रामायण काल में दीपोत्सव मनाए जाने का जिक्र मिलता है। राम के अयोध्या आगमन के दौरान दीपोत्सव मनाया गया था। लेकिन क्या महाभारत काल में भी दिवाली मनाई जाती थी? इस संबंध में दो घटनाएं जुड़ी हुई है।
1.अन्नकूट महोत्सव : यह घटना श्री कृष्ण के बचपन की है। जब श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा का विरोध करके गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा प्रारंभ की थी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता। वैसे भी श्री कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं। उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है। इससे पूर्व दिपावली का पर्व इंद्र और कुबेर पूजा से जुड़ा हुआ था।
2.नरकासुर का वध : ऐसा कहा जाता है कि दीपावली के एक दिन पहले श्रीकृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। दूसरी घटना श्रीकृष्ण द्वारा सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने से जुड़ी है।
श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध कर सैंकड़ों स्त्रियों और पुरुषों को कैद से मुक्त कराने के दूसरे दिन दिवाली मनाने का जिक्र मिलता है। असम के राजा नरकासुर ने हजारों निवासियों को कैद कर लिया था। श्री कृष्ण ने नरकासुर का दमन किया और कैदियों को स्वतंत्रता दिलाई। इस घटना की स्मृति में दक्षिण भारत के लोग सूर्योदय से पहले उठकर हल्दी तेल मिलकर नकली रक्त बनाकर उससे स्नान करते हैं। इससे पहले वे राक्षस के प्रतीक के रूप में एक कड़वे फल को अपने पैरों से कुचलकर विजयोल्लास के साथ रक्त को अपने मस्तक के अग्रभाग पर लगाते हैं।
यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने दिवाली के दिन को ही महाभारत के युद्ध के प्रारंभ का दिन चुना था, लेकिन इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता है।