- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार ( अनुमानित समय- 25 मिनट)
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( नोट :- यहाँ हमने संस्कृत के मान्य नियमों की अपेक्षा सही उच्चारण हो सके, इस हेतु संधि-विच्छेद किया है।)
महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।
पवित्रकरण : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम् गतोअपि वा । य-ह स्मरेत् पुण्डरी-काक्षम् स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥ पुन-ह पुण्डरी-काक्षम् पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम् ।
आसन : निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें- ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम् विष्णु-ना घृता । त्वम् च धारय माम् देवि पवित्रम् कुरु च-आसनम् ॥
( नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)
संकल्प : अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-
हरिॐ तत्सत् अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम्
मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम् यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम् अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम्
पूजनम् च करिष्ये। ( जल छोड़ दें।)
श्रीगणेश-अंबिका पूजन हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें-
श्री गणेश का ध्यान : गजाननम् भूत-गणादिपति सेवितम् कपित्थ जम्बूफल च-अरु-भक्षणम् । उमा-सुतम् शोक विनाश-कारकम् नमामि विघ्नेश्वर पाद-पंकजम् ॥
श्री अंबिका का ध्यान : नमो देव्यै महा-देव्यै शिवायै सततम् नमः । नम-ह् प्रकृत्यै भद्रायै प्रणता-हा स्म-ताम् ॥ श्रीगणेश अंबिकाभ्याम् नम-ह, ध्यानम् समर-पयामि ।
( श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।)
अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान, प्रतिष्ठा, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पुनराचमन हेतु निम्न प्रक्रिया करें। इस हेतु अक्षत अर्पित करें व जल की आचमनी छोड़ें :-
अब आचमनी से जल चढ़ाएँ :- ॐ भू-हु भुव-ह् स्व-ह् गणेश-अम्बिका-भ्याम् नम-ह्, एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनः आचमनीयानि समर्पयामि।
शुद्धोदक स्नानम् : शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ- गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती । नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार-थम् प्रति-गृह्य-ताम ॥ ॐ भु-हु-भुव-ह स्व-ह गणेश-अम्बिका-भ्याम् नम-ह, शुद्ध-उदक स्नानम् समर-पयामि। ( शुद्ध जल से स्नान कराएँ) अब आचमन हेतु जल दें- शुद्धोदक स्नान-आन्ते आचमनीय जलम् समर-पयामि।
वस्त्र एवं उपवस्त्र : निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें :-
अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम् (कहकर जल छोड़ दें।)
नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है। जो व्यक्ति षोडशमातृका, कलश तथा नवग्रह पूजन करना चाहते हैं, वे यहाँ क्लिक करें।
अन्यथा निम्न क्रम से महालक्ष्मी पूजन करें।
महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ विशिष्ट पूजन
विशेष नोट :- श्रीसूक्त में लक्ष्मी की कृपा व अलक्ष्मी की अकृपा के लिए प्रार्थना है। अतः ध्यानपूर्वक मंत्र बोलें। आपकी सुविधा के लिए जहाँ अलक्ष्मी शब्द बोलना है वहाँ हमने संधि विच्छेद कर दिया है।
प्रदक्षिणा : यानि कानि च पापानि जन्मान्तर-कृतानि च । तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे ॥ ( प्रदक्षिणा परिक्रमा करें।)
प्रार्थना : हाथ जोड़कर बोलें :- विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा । चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणप्रिया ॥ भवानि त्वम् महालक्ष्मी-ही सर्व-काम-प्रदायिनी । सुपूजिता प्रसन्ना स्थान्-महालक्ष्मी नमोअस्तु ते ॥ नमस्ते साधक प्रचुर आनंद सम्पत्ति सुखदायिनी । या गति-हि-त्वत्-प्रपन्नानाम् सा मे भूयात् त्वत्-अर्चनात् ॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्, प्रार्थनापूर्वकम् नमस्कारम् समर-पयामि । ( प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।)
समर्पण : ' कृतेन-अनेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मी-देवी प्रीतताम्, न मम' । ( हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)
देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली (दीपमालिका) पूजन
देहली पूजन : अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर 'ॐ श्रीगणेशाय नम-ह्' लिखें साथ ही 'स्वस्तिक चिन्ह', 'शुभ-लाभ' आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ देहली-विनायकाय नम-ह्' गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।
दवात (श्री महाकाली) पूजन : काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नम-ह्' गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें। इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-
कालिके! त्वम् जगन्-मात-ह्-मसि-रूपेण वर्तसे। उत्पन्ना त्वम् च लोकानाम् व्यवहार-प्रसिद्धये ॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै-है समस्तै-है- व्यवहार-दक्षै-है। जनै-है जनानाम् भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौरव्यद-अस्तु ॥ ( पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)
लेखनी पूजन : लेखनी (कलम) पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें-
' ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम-ह्' गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें- शास्त्राणाम् व्यवहाराणाम् विद्यानाम्-आप्नुयात-तत-ह् । अत-ह्-त्वाम् पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥
बही-खाता ( सरस्वती) पूजन : बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ, साथ बसने पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें, साथ ही एक थैली के ऊपर कुंकु या केसर-युक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत व द्रव्य रखकर उस थैली में सरस्वती का ध्यान करें।
या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्र-वस्त्र-आवृता । या वीणा-वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत-पद्यासना ॥
या ब्रह्मा-अच्युत-शंकर-प्रभृतिभि-हि-देवे-हे सदा वन्दिता । सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि-ह्-शेष-जाड्या-पहा ॥
ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजन करें-
' ॐ वीणा-पुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नम-ह्'
कुबेर (तिजोरी) पूजन : तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें-
इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ कुबेराय नम-ह्' कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यम् निधि-पद्माधिपाय च । भगवन् त्वत्प्रसादेन धन-धान्य-आदि-सम्पद-ह् ॥
इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी की प्रार्थना कर पहले (अथात् बही खातों के साथ) पूजी गई थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य आदि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।
तुला-पूजन : व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे अब तुला-अधिष्ठातृ-देवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें-
ध्यान के बाद 'ॐ तुला-अधिष्ठातृ-देवतायै-नम-ह्' मंत्र से तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन : एक थाली में पंद्रह अथवा कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महालक्ष्मी के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें-
प्रार्थना के पश्चात 'ॐ दीपावल्यै नमः' द्वारा दीपमाला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।
इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी श्रीगणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर व्यापारिक प्रतिष्ठान को, सजाएँ। इसके पश्चात दीपक एवं कपूर से श्री महालक्ष्मी की प्रधान आरती करें।
( आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सब लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)
मंत्र-पुष्पांजलि : अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें-
' ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मी-ही प्रसीदतु-हु ॥' ( जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
विसर्जन : विसर्जन हेतु हाथ में अक्षत लें तथा गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें-