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दीपावली : महावीर स्वामी का निर्वाणोत्सव

Webdunia
- राजश्र ी कासलीवा ल

वर्धमान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे, जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की थी। उन्होंने अपनी सारी इच्छाओं को जीत लिया था। इसलिए उन्हें महावीर भी कहा जाता है। हम सभी आज भगवान महावीर के सिद्धातों को भूलते जा रहे हैं।

दुनिया की चकाचौंध एवं आपाधापी के इस युग में मानसिक संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता हर व्यक्ति द्वारा महसूस की जा रही है। वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछेक व्यक्तियों का थोड़ा-सा मानसिक असंतुलन ही बहुत बड़े अनिष्ट का कारण बन सकता है।

महावीर का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन चारों ओर से हमें सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। जगत को अहिंसा संदेश देने वाले भगवान महावीर का मोक्ष कल्याणक कार्तिक अमावस्या (दीपावली) के दिन मनाया जाता है।


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राज परिवार में पैदा होने भगवान महावीर ने अपार ऐश्वर्य, संपदा सभी का मोह त्याग कर, संपूर्ण दुनिया को सत्य और अहिंसा के उपदेश दिए। उसी पथ पर चलकर आज हम फिर विश्व में शांति ला सकते हैं।

पौराणिक जैन ग्रंथों के अनुसार जब भगवान महावीर पावानगरी के मनोहर उद्यान में गए, तब चतुर्थकाल पूरा होने में तीन वर्ष और आठ महीने ही बाकी थे। महावीर स्वामी कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र में अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए।

उस समय इंद्रादि कई देवों ने आकर उनकी पूजा-अर्चना करके पूरी पावानगरी को दीपों से सुसज्जित कर प्रकाशमय कर दिया। उसी जमाने से यही परंपरा आज भी जैन धर्म में चली आ रही है।

प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर जैन धर्म में भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन सायंकाल में गौतम स्वामी को कैवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तब देवताओं ने वहां प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवलज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व और भी बढ़ा दिया।

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जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के संदेशों को पूरी दुनिया में फैलाने के उद्देश्य से ही जैन समुदाय के सभी लोग दीपावली की शाम को दीपक जलाकर, नए बही खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे।

ऐसा माना जाता है कि बारह गणों के अधिपति गौतम गणधर ही भगवान श्रीगणेश हैं, जो सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा कैवलज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।

जैन समुदाय में इसी उद्देश्य के साथ से कार्तिक अमावस्या को दीप जलाए जाते हैं। मंदिर, जिनालयों तथा धार्मिक स्थानों को दीपमालाओं से सजाया जाता है और भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाते हुए उन्हें लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित कर किया जाता है, जिसे निर्वाण लाडू कहते है ।

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