दीपावली ज्योतिष की नजर में

सुख-वैभव दिलाता पंच दिवसीय दीपावली पर्व

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
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नमस्तेऽस्तु महामाये श्री पीठे सूरपूजिते।
शंखचक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तुते।।
नमस्ते गरूड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरि।
सर्व पापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तुते। ।

महामाया सर्व विघ्‍न हरण करने वाली माँ लक्ष्मी को प्रणाम है, हे‍ देवी, जिनके पूजन को सुर, नर, देव किन्नर आदि अनादि काल से करते चले आ रहे हैं। जिनके हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म है, जो समस्त पापों का नाश करती है , ऐसी महालक्ष्मी देवी को कार्तिक अमावस्या की रात्रि में प्रणाम है।

कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन महालक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है। सर्वप्रथम इस त्योहार की शीर्ष देवी माँ लक्ष्मी का पूजन करने के लिए पति-पत्नी दोनों को साफ एवं पवित्र मन रखना चाहिए, तब ही देवी प्रसन्न होती हैं। हृदय में उल्लास एवं मन में प्रसन्नता रखें, सारे घर के क्लेश खत्म कर दें। नित्य कर्म के पश्चात अपने से बड़ों के पैर छुएँ, उनसे आशीर्वाद लेकर फिर अपने इष्ट एवं कुल देवी देवता का पूजन करें। इसके बाद ही अन्न जलग्रहण करें।

दीपावली एक ऐसा त्योहार है जो पाँच दिवस तक मनाया जाता है जोकि कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी (12) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल दूज तक चलता है। इस त्योहार में प्रत्येक दिवस का अलग-अलग महत्व है।

1. प्रथम दिन द्वादशी जिसको हिन्दी त्योहारों में बछड़ा बारस के नाम से जाना जाता है। इस दिन प्रत्येक नारी को गौ-माता एवं उसके बछड़े (केड़ा) का पूजन करना चाहिए। विशेषकर जिस नारी के यहाँ पुत्र रत्न है, उसे अवश्य यह पूजन करना चाहिए। इस त्योहार की यह मान्यता है कि माता-बहिनें गौमाता से बच्चे की दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करती हैं। अलग-अलग प्रांतों में यह त्योहार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को अलग-अलग माह में भी मनाया जाता है। लेकिन निमाड़ अँचल में यह पर्व धनतेरस के पूर्व आने वाली द्वादशी को संपन्न होता है। इस दिन गाय के छोटे बछड़े को घर में बाँधकर पूजन-अर्चन किया जाता है।

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2. द्वितीय दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्यापार, कार्यालय एवं घर में कुबेर देव का पूजन किया जाता है। व्यापारियों को इस दिन अवश्य अपनी दुकान, कार्यालय में अथवा फैक्ट्री में पूजन करना चाहिए। इस दिन विशेष अपने प्रतिष्ठान को सुशोभित करें। फिर विधि-विधान पूर्वक बहीखाते, लेखनी दवात एवं काँटे (तोल-तराजू) व मशीनों का पूजन करें।

सर्वप्रथम फूल एवं नाना प्रकार के तोरण एवं मालाओं से अपने प्रतिष्ठान को सजाएँ। फिर कलश आदि स्थापित करें। गणेश, गौरी, माता सरस्वती एवं लक्ष्मी का फोटो रखें। (अष्ट दल ‍अवश्य बनाएँ।)

सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करें जो विघ्न हरने वाले देवता हैं। समस्त कार्यों को निर्विघ्न करने वाले गणेश जी को नमस्कार करें।

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदक प्रिय।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

सर्वविघ्नविनाशाय, सर्वकल्याण हेतवे।
पार्वती प्रिय पुत्राय, श्री गणेशाय नमो नम:।।

अब विघ्न हरण की प्रार्थना करके कलश पूजन दीपक पूजन करें फिर महाकाली के रूप स्याही अथवा दवात का पूजन करें। सभी पूजन निम्नलिखित मंत्र से करें।
मंत्र : कालिके। त्वं जगन्मातर्मसिरुपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वंच लोकानां व्यवहार प्रसिद्धये। ।

व्यापारी बंधु जगत जननी माँ कालिका का पूजन करके अपने व्यापार के साक्षी तराजू का पूजन करें ।
नमस्ते सर्व देवानां शक्तितत्वे विश्वयोनिना।।
एवं ऊँ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
इस मंत्र से तराजू का गंध पुष्प धूप दीप से पूजन करके नमस्कार करें। आप देखेंगे कि आपका व्यापार हमेशा फलीभूत रहेगा, व्यापार में वृद्धि होगी।

कलम एवं बहीखाते का पूजन माँ जगदंबा सरस्वती का ध्यान करके करें।
सरस्वती के मंत्रों से माँ सरस्वती की वंदना करें एवं कलम का पूजन इस मंत्र द्वारा करें।
लेखनी निर्मिता पूर्व ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्। ।

लेखनी स्थायै देव्यै नम: से लेखनी का गंध पुष्प धूप दीप इत्यादि से पूजन करें।

व्यापारी बंधु इस दिन कुबेर का पूजन अवश्य करें। निम्नलिखित मंत्र से प्रभु कुबेर का ध्यान करें :
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपा गुरु।
कोशंवर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर। ।

एवं ऊँ कुवेराय नम: बोलकर गंध, पुष्प, दीप से अर्चना करें एवं प्रार्थना करें कि प्रभु आप प्रसन्न होकर हमको धन धान्य रूपी प्रसाद दें।
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपधाधिपाय च।
भगवान त्वप्रसादेन धन धान्यादि सम्पद:। ।

इस प्रकार पूजन करने से कुबेर प्रसन्न होकर आपका भंडार भरपूर भरेंगे एवं आपकी प्रसन्नता बनी रहेगी।

3. तृतीय दिवस को नरक चौदस या रूपचौदस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रात: ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पवित्र गंगा, नर्मदा, क्षिप्रा, कावेरी, सरयू अथवा जमना में स्नान करें।

यह संभव न हो तो घर में पवित्र नदी का जल डालकर स्नान करें। माँ गंगा पापों को हरने वाली नदी है। माँ से स्नान करते समय प्रार्थना करें।

पापपहारि दुरितारि तरंगधारि।
शैल प्रचारि गिरिराज गुहा वि‍दारि।।
झंकार कारि हरिपाद रजोऽअपहारि।
गंगा पुनातु सततं शुभकारि नारि।।
इस प्रकार गंगा से प्रार्थना करें। इससे सारे पाप नष्ट होकर पुण्य की प्राप्ति होगी। ऐसी शास्त्रों की मान्यता है कि इस दिन ब्रह्म मुहुर्त में पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य नरक में नहीं जाता है।

4. चतुर्थ दिवस को दीपावली के रूप में मनाया जाता है जो विशेष पूजा अर्चना का दिन होता है।

इस दिन प्रत्येक गृहस्थ परिवार को घर को साफसुथरा कर अच्‍छे वंदनवार एवं तोरण से सजाना चाहिए। सुंदर वस्त्रों से लक्ष्मीजी का मंडप बनाना चाहिए एवं नाना प्रकार के सुगंधित इत्र एवं फूलों से मंडप पर सुगंध बिखेरना चाहिए। इस मंडप में मध्य में भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के लिए सुंदर वेदी बनाना चाहिए फिर (अष्टदल) बनाएँ। इस अष्टदल पर मिट्‍टी की, सोने की अथवा चाँदी की लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखना चाहिए। माँ लक्ष्मी के दोनों ओर हाथी सजाएँ, फिर शाम को दीपमाला से माँ का आह्वान करें।

भगवती के पास पूजन करते समय घी का दीपक लगाएँ। माँ जगदम्बा को नमस्कार करें।
पद्‍मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेश्वरि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तुते।।

माँ का इन मंत्रों से आवाहन करें। इससे अत्यंत सुख की प्राप्ति होगी। देवी लक्ष्मी के पूजन को विधिवत करें। पूरा परिवार बड़ों का आशीर्वाद ग्रहण करें। माँ जगदम्बा महालक्ष्मी का इन 36 नामों से पूजन करे। आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।

1. ऊँ नम: शिवाय 2. ओम शिवशक्त्यै नम: 3. ऊँ इच्छाशक्तयै नम: 4. ऊँ गिरिजाशक्त्यै नम: 5. ऊँ स्वर्गरूपायै नम: 6. ऊँ ज्योतिलक्ष्मयै नम: 7. ऊँ दीपलक्ष्म्यै नम: 8. ऊँ महालक्ष्म्यै नम: 9. ऊँ धनलक्ष्म्यै नम: 10. ऊँ दान लक्ष्म्यै नम: 11. ऊँ धैर्यलक्ष्म्यै नम: 12. ऊँ वीर्यलक्ष्म्यै नम: 13. ऊँ विजयालक्ष्म्यै नम: 14. ऊँ विद्यालक्ष्म्यै नम: 15. ऊँ जयलक्ष्मयै नम: 16. ऊँ वरलक्ष्म्यै नम: 17. ऊँ गजलक्ष्म्यै नम: 18. ऊँ कामवल्यै नम: 19. ऊँ कामसुन्दर्यै नम: 20. ऊँ शुभलक्ष्म्यै नम: 21. ऊँ राजलक्ष्म्यै नम: 22. ऊँ ग्रहलक्ष्म्यै नम: 23. ऊँ सिद्धिलक्ष्म्यै नम: 24. ऊँ सीतालक्ष्म्यै नम: 25. ऊँ त्रिपुरालक्ष्म्यै नम: 26. ऊँ सर्वमंगलकामिन्यै नम: 27. ऊँ सर्वविघ्न निर्वाणायै नम: 28. ऊँ स्वर्गसुन्दर्यै नम: 29. ऊँ सौभाग्यसुन्दर्यै नम: 30. ऊँ नवग्रहेभ्य नम: 31. ऊँ आद्यनायिकायै नम: 32. ऊँ अलंकारनायिकायै नम: 33. ऊँ आनंदनायिकायै नम: 34. ऊँ आनंदस्वरूपिण्यै नम: 35. ऊँ अखंडअखिलानायिकायै नम: 36. ऊँ ब्रह्माण्डनायिकायै नम:।।

इन मंत्रों को आप रात्रि 11.48 से सुबह 5 बजे ब्रह्म मुहूर्त तक करें। जगदम्बा आपको सुख,संपत्ति, वैभव प्रदान करेंगी। इस दिन रात्रि जागरण में निम्न मंत्र भी कर सकते हैं।
ऊँ शुक्ला महाशुक्ले निवासे।
श्री महालक्ष्मी नमो नम:

आपको जगदम्बा लक्ष्मी संपूर्ण सुख देंगी। प्रात: काल अर्थात चतुर्थ दिवस को ब्रह्ममुहुर्त में देवी के लिए आरती करें। तत्पश्चात निम्नलिखित मंत्र से अर्चना करें।
ततश्च मूलमंत्रेण दत्वा पुष्पा त्रपलित्रयम्।।
महानीराजनं कुर्यान्महावाधजयस्वनै:।।
प्रज्वालयेत् तदार्थ च कर्पूरेण घृतेन वा।
आरार्तिक शुभे पात्रे विष्मानेकवार्तिकम।।

साधारणतया पाँच बत्तियों से आरती की जाती है। इसे पंचप्रदीप भी कहते हैं, कुंकुंम, अगर, कपूर, चंदन, रुई और घी अथवा धूप की एक, पाँच या सात बत्तियाँ बनाकर शंख-घंटा आदि बजाते हुए आरती करनी चाहिए।

चौथे दिन अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजन होता है, इस दिन प्रात: स्नानादि करके गोबर से भगवान गोवर्धन का निर्माण- पूजन करें एवं शाम को छत्तीस प्रकार के भोग बनाकर भगवान श्रीकृष्ण का नैवैद्य लगाकर अन्नकूट का लाभ लें।

5. पाँचवे दिन भाई दूज का त्योहार होता है। इस दिन बहनें अपने भाई को आमंत्रित कर उनका पूजन करती है एवं उनकी दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करती हैं। इसी प्रकार यह पंच दिवसीय दीपावली पर्व मनाया जाना चाहिए। जिससे सुख,वैभव, यश के साथ घर में उल्लास व आनंद पूरे साल छाया रहता है।

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