कौन है धन्वंतरि प्रथम और धन्वंतरि द्वितीय

Webdunia
भगवान धन्वंतरि एवं उनके पुन: जन्म लेने के विषय में भी एक पौराणिक आख्यान है। महाभारत तथा पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। समुद्र मंथन से अवतरित विष्णु के अंश प्रथम धन्वंतरि माने जाते हैं। समुद्र से अमृत घट लेकर निर्गत होने के बाद उन्होंने भगवान से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग निर्धारित कर दें। 

इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवताओं में यज्ञ का भाग तो पहले ही हो चुका है अत: अब संभव नहीं है कि देवों के बाद उत्पन्न होने के कारण तुम देव नहीं हो। हां, दूसरे जन्म में तुम्हें सिद्धियां प्राप्त होंगी तथा तुम लोक में प्रसिद्ध भी हो जाओगे। उसी शरीर से तुम देवत्व भी प्राप्त कर सकोगे तथा ब्राह्मण सब प्रकार से तुम्हारी अर्चना भी करेंगे। तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाग भी करोगे। 
 
द्वितीय द्वापर में तुम पुन: जन्म लोगे, इसमें संदेह नहीं है। इसी वरदान के कारण पुत्र की कामना वाले काशीपति धन्व की तपस्या से संतुष्ट होकर शिवजी भगवान से उनको पुत्र के रूप में धन्वंतरि प्रदान किया। धन्वंतरि  ने भारद्वाज से आयुर्वेद विद्या ग्रहण करके अष्टांग रूप में विभाजित किया तथा अपने शिष्यों को अष्टांग आयुर्वेद का ज्ञान कराया। यही धन्वंतरि द्वितीय हैं। 
 
भगवान धन्वंतरि का नित्य स्नान से निवृत्त होकर पूजन करने के वैद्यों को चिकित्सा कार्य में निश्चित रूप से यश प्राप्त होता है तथा आमजन को नित्य प्रति-पूजा-अर्चना करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। अत: हर मनुष्य को पूजा स्थान में धन्वंतरि को स्थापित कर नित्य पूजा-अर्चना करनी चाहिए।


इस प्रकार देवयुग में समुद्र मंथन से प्रकट होने वाले धन्वंतरि अमृत कलश लेकर आए थे, वे प्रथम धन्वंतरि हुए। सुश्रुत संहिता एवं पुराणों के अनुसार वे प्रथम धन्वंतरि ही फिर से मृत्युलोक में अवतरित हुए। पुराणों के अनुसार धन्वंतरि द्वितीय का जन्म काशी के धन्वराज के पुत्र के रूप में हुआ। उन्होंने इस भूमंडल पर शल्य तंत्र का अष्टांग आयुर्वेद सहित उपदेश किया।


हरिवंश पुराण, गरूड़ पुराण एवं महाभारत आदि में दिवोदास की वंशावली मिलती है। हरिवंश पुराण, ब्रह्मांड पुराण तथा वायु पुराण की वंशावली में यह भेद पाया जाता है कि कहीं दीर्घतया के पुत्र धन्वंतरि तथा कहीं धन्व के पुत्र को आयुर्वेद प्रवर्तक बताया गया है। 
 
उपर्युक्त उदाहरणों से यह सिद्ध होता है कि आयुर्वेद प्रवर्तक धन्वंतरि आयुर्वेद प्रवर्तक थे तथा इन्होंने वार्हस्वत्य भारद्वाज से भिषक क्रिया सहित आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था। उस प्राप्त ज्ञान का अष्टांग विभाग करके उसे शिष्यों को दिया। सुश्रुत संहिता में भी लिखा है कि सुश्रुत के गुरु धन्वंतरि थे जिनका मूल नाम दिवोदास था। कहीं-कहीं विशेषण के रूप में भी नाम आए हैं। उसी प्रकार धन्वंतरि के अवतार होने से जैसा कि उन्होंने स्वयं ही कहा है- 
 
अहं कि धन्वन्तररिरादिवेदों धन्वंतरि भी औपचारिक नाम था। सु.सं. 1/3
 
भावप्रकाश में दिवोदास के विषय में विवरण है कि एक बार देवराज इन्द्र ने लोक में प्राणियों को बीमारियों से पीड़ित देखकर धन्वंतरि को आयुर्वेद का उपदेश दिया और लोक कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेजा। भगवान धन्वंतरि ने काशी के क्षत्रिय वंश में जन्म लिया और दिवोदास के नाम से प्रसिद्ध हुए। काशी के राजा बने और आयुर्वेद का उपदेश दिया। 
 
काशी नरेश दिवोदास, धन्वंतरि के अवतार थे। यह प्रसंग भी पुराणों से प्राप्त होता है। भाव प्रकाश में देवयुग वाले धन्वंतरि के अवतार के रूप में काशी नरेश दिवोदास को स्वीकार किया गया है। सुश्रुत संहिता में शिष्यों को उपदेश करते हुए दिवोदास हैं (पूर्व खंडी 78)। मैं आदिदेव धन्वंतरि हूं, जो देवताओं के जरा, व्याधि और मृत्यु का हरण करने वाला है। अष्टांग आयुर्वेद के विशेष अंग शल्य का उपदेश करने हेतु अवतरित हुआ हूं। 


Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

Dev Uthani Ekadashi 2024 Date: 4 शुभ योग में मनाई जाएगी देव उठनी एकादशी, अक्षय पुण्य की होगी प्राप्ति

Shukra Gochar 2024: शुक्र का धनु राशि में गोचर, जानिए किसे होगा लाभ और किसे नुकसान

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा पर क्यों करते हैं दीपदान, जानिए इसके 12 फायदे

November Horoscope: क्या आपका बर्थ डे नवंबर में है, जानें अपना व्यक्तित्व

सभी देखें

धर्म संसार

08 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

08 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

आंवला नवमी कब है, क्या करते हैं इस दिन? महत्व और पूजा का मुहूर्त

Prayagraj: महाकुम्भ में रेलवे स्टेशनों पर 10 क्षेत्रीय भाषाओं में होगी उद्घोषणा

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?