जीवन के इस चतुर्थ कल्याणकारी सत्य को हम भली-भाँति जान समझ लें और उसका पालन कर लें तो सचमुच अपने समस्त दुःखों से मुक्ति पा जाएँ। शील समाधि और प्रज्ञा का यह मंगल मार्ग ही एक ऐसी रामबाण औषधि है, जो कि दुःख सभी कारणों पर गहरा प्रहार करती है। जहाँ दुःख के कारण जड़ से उखड़ने लगे, वहाँ दुःख टिक ही कैसे सकेगा? कारणों की सारी जड़ें उखड़ जाएँगी तो दुःखों से स्वतः विमुक्ति हो ही जाएगी।

दुःखों से विमुक्ति प्राप्त करना है तो अपने चित्त को विकारों से मुक्त कर लें। निर्मल कर लें तो चित्त को नितांत शुद्ध करने के लिए विकारों से नितांत विमुक्ति के लिए हमें चित्त की उस अवस्था तक पहुँचना पड़ेगा, जहाँ विकारों का उद्गम होता है, विकारों का प्रजनन होता है, जहाँ विकारों का संवर्धन होता है, जहाँ विकारों का संचयन होता है, वहाँ रोक लगाना होगी और जो संचय कर रखा है उसका धीरे-धीरे निष्कासन करते-करते चित्त को नितांत निर्मल करना होगा।

विपश्यना भारत की एक अत्यंत पुरातन ध्यान विधि है। इसे आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने पुनः खोज निकाला था। विपश्यना सीखने के लिए यह आवश्यक है कि किसी योग्यता प्राप्त आचार्य के मार्गदर्शन में दस दिवसीय आवासीय शिविर में भाग लिया जाए। शिविर के दौरान साधकों को शिविर स्थल पर रहना होता है।

विपश्यना के शिविर कोई भी व्यक्ति कर सकता है। इसमें कुल, जाति, धर्म अथवा राष्ट्रीयता आड़े नहीं आती। हिन्दू, जैन, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई तथा अन्य संप्रदाय वालों ने विपश्यना का अभ्यास किया है व इसका लाभ प्राप्त किया है।

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