योग ही कर्म और योग ही धर्म

- डॉ. गोविन्द बल्लभ जोशी

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भारत वर्ष में योग साधना की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर योग के आदि आचार्य माने जाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण योगीराज। वेदों में तो योग का गंभीर विवेचन किया है। योगदर्शन के प्रणेता महर्षि पातंजलि पहले ही सूत्र में लिख देते हैं कि 'अथयोगानुसासनम्‌' अर्थात्‌ जीवन में अनुशासन लाने वाली क्रियाएँ ही योग है। इसी प्रकार गुरु गोरक्षनाथ, गुरुनानक देव, परमहंस योगानन्द आदि अनेक संत योग की सिद्धि के लिए समाज में आदरणीय हैं।

वर्तमान में योग के नाम पर बहुत हो हल्ला चल रहा है। प्रवेश शुल्क देकर भी योग सिखाया जा रहा है लेकिन नई दिल्ली में भारतीय योग संस्थान ऐसी संस्था है जिसने अप्रैल 1967 में केवल दो साधकों के साथ योग प्रचार का कार्य प्रारंभ किया और आज देश-विदेश में सैकड़ों शाखाओं के द्वारा लोगों को योग साधना द्वारा तन से स्वस्थ मन से निर्मल करने का प्रकल्य चलाए हुए हैं।

संस्था के प्रेरणा पुरुष 90 वर्षीय प्रकाशलाल कहते हैं, हमने अपनी संस्था का आदर्श वाक्य 'जीओ और जीवन दो' इसीलिए रखा कि वेदों में 'पश्येम शरदः शतम्‌' की बात कही है। अतः वेद विहित ज्ञान को आधार में रखकर आज लाखों की संख्या में साधना योग की सूक्ष्म क्रियाओं को कर रहे हैं। गर्मी हो, वर्षा हो या सर्दी हो संस्था योग साधना के दैनिक नियमों को करने में कभी पीछे नहीं रहती।

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प्रातः कालीन दैनिक योगाभ्यास प्रणायाम ध्यान साधना का क्रम तो निरंतर चलता ही रहता है। साथ ही दो दिवसीय से लेकर सप्तदिवसीय तक के शिविरों में प्रत्येक अवस्था के स्त्री-पुरुष पंथ जाति एवं समुदाय की परिधि से ऊपर उठकर जीओ और जीवन दो का संदेश दुनिया भर को दे रहे हैं। दिल्ली में प्रत्येक दिशा के अनेक स्थानों में उपसमितियाँ योग प्रचार में लगी हैं। अब देहातों में भी योग की ओर लोगों का जुड़ाव, संस्था के कार्यक्रमों द्वारा निरंतर बढ़ता जा रहा है।

नई पीढ़ी में आज, बल, बुद्धि और माधुर्य जैसे उदात्त गुणों को भरने के लिए बच्चों एवं युवाओं के लिए विशेष योग श िव िर केंद्र चलाए जा रहे हैं। जिनमें अष्टांग योग, आसन, प्राणायाम, ध्यान एवं मुद्राएँ आदि के बारे में बताने के साथ-साथ आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से उन्नति के भी सूत्र बताए जाते हैं।

यह वास्तविक सत्य है कि आज दिल्ली के पार्कों में प्रातः कालीन योग शिविरों को देखकर संस्था के संकल्पों के बारे में विचार आने लगता है कि 60 के दशक में प्रारंभ हुई इस संस्था द्वारा योग के तत्व को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य निरंतर चलता जा रहा है।

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