धनतेरस से दीपावली पर्व का प्रारंभ हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के उपरांत धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वन्तरि अपने हाथों में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे। धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अंशांश अवतार माने जाते हैं। भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं।
धनतेरस के दिन प्रात:काल क्या करें-
धनतेरस के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के उपरान्त भगवान धन्वन्तरि की पंचोपचार पद्धति से पूजा करें। सर्वप्रथम एक चौकी पर भगवान धन्वन्तरि का चित्र जिसमें वे अमृत-कलश लिए हों, स्थापित करें तत्पश्चात् उस चित्र की धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, आरती से पूजा करें। इस प्रकार धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा करने से आरोग्य एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
मध्यान्ह काल-
भगवान धन्वन्तरि की पूजा के उपरान्त अपरान्ह (दोपहर) में नवीन वस्तुओं का क्रय करें। नवीन वस्तुओं को क्रय करते समय ध्यान रखें कि खरीदी में चांदी की कोई वस्तु अवश्य हो। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने से वर्ष भर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
सायंकाल (प्रदोषकाल)-
धनतेरस के दिन सायंकाल यमराज के निमित्त दीपदान करें, इसे 'यम-दीपदान' कहा जाता है। घर के मुख्य द्वार के बाहर गोबर का लेपन करें तत्पश्चात् मिट्टी के दो दीयों में तेल डालकर प्रज्जवलित करें। दीये प्रज्जवलित करते समय दीपज्योति नमोस्तुते मन्त्र का जाप करते रहे एवं अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें। धनत्रयोदशी के दिन यम-दीपदान करने से घर-परिवार में किसी सदस्य की अकाल-मृत्यु नहीं होती है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया