दक्षिण भारत में रंगोली की परंपरा

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केरल- भारत के दक्षिण किनारे पर बसे केरल में रंगोली सजाने के लिए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रायः यहाँ के सबसे महत्वपूर्ण पर्व ओणम के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। पूरे सप्ताह चलने वाले ओणम के प्रत्येक दिन अलग अलग-तरह से रंगोली सजाई जाती है। पहले दिन छोटे आकारों में रंगोली सजाई जाती है। हर अगले दिन नए-नए कलाकार इस काम में अपना सहयोग देते हैं और रंगोली की आकृति विस्तृत होती चली जाती है।

आकृति के विस्तार के साथ-साथ रंगोली की सुंदरता में भी चार चाँद लग जाते हैं। रंगोली सजाने में प्रायः उन फूलों का सहारा लिया जाता है, जिनकी पत्तियाँ जल्दी नहीं मुर्झाती हैं। इस्तेमाल में होने वाले फूलों में गुलाब, चमेली, मेरीगोल्ड, आदि प्रमुख हैं। बड़े फूलों को छोटे-छोटे भागों में तोड़ कर रंगोली सजाई जाती है, परंतु रंगोली के किनारों को सजाने में पूरे फूल का प्रयोग किया जाता है। कलाकार फूलों के प्रयोग में किसी तरह की गलती नहीं करते हैं। क्योंकि यह प्रकृति की वो अमानत हैं जिसके सान्निध्य में कलाकार अपनी कला को विकसित करते हैं। प्रकृति के सान्निध्य में रहने के कारण कलाकार अविश्वसनीय रूप से फूलों के प्रयोग में अपनी महारत दिखाते हैं। ओणम के दौरान सजाए जाने वाली रंगोली में विशेष रूप से विष्णु के पैरों को चित्रित किया जाता है।

शेष दक्षिण भारतीय प्रांत- तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में रंगोली का एक अन्य रूप 'कोलम' सजाया जाता है। यहाँ के लोग इसे अधिकार के साथ सजाते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में सजाए जाने वाले कोलम में कुछ अंतर तो होता है परंतु इनकी मूल बातें यथावत होती हैं। मूल्यतः ये ज्यामितीय और सममितीय आकारों में सजाई जाती हैं। इसके लिए चावल के आटे या घोल का इस्तेमाल किया जाता है। चावल के आटे के इस्तेमाल के पीछे इसका सफेद रंग होना व आसानी से उपलब्धता, इसके अलावा इसका एक अन्य उद्देश्य चींटी को खाना खिलाना है। यहाँ यह माना जाता है कि कोलम के बहाने अन्य जीव जन्तु को भोजन कराना चाहिए। इससे प्राकृतिक चक्र की रक्षा होती है। सूखे चावल के आटे को अँगूठे व तर्जनी के बीच रखकर एक निश्चित साँचे में गिराया जाता है।

यहाँ कुँवारी लड़कियों को बचपन से कोलम सजाना सिखाया जाता है। परंपरागत घरों में किसी ऐसी लड़की की उम्मीद ही नहीं कि जा सकती जिसे कोलम सजाना नहीं आता हो। इसी तरह अल सुबह से महिलाएँ अपने घरों के आसपास कोलम सजाने के काम में जुट जाती हैं। यह शाम तक चलता रहता है। इसके लिए घर का शायद ही कोई कोना बचता होगा। त्योहार के दिनों में घर के दरवाजे पर बड़ी आकृतियाँ खींची जाती हैं जबकि घर के अंदर छोटी आकृतियों से कोलम सजाया जाता है। सुंदर बनाने के लिए कवि के सहारे घेरा जाता है। विशेष कोलम में आठ से सोलह तक सफेद घोड़ों से खींचे जाने वाले रथ पर सवार सूर्य का चित्रण होता है। इस तरह का चित्रांकन पोंगल या संक्रांति के अवसर पर किया जाता है। आजकल बाजार में पोंगल के अवसर पर कोलम सजाने के लिए अनेक तरह की पुस्तकें उपलब्ध हैं। लोग इन पुस्तकों की सहायता से कोलम में अनेक रंग भर रहे हैं।

आँगन की डिजाइ न

इस अप्रतिम प्राइमरी रंगों की डिजाइन (माँडना) को आँगन में बनाएँ। सधे हाथ से रेखांकन करते हुए इसमें दर्शाए गए रंग भर दें। चाहें तो यह माँडना आप अपनी शैली से भी बना सकती हैं। दीपपर्व की सार्थकता में इस प्रासंगिक माँडने का योगदान बस देखते ही बनेगा।

इसके आसपास जब दीप जल उठेंगे तो लक्ष्मीजी का शुभागमन भी होगा। इस कृति की छटा से मन मोहित होने लगेगा और पर्व का आनंद भी तो कितना बढ़ जाएगा!

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