सांसारिक भाषा में ज्ञानोदय की व्याख्या

रहस्यमय दुनिया का वर्णन कर‍ती 'स्टमब्लिंग इन टू इनफीनीटी'

आर्ट ऑफ लिविंग
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अनंतता से साक्षात्कार होने का अवसर किसी को कम ही मिलता है। यह भी शायद बहुत ही कम होता होगा की कोई ज्ञानोदय के विश्लेषण को इतने स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर सके।

जैसा कि माइकल फिशमन ने अपनी प्रेरणाकारक पुस्तक में किया है, जिसका शीर्षक है 'स्टमब्लिंग इन टू इनफीनीटी' ( Stumbling into Infinity) । यह पुस्तक किसी व्यक्ति के आंतरिक अनुभव की बाध्यकारी व्याख्या करती है जो अध्यात्मिक पथ पर अग्रसर है।

हालांकि यह पुस्तक विख्यात आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के साथ उनकी पुरानी यादों का वर्णन करती है। सामान्यतः यह पुस्तक ज्ञानोदय प्राप्त सिद्ध पुरुषों की करुणा और उनकी रहस्यमय दुनिया के बारे में है। इसमें आध्यात्मिक गुरु के साथ जीवन के प्रति एक अद्भुत और नजदीकी दृष्टिकोण मिलता है।

इसमें अध्यात्मिक यादों की एक लंबी परंपरा मिलती है जिससे वाचक को नए अनुभव मिलने के अवसर मिलते हैं और संसार को देखने का नया दृष्टिकोण मिलता है जिसे वे लेखक के साथ उसका अनुभव कर सकते हैं।

बचपन में विध्वंस से पीड़ित यह उस व्यक्ति की यात्रा का वर्णन है जिसे अध्यात्मिक साधक बनने का विश्वास पूर्णतः समाप्त हो गया था, कि व्याख्या इस रूप में करता है कि जिस व्यक्ति को 'दूसरी दुनिया' का जरा भी ज्ञान नहीं है, उसे भी उसके बारे में संभवतः ज्ञान मिलेगा।

बहुत छोटी-छोटी और महत्वहीन प्रतीत होने वाली घटनाओं को जोड़कर उन्होंने इस गूढ़ विषय को इतना दिलचस्प और लुभावना बना दिया है। बीटल्स पर ‘वाईट एल्बम’ अध्याय इसका एक उदहारण है। अक्सर हर जिज्ञासु के आकस्मिक आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने की घटना का यह स्पष्ट रूपांतर है।

फिशमन जिस भी विषय पर प्रकाश ड़ाल रहे हैं, उसे दिलचस्प बनाने के लिए उन्होंने विरोधाभास पहलुओं का भी उपयोग किया है, जैसे कि भारत के 80 के दशक की अव्यवस्था की तुलना उनके पहले गुरु महर्षि महेश योगी के साथ उनके कभी ना भूलने वाले अनुभवों का वर्णन।

हालांकि इस किताब की अद्भुतता इस बात पर निर्भर है कि गुरुओं के साथ अनुभव, योग, ध्यान जिनका वर्णन करना कठिन होता है, उसे यह पुस्तक सरलतापूर्वक अभिव्यक्त करती है। उनकी श्री श्री रविशंकर से पहली मुलाकात का वर्णन इस तरीके से किया गया है कि वह ऐसे व्यक्ति में भी दिलचस्पी पैदा कर सकता है जिसे गुरु शब्द का अर्थ भी नहीं पता है।

एक तरफ उनकी बाहर की बैचैनी और व्यवसाय के अभाव की अवज्ञा और दूसरी ओर अनजाने को जानने की भीतरी इच्छा और उत्सुकता को इस तरह से वर्णित किया गया है जैसे कि वे एक सिक्के के दो पहलू हों।

जीवन के प्रति विरोधाभास दृष्टिकोण होने के बावजूद पश्चिमी सभ्यता का भारतीय अध्यात्म के प्रति आकर्षित होने के कारण की यह पुस्तक एक अच्छी व्याख्या करती है।

इसके बाद इस पुस्तक में कई पन्नों पर ऐसी आकर्षक बातों का वर्णन है जो कि अनंतता की यात्रा के दौरान सामान्यतः इतनी स्पष्ट नहीं होती हैं।

अछूते विषय जैसे गुरु-शिष्य का संबंध, ध्यान के अनुभव, संशय की श्रृंखला, समाधि और समर्पण के क्षण इत्यादि का वर्णन इस तरीके से किया गया है कि वह समझने में आसान तो है ही लेकिन यह उसे पूजनीय बना देते हैं। कुछ कहानियां और प्रफुल्लपूर्ण बातों का समावेश करके फिशमन ने इस पुस्तक को आनंदमय और सरल बना दिया है।

फिशमन की शैली, दृष्टिकोण और उनके अध्यात्मिक गुरु के साथ उनकी व्यक्तिगत मुलाकात की यादों से जीवन का ज्ञानोदय के क्षेत्र में एक दिलचस्प व्याख्यान है। यही इस पुस्तक की विशेषता है जिसकी वजह से इस पुस्तक को सभी को पढ़ना चाहिए जिन्हें अनजानी दुनिया के बारे में थोड़ी भी दिलचस्पी है।

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